14 जनवरी 2014

सम्पाती

तुम्हें मैं दोष नहीं देता हूँ
सारा कसूर अपने सिर पर लेता हूँ
यह मेरा ही कसूर था
कि सूर्य के घोड़ों से होड़ लेने को
मैं आकाश में उड़ा
जटायु मुझसे ज्यादा उड़ा
वह आधे रास्ते से ही लौट आया
लेकिन मैं अपने अहंकार में
उड़ता ही गया
और जैसे ही सूर्य के पास पहुंचा,
मेरे पंख जल गए।

मैंने पानी माँगा
पर दूर आकाश में
पानी कौन देता है?
सूर्या के मारे हुए को
अपनी शरण में
कौन लेता है?

अब तो सब छोड़ कर
तुम्हारे चरणों पर पड़ा हूँ
मंदिर के बाहर पड़े पौधर के समान
तुम्हारे आँगन में धरा हूँ।

तुम्हें मैं कोई दोष नहीं देता स्वामी!

--- रामधारी सिंह दिनक

“आमि आपण दोषे दुःख पाई वासना-अनुगामी”

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