10 सितंबर 2014

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू[1] ही सही
नहीं विसाल मयस्सर[2] तो आरज़ू ही सही

न तन में ख़ून फ़राहम[3] न अश्क आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब[4] है बे-वज़ू ही सही

यही बहुत है केः सालिम है दिल का पैराहन
ये चाक-चाक गरेबान बेरफ़ू ही सही

किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही

गर इन्तज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा[5] से गुफ़्तगू ही सही

दयार-ए-ग़ैर[6] में महरम[7] अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू[8] ही सही

---फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

1- तलाश
2- उपलब्ध
3- मौजूद
4- आवश्यक
5- कल के वादे
6- पराई धरती
7- अपना
8- समक्ष

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