नयी तरह से निभाने की दिल ने ठानी है
वगरना उससे मोहब्बत बहुत पुरानी है
ख़ुदा वो दिन न दिखाए कि मैं किसी से सुनूं
कि तूने भी गमे दुनिया से हार मानी है
ज़मीन पे रह के सितारे शिकार करते हैं
मिजाज़ अहले-मोहब्बत का आसमानी है
हमें अज़ीज़ हो क्योंकर न शामे-गम कि यही
बिछड़ने वाले तेरी आखिरी निशानी है
उतर पड़े हो तो दरया से पूछना कैसा
के साहिलों से उधर कितना तेज़ पानी है
बहुत दिनों में तेरी याद ओढ़ कर उतरी
ये शाम कितनी सुनहरी है क्या सुहानी है
साभार: हस्बे-हाल
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