1 जुलाई 2014

हमसे लोग खफ़ा रहते हैं

अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥

आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।

माथे पर पत्थर सहते हैं,
छाती पर खंजर सहते हैं
पर कहते पूनम को पूनम
मावस को मावस कहते हैं।

अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥

हमने तो खुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही गहरी मुस्कानें।

फ़ाके वाले दिन को, पावन
एकादशी समझते हैं
पर मुखिया की देहरी पर
जाकर आदाब नहीं कहते हैं।

अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥

हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के
रंगमहल के राग नहीं हैं
आत्मकथा बागी लहरों की
गंधर्वों के फ़ाग नहीं हैं।

हम चिराग हैं, रात-रात भर
दुनिया की खातिर जलते हैं
अपनी तो धारा उलटी है
धारा में मुर्दे बहते हैं।

अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥

--- शिवओम ‘अम्बर’ फ़र्रुखाबाद

1 टिप्पणी:

  1. Nice one written really the poem very awesome and its in hindi so its look so nice but i will suggest that if you have given the translation then our international reader will find easy.

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