7 अगस्त 2010

शिकस्त

बारहा मुझसे कहा दिल ने कि ऐ शोब्दागर
तू कि अल्फ़ाज़ से अस्नामगरी करता है
कभी उस हुस्ने-दिलआरा की भी तस्वीर बना
जो तेरी सोच के ख़ाक़ों में लहू भरता है

बारहा दिल ने ये आवाज़ सुनी और चाहा
मान लूँ मुझसे जो विज्दान मेरा कहता है
लेकिन इस इज्ज़ से हारा मेरे फ़न का जादू
चाँद को चाँद से बढ़कर कोई क्या कहता है

--- अहमद फ़राज़

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