17 अप्रैल 2010

हम देखेंगे

हम देखेंगे
लाज़िम है के हम भी देखेंगे
वो दिन की जिसका वादा है
जो लौहे-अज़ल पे लिखा है

जब जुल्मो-सितम के कोहे-गरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहले-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

जब अर्ज़े-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहले-सफा मर्दूदे-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे

बस नाम रहेग अल्लाह का
जो गायब भी है, हाज़िर भी
जो मंज़र भी है, नाज़िर भी
उठ्ठेगा अनलहक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज़ करेगी खल्क़े-खुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो |

- फैज़ अहमद फैज़.

लौह a tablet, a board, a plank; महकूम a subject, a subordinate; अहले-सफा pure people; अज़ल eternity, beginning (opp abad); मंज़र spectacle, a scene, a view; नाज़िर spectator, reader अनलहक़ I am Truth, I am God. Sufi Mansoor was hanged for saying it; खल्क़ the people, mankind, creation;

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