15 मार्च 2018

बहार आई तो

बहार आई तो जैसे यक-बार
लौट आए हैं फिर अदम से
वो ख़्वाब सारे शबाब सारे
जो तेरे होंटों पे मर-मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिए थे
निखर गए हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुश्कबू हैं
जो तेरे उश्शाक़ का लहू हैं
उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाल-ए-अहवाल-ए-दोस्ताँ भी
ख़ुमार-ए-आग़ोश-ए-मह-वशां भी
ग़ुबार-ए-ख़ातिर के बाब सारे
तिरे हमारे
सवाल सारे जवाब सारे
बहार आई तो खुल गए हैं
नए सिरे से हिसाब सारे

--- Faiz Ahmad Faiz

1 टिप्पणी: