24 जनवरी 2014

घास

मैं दीवारों की संध में
उगती हूं
जहां दीवारों का जोड़ होता है
वहां जहां वे एक दूसरे से मिलती हैं
जहां वे पक्की कर दी जाती हैं

वहीं मैं प्रवेश करती हूं

हवा के द्वारा बिखेरा गया
कोई अंधा बीज

धैर्यपूर्वक पूरे इत्मीनान से
मैं खामोशियों की दरारों में
फैलती जाती हूं
मैं प्रतीक्षा करती हूं दीवारों के ढहने की
और उनके धरती पर लौट आने की

और तब
मैं सारे नामों और चेहरों को
ढांक लूंगी ।

---Tadeusz Rozewicz ,1962

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