28 दिसंबर 2021

Tapestry

It hangs from heaven to earth.
There are trees in it, cities, rivers,
small pigs and moons. In one corner
the snow falling over a charging cavalry,
in another women are planting rice.

You can also see:
a chicken carried off by a fox,
a naked couple on their wedding night,
a column of smoke,
an evil-eyed woman spitting into a pail of milk.

What is behind it?
—Space, plenty of empty space.

And who is talking now?
—A man asleep under his hat.

What happens when he wakes up?
—He’ll go into a barbershop.

They’ll shave his beard, nose, ears, and hair,
To make him look like everyone else.

--- Charles Simic

25 दिसंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 4 !!!

1. 'रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें, जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया' - सुदर्शन फ़ाकिर

2. मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहे | कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है - अल्लामा इक़बाल

3. एक आस्तीं चढ़ाने की आदत को छोड़कर, हाफ़ी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो -तहज़ीब हाफ़ी

4. ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं - आलोक श्रीवास्तव

5. न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया -परवीन शाकिर

6. जीने का कुछ उसूल न मरने का ढंग है हर छोटी-छोटी बात पे आपस में जंग है - रऊफ़ रहीम

7. बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई, बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी - ऐन इरफ़ान

8. कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा, मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है - बशीर बद्र

9. मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए - राहत इंदौरी

10. सुना ये है, बना करते हैं जोड़े आसमानों में, तो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है - अहमद अल्वी

11. जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं - आबिद अदीब

12. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - मिर्ज़ा ग़ालिब

13. बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है, हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है - अनवर शऊर

14. ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है - मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

15. गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं, हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं - क़तील शिफ़ाई

21 दिसंबर 2021

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले


क्यूँ जान-ए-हज़ीं ख़तरा-ए-मौहूम से निकले
क्यूँ नाला-ए-हसरत दिल-ए-मग़्मूम से निकले
आँसू न किसी दीदा-ए-मज़लूम से निकले
कह दो कि न शिकवा लब-ए-मग़्मूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू का ग़म-ए-मर्ग सुबुक भी है गराँ भी
है शामिल-ए-अर्बाब-ए-अ'ज़ा शाह-ए-जहाँ भी
मिटने को है अस्लाफ़ की अज़्मत का निशाँ भी

ये मय्यत-ए-ग़म देहली-ए-मरहूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ऐ ताज-महल नक़्श-ब-दीवार हो ग़म से
ऐ क़िला-ए-शाही ये अलम पूछ न हम से

ऐ ख़ाक-ए-अवध फ़ाएदा क्या शरह-ए-सितम से
तहरीक ये मिस्र-ओ-अ'रब-ओ-रोम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
साया हो जब उर्दू के जनाज़े पे 'वली' का

हों 'मीर-तक़ी' साथ तो हमराह हूँ 'सौदा'
दफ़नाएँ उसे 'मुसहफ़ी'-ओ-'नासिख़'-ओ-'इंशा'
ये फ़ाल हर इक दफ़्तर-ए-मंज़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

बद-ज़ौक़ है अहबाब से गो ज़ौक़ हैं रंजूर
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला के न मातम से रहें दूर
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें मोमिन-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
है मर्सियाँ-ख़्वाँ क़ौम हैं उर्दू के बहुत कम
कह दो कि 'अनीस' इस का लिखें मर्सिया-ए-ग़म
जन्नत से 'दबीर' आ के पढ़ें नौहा-ए-मातम

ये चीख़ उठे दिल से न हुल्क़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
इस लाश को चुपके से कोई दफ़न न कर दे
पहले कोई 'सरसय्यद'-ए-आज़म को ख़बर दे

वो मर्द-ए-ख़ुदा हम में नई रूह तो भर दे
वो रूह कि मौजूद न मा'दूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू के जनाज़े की ये सज-धज हो निराली

सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली
'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
फ़रियाद ये सब के दिल-ए-मग़्मूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

16 दिसंबर 2021

If We Must Die

If we must die, let it not be like hogs
Hunted and penned in an inglorious spot,
While round us bark the mad and hungry dogs,
Making their mock at our accursèd lot.
If we must die, O let us nobly die,
So that our precious blood may not be shed
In vain; then even the monsters we defy
Shall be constrained to honor us though dead!
O kinsmen! we must meet the common foe!
Though far outnumbered let us show us brave,
And for their thousand blows deal one death-blow!
What though before us lies the open grave?
Like men we’ll face the murderous, cowardly pack,
Pressed to the wall, dying, but fighting back!

10 दिसंबर 2021

काली मिट्टी काले घर

काली मिट्टी काले घर
दिनभर बैठे-ठाले घर

काली नदिया काला धन
सूख रहे हैं सारे बन

काला सूरज काले हाथ
झुके हुए हैं सारे माथ

काली बहसें काला न्याय
खाली मेज पी रही चाय

काले अक्षर काली रात
कौन करे अब किससे बात

काली जनता काला क्रोध
काला-काला है युगबोध

--- केदारनाथ सिंह

5 दिसंबर 2021

मैं फिर कहता हूँ

मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता!
हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं -

जो सुनते हैं
बहरे हैं या
अनसुनी करने के लिए
नियुक्त किए गए हैं

मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता
तब सुनो या मत सुनो
हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!

हस्तिनापुर में
तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है, विचार -
और याद रखो
आजकल महामारी की तरह फैल जाता है
विचार।

--- श्रीकांत वर्मा

29 नवंबर 2021

Without Mercy

There is a sweet music,
but its sweetness fails to console you.
This is what the days have taught you:
in every long war
there is a soldier, with a distracted face and ordinary teeth,
who sits outside his tent
holding his bright-sounding harmonica
which he has carefully protected from the dust and blood,
and like a bird
uninvolved in the conflict,
he sings to himself
a love song
that does not lie.

For a moment,
he feels embarrassed at what the moonlight might think:
what’s the use of a harmonica in hell?

A shadow approaches,
then more shadows.
His fellow soldiers, one after the other,
join him in his song.
The singer takes the whole regiment with him
to Romeo’s balcony,
and from there,
without thinking,
without mercy,
without doubt,
they will resume the killing!

--- Mourid Barghouti (translation: Radwa Ashour)

24 नवंबर 2021

'करियर का चुनाव'

मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था खाने-पीने के सामानों का सेल्समैन भी नहीं
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं
न ही टैक्सी ड्राइवर
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं

मैं बस इतना चाहता था
कि शहर की सबसे ऊँची जगह पर खड़ा होकर
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूँ
जिससे मैं प्यार करता हूँ
इसलिए मैं बाँधकाम मज़दूर बन गया।

अनुवाद - गीत चतुर्वेदी
साभार- कविताकोश

18 नवंबर 2021

I am happy living simply

I am happy living simply:
like a clock, or a calendar.
Worldly pilgrim, thin,
wise—as any creature. To know

the spirit is my beloved. To come to things—swift
as a ray of light, or a look.
To live as I write: spare—the way
God asks me—and friends do not.

--- Marina Tsvetaeva

14 नवंबर 2021

Sidewalk Ends

There is a place where the sidewalk ends
and before the street begins,
and there the grass grows soft and white,
and there the sun burns crimson bright,
and there the moon-bird rests from his flight
to cool in the peppermint wind.

Let us leave this place where the smoke blows black
and the dark street winds and bends.
Past the pits where the asphalt flowers grow
we shall walk with a walk that is measured and slow
and watch where the chalk-white arrows go
to the place where the sidewalk ends.

Yes we'll walk with a walk that is measured and slow,
and we'll go where the chalk-white arrows go,
for the children, they mark, and the children, they know,
the place where the sidewalk ends.

--- Shel Silverstein

10 नवंबर 2021

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

तारीख़-ए-कर्बला-ए-सुख़न! देखना कि मैं
ख़ून-ए-जिगर से लिख के वरक़ छोड़ जाऊँगा

इक रौशनी की मौत मरूँगा ज़मीन पर
जीने का इस जहान में हक़ छोड़ जाऊँगा

रोएँगे मेरी याद में महर ओ मह ओ नुजूम
इन आइनों में अक्स-ए-क़लक़ छोड़ जाऊँगा

वो ओस के दरख़्त लगाऊँगा जा-ब-जा
हर बूँद में लहू की रमक़ छोड़ जाऊँगा

गुज़रूँगा शहर-ए-संग से जब आइना लिए
चेहरे खुले दरीचों में फ़क़ छोड़ जाऊँगा

पहुँचूँगा सेहन-ए-बाग़ में शबनम-रुतों के साथ
सूखे हुए गुलों में अरक़ छोड़ जाऊँगा

हर-सू लगेंगे मुझ से सदाक़त के इश्तिहार
हर-सू मोहब्बतों के सबक़ छोड़ जाऊँगा

'साजिद' गुलाब-चाल चलूँगा रविश रविश
धरती पे गुल्सितान-ए-शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

---इक़बाल साजिद

3 नवंबर 2021

शोषक भैया

डरो मत शोषक भैया: पी लो
मेरा रक्त ताज़ा है, मीठा है हृद्य है 
पी लो  शोषक भैया: डरो मत। 

 शायद तुम्हें पचे नहीं-- अपना मेदा तुम देखो, मेरा क्या दोष है। 
 मेरा रक्त मीठा तो है, पर पतला या हल्का भी हो 
 इसका ज़िम्मा तो मैं नहीं ले सकता, शोषक भैया? 
 जैसे कि सागर की लहर सुन्दर हो, यह तो ठीक, 
 पर यह आश्वासन तो नहीं दे सकती कि किनारे को लील नहीं लेगी 

 डरो मत शोषक भैय: मेरा रक्त ताज़ा है, 
 मेरी लहर भी ताज़ा और शक्तिशाली है।
 ताज़ा, जैसी भट्ठी में ढलते गए इस्पात की धार, 
 शक्तिशाली, जैसे तिसूल: और पानीदार। 
 पी लो, शोषक भैया: डरो मत। 

 मुझ से क्या डरना? 
 वह मैं नहीं, वह तो तुम्हारा-मेरा सम्बन्ध है जो तुम्हारा काल है
 शोषक भैया! 

30 अक्टूबर 2021

“Al Midan”

Dark Egyptian hands that know how to characterize

Reach out through the roar to destroy the frames

The creative youth came out and turned autumn into spring

They have performed the miracle and raised the murdered from murder

Kill me, killing me will not bring back your country

In my blood I shall write a new life for my home

My blood is it or the spring? Both in green color

Am I smiling because of my happiness or my sorrows?

--- Abdel Rahman al-Abnoudi

26 अक्टूबर 2021

For My Young Friends Who Are Afraid

There is a country to cross you will
find in the corner of your eye, in
the quick slip of your foot--air far
down, a snap that might have caught.
And maybe for you, for me, a high, passing
voice that finds its way by being
afraid. That country is there, for us,
carried as it is crossed. What you fear
will not go away: it will take you into
yourself and bless you and keep you.
That's the world, and we all live there.

---William Stafford

21 अक्टूबर 2021

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

18 अक्टूबर 2021

It is Night, in My Study

It is night, in my study.
The deepest solitude; I hear the steady
shudder in my breast
—for it feels all alone,
and blanched by my mind—
and I hear my blood
with even murmur
fill up the silence.

You might say the thin stream
falls in the waterclock and fills the bottom.
Here, in the night, all alone, this is my study;
the books don't speak;
my oil lamp
bathes these pages in a light of peace,
light of a chapel.

The books don't speak;
of the poets, the meditators, the learned,
the spirits drowse;
and it is as if around me circled
cautious death.

I turn at times to see if it waits,
I search the dark,
I try to discern among the shadows
its thin shadow,
I think of heart failure,
think about my strong age; since my fortieth year
two more have passed.

Toward a looming temptation
here, in the solitude, the silence turns me—
the silence and the shadows.

And I tell myself: "Perhaps when soon
they come to tell me
that supper awaits,
they will discover a body here
pallid and cold
—the thing that I was, this one who waits—
just like those books quiet and rigid,
the blood already stopped,
jelling in the veins,
the chest silent
under the gentle light of the soothing oil,
a funeral lamp.

I tremble to end these lines
that they do not seem
an unusual testament,
but rather a mysterious message
from the shade beyond,
lines dictated by the anxiety
of eternal life.
I finished them and yet I live on.

translated by William Stafford and Lillian Jean Stafford.

11 अक्टूबर 2021

The Nobodies / Los nadies

Fleas dream of buying themselves a dog,
and nobodies dream of escaping from poverty,
that one magical day
good luck will soon rain,
that good luck will pour down,
but good luck doesn't rain, neither yesterday
nor today,nor tomorrow, nor ever,
nor does good fall from the sky in little mild showers,
however much the nobodies call for it,
even if their left hands itch
or they get up using their right feet,
or they change their brooms at new year.

The nobodies: the children of nobody, that masters of nothing,
The nobodies: the nothings, those made nothing,
running after the hare, dying life, fucked, totally fucked:

who are not, although they were.
Who speak no languages, only dialects.
Who have no religions, only superstitions.
Who have have no arts, only crafts.
Who have no culture, only folklore.
Who are not human beings, but human resources.
Who have faces, only arms.
Who don't have names, only numbers.
Who don't count in world history,
just in the local press's stories of violence, crime, misfortune and disaster,.

The nobodies who are worth less than the bullets that kill them.


7 अक्टूबर 2021

Dust

It’s my turn at the water point:
The trickle is slower today
Each day, slower,
One day, it may stop;
And my field has withered,
Rusted-dry in the staring sun,
The crevices filling with dust.
Tin buckets clash behind me
And a loud voice roughly bawls
“Don’t fill that bucket full!
Fool – don’t you know you’ll slop?”
I withdraw, abashed. It’s true:
I mustn’t spill a precious drop
Not even as a libation
To the gloating sun.

I saw a young man gunned down
As I shopped in the market place.
Two thick thuds, and then he fell,
And thrashed a bit, on his face.
That’s all. He sprawled in the staring sun.
(They whirled away in a cloud of dust
In a smart white van.)
His blood laid the dust
In a scarlet little shower,
Scarlet little flowers.
In the staring sun, the little flowers
Will burn and turn to rust.

I stumble home through arid fields
My furtive footsteps hushed by dust.
I scan the sky – hard, limpid, deep –
O pure and high is heaven’s sky!
Is there no shade for me? I weep
To hide from the glaring eye of heaven.
(Cain, my brother Cain!
I know your fear, your guilt, your pain –
I too have now a brother slain,
I too am sealed with the scarlet stain!)
My ink has crusted in my pen
And in my heart – the dust.

---Nini Lungalang

2 अक्टूबर 2021

सड़क पर किसान

 "जिनकी जेबें भरने के लिए 

किसानों का पेट तुम काट रहे 

सब जानते हैं छुप-छुप कर 

किस-किसके तलवे चाट रहे 

क्यों तुमसे न वह आज लड़ेगा 

मूर्तियाँ गिराते-गिराते 

गिर गए हैं जो अपने भीतर 

हुजूम किसानों का फिर से उन्हें 

सवालों के चौराहे पर खड़ा करेगा।"

जसिंता केरकेट्टा

28 सितंबर 2021

Poem of Love (Poema de Amor)

They who widened the Panama Canal
(and were classified “silver roll” and “gold roll”),
they who repaired the Pacific fleet at California bases,
they who rotted in the jails of Guatemala,
Mexico, Honduras, Nicaragua *
for being thieves, smugglers, swindlers, for being hungry,
they always suspicious of everything
(“permit me to haul you in as a suspect
for hanging out on corners suspiciously, and furthermore
with the pretentious air of being Salvadorian”),
they who packed the bars and brothels of all the ports
and capitals of the region
(“The Blue Cave,” “Hot Pants,” “Happyland”),
the planters of corn deep in foreign jungles,
the kings of cheap porn,
they who no one knows where they come from,
the best artisans of the world,
they who were stitched by bullets crossing the border,
they who died of malaria
or by the sting of scorpions or yellow fever
in the hell of banana plantations,
the drunkards who cried for the national anthem
under a cyclone of the Pacific or northern snows,
the moochers, the beggars, the dope pushers,
guanaco sons of bitches,
they who hardly made it back,
they who had a little more luck,
the eternally undocumented,
the jack-of-all trades, the hustlers, the gluts,
the first the flash a knife,
the sad, the saddest of all,
my people, my brothers.


*Somoza’s era in Nicaragua.
Translated from the Spanish by Zoë Anglesey and Daniel Flores Ascencio.

25 सितंबर 2021

उनको प्रणाम

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।

कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !

जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !

कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !

थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !

---नागार्जुन

22 सितंबर 2021

जूता

तारकोल और बजरी से सना
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।

मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।

~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

20 सितंबर 2021

The Warrior's Resting Place

The dead are getting more restless each day.

They used to be easy
we’d put on stiff collars flowers
praised their names on long lists
shrines of the homeland
remarkable shadows
monstrous marble.

The corpses signed away for posterity
returned to formation
and marched to the beat of our old music.

But not anymore
the dead
have changed.

They get all ironic
they ask questions.

It seems to me they’ve started to realise
they’re becoming the majority!

16 सितंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 3 !!!

1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी

2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर

3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा

4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश

5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी

6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी

7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर

8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री

9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी

10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर

11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात

12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी

13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी

14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी

13 सितंबर 2021

चेतक की वीरता

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
 चेतक बन गया निराला था
 राणाप्रताप के घोड़े से
 पड़ गया हवा का पाला था

 जो तनिक हवा से बाग हिली
 लेकर सवार उड़ जाता था
 राणा की पुतली फिरी नहीं
 तब तक चेतक मुड़ जाता था

 गिरता न कभी चेतक तन पर 
 राणाप्रताप का कोड़ा था 
 वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर 
 वह आसमान का घोड़ा था 

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं 
 वह वहीं रहा था यहाँ नहीं 
 थी जगह न कोई जहाँ नहीं 
 किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं 

 निर्भीक गया वह ढालों में 
 सरपट दौडा करबालों में 
 फँस गया शत्रु की चालों में 

 बढ़ते नद-सा वह लहर गया 
 फिर गया गया फिर ठहर गया 
 विकराल वज्रमय बादल-सा 
 अरि की सेना पर घहर गया 

 भाला गिर गया गिरा निसंग 
 हय टापों से खन गया अंग 
 बैरी समाज रह गया दंग 
 घोड़े का ऐसा देख रंग 

10 सितंबर 2021

To the Young Who Want to Die

Sit down. Inhale. Exhale.
The gun will wait. The lake will wait.
The tall gall in the small seductive vial
will wait will wait:
will wait a week: will wait through April.
You do not have to die this certain day.
Death will abide, will pamper your postponement.
I assure you death will wait. Death has
a lot of time. Death can
attend to you tomorrow. Or next week. Death is
just down the street; is most obliging neighbor;
can meet you any moment.

You need not die today.
Stay here--through pout or pain or peskyness.
Stay here. See what the news is going to be tomorrow.

Graves grow no green that you can use.
Remember, green's your color. You are Spring.

7 सितंबर 2021

The Snowfall Is So Silent

The snowfall is so silent,
so slow,
bit by bit, with delicacy
it settles down on the earth
and covers over the fields.
The silent snow comes down
white and weightless;
snowfall makes no noise,
falls as forgetting falls,
flake after flake.
It covers the fields gently
while frost attacks them
with its sudden flashes of white;
covers everything with its pure
and silent covering;
not one thing on the ground
anywhere escapes it.
And wherever it falls it stays,
content and gay,
for snow does not slip off
as rain does,
but it stays and sinks in.
The flakes are skyflowers,
pale lilies from the clouds,
that wither on earth.
They come down blossoming
but then so quickly
they are gone;
they bloom only on the peak,
above the mountains,
and make the earth feel heavier
when they die inside.
Snow, delicate snow,
that falls with such lightness
on the head,
on the feelings,
come and cover over the sadness
that lies always in my reason.

---Miguel de Unamuno
translated by Robert Bly

1 सितंबर 2021

सतपुड़ा के घने जंगल

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए-से,
ऊँघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।

सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल मे पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनोने, घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।


अटपटी-उलझी लताएँ,
डालियों को खींच खाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाऐं।
सांप सी काली लताऐं
बला की पाली लताऐं
लताओं के बने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुँह पर,
और सर के बाल मुँह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुँह पर,
वात- झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपडी पर फ़ूंस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, गोल इनके

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।

जागते अँगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्ग़े और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर!

क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,
मृत्यु तक मैला हुआ-सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

धँसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।

भवानी प्रसाद मिश्र (अगस्त, 1939)

26 अगस्त 2021

I Am Syrian

I am a Syrian. Exiled,
in and out of my homeland,
and
on knife blades with swollen feet I walk.
I am a Syrian: Shiite, Druze, Kurd,
Christian, and I am Alawite, Sunni, and Circassian.

Syria is my land.
Syria is my identity. My sect is the scent of my homeland,
the soil after the rain,
and my Syria is my only religion.
I am a son of this land, like the olives
apples pomegranates chicory cacti mint grapes figs ...
So what use are your thrones,
your Arabism,
your poems,
and your elegies?
Will your words bring back my home
and those who were killed accidentally?
Will they erase tears shed on this soil?
 
I am a son of that green paradise,
my hometown,
but today,
I am dying from hunger and thirst.
Barren tents in Lebanon and Amman are now my refuge,
but no land except my homeland
will nourish me with its grains,
nor will all the cloudsin this universe quench my thirst.

---Youssef Abu Yihea, Translated by Ghada Alatrash

20 अगस्त 2021

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

बे-फ़ाएदा अलम नहीं बे-कार ग़म नहीं
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये नेमत भी कम नहीं

मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं
मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं

या रब हुजूम-ए-दर्द को दे और वुसअ'तें
दामन तो क्या अभी मिरी आँखें भी नम नहीं

शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं

अब इश्क़ उस मक़ाम पे है जुस्तुजू-नवर्द
साया नहीं जहाँ कोई नक़्श-ए-क़दम नहीं

मिलता है क्यूँ मज़ा सितम-ए-रोज़गार में
तेरा करम भी ख़ुद जो शरीक-ए-सितम नहीं

मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं

--- जिगर मुरादाबादी

15 अगस्त 2021

पढ़ना-लिखना सीखो

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो

ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो
खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है
ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलने वालो
अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है

क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो

पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?
पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं?

पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा
पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा
पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा
पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा

पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है
पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

--- सफ़दर हाशमी

12 अगस्त 2021

चोला माटी के हे राम

चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

चोला माटी के हे हो
हाय चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

द्रोणा जइसे गुरू चले गे
करन जइसे दानी संगी, करन जइसे दानी
बाली जइसे बीर चले गे, रावन कस अभिमानी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई आही सब के पारी
एक दिन आही सब के पारी
काल कोनो ल छोंड़े नहीं राजा रंक भिखारी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

भव से पार लगे बर हे ते हरि के नाम सुमर ले संगी
हरि के नाम सुमर ले
ए दुनिया मा आके रे पगला जीवन मुक्ती कर ले
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

चोला माटी के हे हो
हाय चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे
हाय चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे

---गंगाराम शिवारे

9 अगस्त 2021

युवा कवि !

लिखो जैसा तुम चाहो 
जिस भी अंदाज़ में। 

पुल के नीचे बहुत सारा रक्त 
बह चुका है सिर्फ़ यह साबित करता हुआ 
कि एक ही रास्ता सही है। 
कविता में सब कुछ जायज़ है 
तुम्हें सिर्फ़ एक कोरे 
काग़ज़ को बेहतर बनाना है। 

 ~ निकानोर पार्रा {अनुवाद: मंगलेश डबराल}

4 अगस्त 2021

The Diameter Of The Bomb

The diameter of the bomb was thirty centimeters
and the diameter of its effective range about seven meters,
with four dead and eleven wounded.
And around these, in a larger circle
of pain and time, two hospitals are scattered
and one graveyard. But the young woman
who was buried in the city she came from,
at a distance of more than a hundred kilometers,
enlarges the circle considerably,
and the solitary man mourning her death
at the distant shores of a country far across the sea
includes the entire world in the circle.
And I won’t even mention the crying of orphans
that reaches up to the throne of God and
beyond, making a circle with no end and no God.

30 जुलाई 2021

Apolitical Intellectuals

One day
the apolitical
intellectuals
of my country
will be interrogated
by the simplest
of our people.

They will be asked
what they did
when their nation died out
slowly,
like a sweet fire
small and alone.

No one will ask them
about their dress,
their long siestas
after lunch,
no one will want to know
about their sterile combats
with “the idea
of the nothing”
no one will care about
their higher financial learning.

They won’t be questioned
on Greek mythology,
or regarding their self-disgust
when someone within them
begins to die
the coward’s death.

They’ll be asked nothing
about their absurd
justifications,
born in the shadow
of the total lie.

On that day
the simple men will come.
Those who had no place
in the books and poems
of the apolitical intellectuals,
but daily delivered
their bread and milk,
their tortillas and eggs,
those who drove their cars,
who cared for their dogs and gardens
and worked for them,
and they’ll ask:

“What did you do when the poor
suffered, when tenderness
and life
burned out of them?”

Apolitical intellectuals
of my sweet country,
you will not be able to answer.

A vulture of silence
will eat your gut.

Your own misery
will pick at your soul.

And you will be mute in your shame.

--- Otto Rene Castillo

24 जुलाई 2021

अमीरों का कोरस

जो हैं गरीब उनकी जरूरतें कम हैं
कम हैं जरूरतें तो मुसीबतें कम हैं
हम मिल-जुल के गाते गरीबों की महिमा
हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं

वे नंगे रहते हैं बड़े मजे में
वे भूखों रह लेते हैं बड़े मजे में
हमको कपड़ों पर और चाहिए कपड़े
खाते-खाते अपनी नाकों में दम है

वे कभी कभी कानून भंग करते हैं
पर भले लोग हैं, ईश्वर से डरते हैं
जिसमें श्रद्धा या निष्ठा नहीं बची है
वह पशुओं से भी नीचा और अधम है

अपनी श्रद्धा भी धर्म चलाने में है
अपनी निष्ठा तो लाभ कमाने में है
ईश्वर है तो शांति, व्यवस्था भी है
ईश्वर से कम कुछ भी विध्वंस परम है

करते हैं त्याग गरीब स्वर्ग जाएँगे
मिट्टी के तन से मुक्ति वहीं पाएँगे
हम जो अमीर हैं सुविधा के बंदी हैं
लालच से अपने बंधे हरेक कदम हैं

इतने दुख में हम जीते जैसे-तैसे
हम नहीं चाहते गरीब हों हम जैसे
लालच न करें, हिंसा पर कभी न उतरें
हिंसा करनी हो तो दंगे क्या कम हैं

जो गरीब हैं उनकी जरूरतें कम हैं
कम हैं मुसीबतें, अमन चैन हरदम है
हम मिल-जुल के गाते गरीबों की महिमा
हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं

18 जुलाई 2021

सब याद रखा जाएगा

तुम हमें क़त्ल कर दो, हम बनके भूत लिखेंगे,
तुम्हारे क़त्ल के, सारे सबूत लिखेंगे,
तुम अदालतों से चुटकुले लिखो;
हम दीवारों पे ‘इंसाफ़’ लिखेंगे।
बहरे भी सुन लें इतनी ज़ोर से बोलेंगे।
अंधे भी पढ़ लें इतना साफ़ लिखेंगे।
तुम ‘काला कमल’ लिखो;
हम ‘लाल गुलाब’ लिखेंगे।
तुम ज़मीं पे ‘ज़ुल्म’ लिखो;
आसमान में ‘इंक़लाब’ लिखा जाएगा,
सब याद रखा जाएगा,
सब कुछ याद रखा जाएगा।
ताके तुम्हारे नाम पर लानतें भेजी जा सकें;
ताके तुम्हारे मुजस्समों पे कालिखें पोती जा सकें;
तुमारे नाम, तुम्हारे मुजस्समों को आबाद रखा जाएगा;
सब याद रखा जाएगा,
सब कुछ याद रखा जाएगा।

---आमिर अज़ीज़

12 जुलाई 2021

कुछ सूचनाएँ

सबसे अधिक हत्याएँ
समन्वयवादियों ने की।
दार्शनिकों ने
सबसे अधिक ज़ेवर खरीदा।
भीड़ ने कल बहुत पीटा
उस आदमी को
जिस का मुख ईसा से मिलता था।

वह कोई और महीना था।
जब प्रत्येक टहनी पर फूल खिलता था,
किंतु इस बार तो
मौसम बिना बरसे ही चला गया
न कहीं घटा घिरी
न बूँद गिरी
फिर भी लोगों में टी.बी. के कीटाणु
कई प्रतिशत बढ़ गए

कई बौखलाए हुए मेंढक
कुएँ की काई लगी दीवाल पर
चढ़ गए,
और सूरज को धिक्कारने लगे
--व्यर्थ ही प्रकाश की बड़ाई में बकता है
सूरज कितना मजबूर है
कि हर चीज़ पर एक सा चमकता है।

हवा बुदबुदाती है
बात कई पर्तों से आती है—
एक बहुत बारीक पीला कीड़ा
आकाश छू रहा था,
और युवक मीठे जुलाब की गोलियाँ खा कर
शौचालयों के सामने
पँक्तिबद्ध खड़े हैं।

आँखों में ज्योति के बच्चे मर गए हैं
लोग खोई हुई आवाज़ों में
एक दूसरे की सेहत पूछते हैं
और बेहद डर गए हैं।

सब के सब
रोशनी की आँच से
कुछ ऐसे बचते हैं
कि सूरज को पानी से
रचते हैं।

बुद्ध की आँख से खून चू रहा था
नगर के मुख्य चौरस्ते पर
शोकप्रस्ताव पारित हुए,
हिजड़ो ने भाषण दिए
लिंग-बोध पर,
वेश्याओं ने कविताएँ पढ़ीं
आत्म-शोध पर
प्रेम में असफल छात्राएँ
अध्यापिकाएँ बन गई हैं
और रिटायर्ड बूढ़े
सर्वोदयी-
आदमी की सबसे अच्छी नस्ल
युद्धों में नष्ट हो गई,
देश का सबसे अच्छा स्वास्थ्य
विद्यालयों में
संक्रामक रोगों से ग्रस्त है

(मैंने राष्ट्र के कर्णधारों को
सड़को पर
किश्तियों की खोज में
भटकते हुए देखा है)

संघर्ष की मुद्रा में घायल पुरुषार्थ
भीतर ही भीतर
एक निःशब्द विस्फोट से त्रस्त है

पिकनिक से लौटी हुई लड़कियाँ
प्रेम-गीतों से गरारे करती हैं
सबसे अच्छे मस्तिष्क,
आरामकुर्सी पर
चित्त पड़े हैं।

8 जुलाई 2021

Two Poems by Mourid Barghouti

PRISON

Man said:
blessed are the birds in their cages
for they, at least,
know the limits
of their prisons.

SILENCE

Silence said:
truth needs no eloquence,
After the death of the horseman,
the homeward-bound horse
says everything
without saying anything.

--- Mourid Barghouti (translated by Radwa Ashour)

4 जुलाई 2021

American Names

I have fallen in love with American names,
The sharp names that never get fat,
The snakeskin-titles of mining-claims,
The plumed war-bonnet of Medicine Hat,
Tucson and Deadwood and Lost Mule Flat.

Seine and Piave are silver spoons,
But the spoonbowl-metal is thin and worn,
There are English counties like hunting-tunes
Played on the keys of a postboy's horn,
But I will remember where I was born.

I will remember Carquinez Straits,
Little French Lick and Lundy's Lane,
The Yankee ships and the Yankee dates
And the bullet-towns of Calamity Jane.
I will remember Skunktown Plain.

I will fall in love with a Salem tree
And a rawhide quirt from Santa Cruz,
I will get me a bottle of Boston sea
And a blue-gum nigger to sing me blues.
I am tired of loving a foreign muse.

Rue des Martyrs and Bleeding-Heart-Yard,
Senlis, Pisa, and Blindman's Oast,
It is a magic ghost you guard
But I am sick for a newer ghost,
Harrisburg, Spartanburg, Painted Post.

Henry and John were never so
And Henry and John were always right?
Granted, but when it was time to go
And the tea and the laurels had stood all night,
Did they never watch for Nantucket Light?

I shall not rest quiet in Montparnasse.
I shall not lie easy at Winchelsea.
You may bury my body in Sussex grass,
You may bury my tongue at Champmedy.
I shall not be there. I shall rise and pass.
Bury my heart at Wounded Knee.

---Stephen Vincent Bene

1 जुलाई 2021

Poems on The Dreyfus Affair

1. "Dreyfus"

France has no dungeon in her island tomb
So deep that she may hide injustice there;
The cry of innocence, despite her care,—
Despite her roll of drums, her cannon's boom,
Is heard wherever human hearts have room
For sympathy: a sob upon the air,
Echoed and re-echoed everywhere,
It swells and swells, a prophecy of doom.
Thou latest victim of an ancient hate!
In agony so awfully alone,
The world forgets thee not, nor can forget.
Such martyrdom she feels to be her own,
And sees involved in thine her larger fate;
She questions, and thy foes shall answer yet.


2. Dreyfus

If thou art living, in that Devil's Isle
Inquisitorial and darkly vile,
Where human hearts are pitilessly broken;
Where treacherous hate seems stronger
Than either right or law; where grief hath spoken
Its final word and asks but to forget:
If thou art living, wretched one! live yet
A little longer!
Outcast, forsaken, thou art not alone,
One bides with thee Who shall thy woes atone,
And France, entangled in her toils of hate,
Hearkens a voice of warning.
Martyr and hope of an imperiled State,
Live yet a little! In the East is light—
A pledge to thee that long tho seem the night,
There comes the morning!

3. Picquart

"For love of justice and for love of truth!"
Aye, 't was for these, for these, he put aside
Place and preferment, fortune and the pride
Of fair renown; the friends he prized, in sooth,
All the rewards of an illustrious youth,
And set his strength against a swollen tide,
And gave his spirit to be crucified,—
For love of justice and for love of truth!
Keeper of the abiding scroll of fame,
Lo! we intrust to thee a hero's name!
Life, like a restless river, hurrying by,
Bears us so swiftly on, we may forget
The name to which we owe so deep a debt,—
But guard it, thou! nor suffer it to die!

4. Le Grand Salut

There is a power in innocence, a might
Which, clothed in weakness, makes injustice vain:
A strength, o'ertopping reason to explain,
Which bears it—though deep-buried out of sight—
Slowly and surely upward to the light:
A conscious certainty amidst its pain
That, robbed of all things, it shall all regain,
Through that eternal law which guards the right.
O Dreyfus! Thy dear country has restored
More than thine honour in her hour supreme.
Noble, still noble, though she so could err,
God spared thee to her that she might redeem
Herself, and hand thee back thy blameless sword.
Listen! the world salutes—not only thee, but her!

---Florence Van Leer Earle Nicholson Coates

27 जून 2021

हम होंगे कामयाब

होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन

होगी शान्ति चारों ओर
होगी शान्ति चारों ओर
होगी शान्ति चारों ओर एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
होगी शान्ति चारों ओर एक दिन

हम चलेंगे साथ साथ
डाले हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ साथ एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ साथ एक दिन

नहीं डर किसी का आज
नहीं भय किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज के दिन

 --- Charles Albert Tindley (We Shall Overcome का गिरिजा कुमार माथुर द्वारा किया गया हिंदी भावानुवाद)

23 जून 2021

सीढ़ी

मुझे एक सीढ़ी की तलाश है
सीढ़ी दीवार पर चढ़ने के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए

मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूं

---नरेश सक्सेना

17 जून 2021

इंसाफ की डगर पर

इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के

दुनिया के रंज सहना और, कुछ ना मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
इंसाफ़ की डगर पे...

अपने हों या पराए, सब के लिए हो न्याय
देखों क़दम तुम्हारा, हरगिज़ ना डगमगाए
रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभल-संभल के
इंसाफ़ की डगर पे...

इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
इंसाफ़ की डगर पे...

--- शकील बदायूँनी

10 जून 2021

Harlem

What happens to a dream deferred?


Does it dry up
like a raisin in the sun?
Or fester like a sore—
And then run?
Does it stink like rotten meat?
Or crust and sugar over—
like a syrupy sweet?

Maybe it just sags
like a heavy load.

Or does it explode?

---Langston Hughes

7 जून 2021

And the cities are falling asleep, each in its hour...

Warm wind in the palm leaves, and I think of snow
In my distance province when things happen
That belonged to another, inconceivable life.
The bright side of the planet moves toward darkness
And the cities are falling asleep, each in its hour,
And for me, now as then, it is too much.
There is too much world.

--- Czeslaw Milosz ( The Seperate Notebook)

3 जून 2021

दीमकें

दीमकों को
पढ़ना नहीं आता

वे चाट जाती हैं
पूरी
क़िताब

---नरेश सक्सेना

31 मई 2021

You Learn

After a while you learn the subtle difference
Between holding a hand and chaining a soul,

And you learn that love doesn’t mean leaning
And company doesn’t mean security.

And you begin to learn that kisses aren’t contracts
And presents aren’t promises,

And you begin to accept your defeats
With your head up and your eyes open
With the grace of a woman, not the grief of a child,

And you learn to build all your roads on today
Because tomorrow’s ground is too uncertain for plans
And futures have a way of falling down in mid-flight.

After a while you learn…
That even sunshine burns if you get too much.

So you plant your garden and decorate your own soul,
Instead of waiting for someone to bring you flowers.

And you learn that you really can endure…
That you really are strong
And you really do have worth…
And you learn and learn…With every good-bye you learn..

--- Jorge Luis Borges

27 मई 2021

They’ve taken us prisoner

They’ve taken us prisoner,
they’ve locked us up:
me inside the walls
you outside

But that’s nothing.
The worst
is when people—knowingly or not—
carry prison inside themselves . . .
Most people have been forced to do this,
honest, hard-working, good people
who deserve to be loved much as I love you

–-- Nazim Hikmet
Excerpt from, 9-10pm. Poems. Translated from Turkish by Randy Blasing and Mutlu Konuk

20 मई 2021

शव वाहिनी गंगा

एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाति घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

---पारुल कक्कड
Hindi translation by Ilyas Sheikh

19 मई 2021

राजे ने अपनी रखवाली की

राजे ने अपनी रखवाली की; 
किला बनाकर रहा; 
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । 
चापलूस कितने सामन्त आए । 
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए । 
कितने ब्राह्मण आए पोथियों में जनता को बाँधे हुए । 
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए, 
लेखकों ने लेख लिखे, 
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे, 
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे रंगमंच पर खेले । 
जनता पर जादू चला राजे के समाज का । 
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं । 
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ । 
लोहा बजा धर्म पर, 
सभ्यता के नाम पर । 
ख़ून की नदी बही । 
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं । 
आँख खुली-- राजे ने अपनी रखवाली की । 

14 मई 2021

फिर भी

उसका कुछ भी तो नहीं था
पास मेरे
न कोई ख़त, न सपना
न कोई याद, न दुआ
न कोई अँगूठी, न छल्ला
न कोई रूमाल
उसका कुछ भी तो नहीं था
मेरे पास

न उसके साथ बिताया दिन कोई
न अकेले जाग कर काटी कोई रात
न ख़ामोशी, न आवाज़ कोई
न यादों में सुलगती कोई बात
कुछ भी नहीं था उसका
मेरे पास

न कोई पहाड़ों की स्मृति
न किसी समुन्दरी किनारे की रेत
न कोई गुनगुना दिन, न तीखी दोपहर
न किसी जाड़े की निघ्घी धूप
न उसकी हँसी, न गहरी चुप
उसका कुछ भी तो नहीं था
मेरे पास

उसका
कुछ भी तो नहीं था
पास मेरे

लेकिन फिर भी न जाने क्यों
वह छटपटा रही थी
मुझसे मुक्त होने के लिए ।

 ---अमरजीत कौंके

10 मई 2021

My Poem Will Not Save You

Remember the toddler lying face down
on the sand, and the waves gently receding
from his body as if a forgotten dream?

My poem will not turn him onto his back
and lift him up
to his feet
so he can run
into a familiar lap
like before.
I am sorry
my poem will not
block the shells
when they fall
onto a sleeping town,
will not stop the buildings
from collapsing
around their residents,
will not pick up the broken-leg flower
from under the shrapnel,
will not raise the dead.

My poem will not defuse
the bomb
in the public square.
It will soon explode
where the girl insists
that her father buy her gum.

My poem will not rush them
to leave the place
and ride the car
that will just miss the explosion.
Many mistakes in life
will not be corrected by my poem.
Questions will not be answered.
I am sorry
my poem will not save you.

My poem cannot return
all of your losses,
not even some of them,
and those who went far away
my poem won’t know how to bring them back
to their lovers.
I am sorry.
I don’t know why the birds
sing
during their crossings
over our ruins.

Their songs will not save us,
although, in the chilliest times,
they keep us warm,
and when we need to touch the soul
to know it’s not dead
their songs
give us that touch.

--- Dunya Mikhail

3 मई 2021

हस्‍तक्षेप

कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए

मगध है, तो शांति है

कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्‍यवस्‍था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्‍यवस्‍था रहनी ही चाहिए

मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्‍या कहेंगे लोग?

लोगों का क्‍या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,

रहने को नहीं

कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए

एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्‍तक्षेप-

वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्‍तक्षेप से-

जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्‍न कर हस्‍तक्षेप करता है-
मनुष्‍य क्‍यों मरता है?

---श्रीकांत वर्मा

1 मई 2021

मजदूर हैं हम

मजदूर हैं हम
और मानते हैं कि तुमसे थोड़ा अलग है
तुम्हारे जिस्म लहू और हड्डियों से बने हैं
हमारे सीमेंट और गिट्टियों से,
तुम मां की कोख से जन्म लेते हो
हम कारखाने की भट्ठियों से,
हम खदानों का कोयला है
तुम तिजोरी का सोना
तुम्हें पूरी दुनिया चाहिए
हमें सिर्फ एक कोना
बहुत मुश्किल है
तुम्हारा और हमारा एक साथ होना

ये बराबरी का दौर है
यहां किसी को छोटा कहते अच्छा नहीं लगता
पर तुम्हें कहे भी तो क्या कहें?
तुम बेचारे महंगे मर्तबानो के मारे
अपनी प्यास के लिए मिट्टी के प्याले नहीं कमा पाए
जिंदगी भर दौड़ते रहे और हमारी तरह पैरों के छाले नहीं कमा पाए
स्क्वैर-फिट्स के बाशिंदों कभी जमीन बिछाकर सोए हो क्या?
ब्रेक्सिट पर आंसू बहाने वालों कभी भरत मिलाप देख कर रोए हो क्या?
तुम्हारे जख्म मरहमों के मोहताज हैं
और हमें चोट लग जाए तो धूप के फरिश्ते आकर अपनी उंगलियों का सेक देते हैं
तुम्हारे पास दुखों के वो हीरे कहां?
जो हमारे बच्चे खेल के फेक देते हैं

तुम जुगनूओं के जागीरदार
हम तड़पता हुआ आफ़ताब हैं
तुम नक्शों पे खींची तंग दिल हकीकत
हम नई दुनिया का दरिया दिल ख़्वाब है
तुम सिर्फ जिंदाबाद हो,
हम इंकलाब हैं
यानी तुम बहुत मामूली हो,
हम बहुत नायाब हैं

इसलिए आज हम अपनी गलती कुबूल करते हैं
हमने मांगने से पहले देने वाले का बौनापन नहीं देखा
हमारी मेहनतों का कद तुम्हारी इमारतों से बड़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
तुम्हारी एक-एक ईंट पे हमारे पसीने का उधार चढ़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
21वीं सदी में महाशक्ति बनने का तुम्हारा सपना, हमारे पैरों पर खड़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
हम देते हैं तुम्हे, ये वचन की आज तुम्हें छोड़कर जा रहे हैं
पर वापस लौट के आएंगे,
तुम्हारी ये कायनात जो उजड़ गई है,
इसे फिर बसाएगे
जिंदगी का मलबा देखकर आंसू मत बहाओ,
हम ईश्वर के हाथ हैं
तुम्हारे लिए एक नई दुनिया बनाएंगे।

---मनोज मुंतशिर

24 अप्रैल 2021

The Art Of Poetry

To gaze at a river made of time and water
And remember Time is another river.
To know we stray like a river
and our faces vanish like water.

To feel that waking is another dream
that dreams of not dreaming and that the death
we fear in our bones is the death
that every night we call a dream.

To see in every day and year a symbol
of all the days of man and his years,
and convert the outrage of the years
into a music, a sound, and a symbol.

To see in death a dream, in the sunset
a golden sadness--such is poetry,
humble and immortal, poetry,
returning, like dawn and the sunset.

Sometimes at evening there's a face
that sees us from the deeps of a mirror.
Art must be that sort of mirror,
disclosing to each of us his face.

They say Ulysses, wearied of wonders,
wept with love on seeing Ithaca,
humble and green. Art is that Ithaca,
a green eternity, not wonders.

Art is endless like a river flowing,
passing, yet remaining, a mirror to the same
inconstant Heraclitus, who is the same
and yet another, like the river flowing.

--- Jorge Luis Borges

21 अप्रैल 2021

ठाकुर का कुआँ

चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।

भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?

--- ओमप्रकाश वाल्‍मीकि (नवम्बर, 1981)

14 अप्रैल 2021

गीत फरोश

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ।
जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं हैं, काम बताऊँगा,
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने,
यह गीत सख्त सर-दर्द भुलाएगा,
यह गीत पिया को पास बुलाएगा।

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको,
पर बाद-बाद में अक्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिए ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान–
मैं सोच समझ कर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ,
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ।

यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,
यह गीत गज़ब का है, ढा कर देखें,
यह गीत ज़रा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है,
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है।

यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुजूर,
यह गीत तपेदिक की है दवा है हुजूर,
जी, और गीत भी हैं दिखलाता हूँ,
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ।

जी, छंद और बेछंद पसंद करें,
जी अमर गीत और वे जो तुरत मरें!
ना, बुरा मानने की इसमें बात,
मैं ले आता हूँ, कलम और दवात,
इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ,
जी, नए चाहिए नहीं, गए लिख दूँ,
मैं नए, पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ,
जी हाँ, हुजूर मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ।

मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ।
जी, गीत जनम का लिखूँ मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का,
कुछ और डिजाइन भी हैं, यह इलमी,
यह लीजे चलती चीज़, नई फ़िल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,
यह दुकान से घर जाने का गीत।

जी नहीं, दिल्लगी की इसमें क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी, रूठ-रूठ कर मन जाते हैं गीत!
जी, बहुत ढेर लग गया, हटाता हूँ,
गाहक की मर्ज़ी, अच्छा जाता हूँ,
या भीतर जाकर पूछ आइए आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप,
क्या करूँ मगर लाचार
हार कर गीत बेचता हूँ।

जी हाँ, हुजूर मैं गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ।

भवानी प्रसाद मिश्र

10 अप्रैल 2021

उत्तर आधुनिक आलोचक

जब मैंने भूख को भूख कहा
प्यार को प्यार कहा
तो उन्हें बुरा लगा

जब मैंने
पक्षी को पक्षी कहा
आकाश को आकाश कहा
वृक्ष को वृक्ष
और शब्द को शब्द कहा
तो उन्हें बुरा लगा

परन्तु जब मैंने
कविता के स्थान पर
अकविता लिखी
औरत को
सिर्फ़ योनि बताया
रोटी के टुकड़े को
चांद लिखा
स्याह रंग को
लिखा गुलाबी
काले कव्वे को
लिखा मुर्गाबी

तो वे बोले-
वाह ! भई वाह !!
क्या कविता है
भई वाह !!

---अमरजीत कौंके

7 अप्रैल 2021

पुल पार करने से

पुल पार करने से पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती

नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना

नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ लोहा-लंगड़ पार होता है

कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती है।

--- नरेश सक्सेना

1 अप्रैल 2021

उल्लू हौ

तुम चाहत हौ भाईचारा?
उल्लू हौ।
देखै लाग्यौ दिनै मा तारा?
उल्लू हौ।
समय कै समझौ यार इशारा
उल्लू हौ,
तुमहू मारौ हाथ करारा
उल्लू हौ।
जवान बीवी छोड़ के दुबई भागत हौ?
जैसे तैसे करौ गुजारा
उल्लू हौ।
कहत रहेन ना फँसौ प्यार के चक्कर मा
झुराय के होइ गयेव छोहारा
उल्लू हौ।
डिगिरी लैके बेटा दर दर भटकौ ना,
हवा भरौ बेँचौ गुब्बारा
उल्लू हौ।
इनका उनका रफीक का गोहरावत हौ?
जब उ चहिहैं मिले किनारा
उल्लू हौ

--- रफ़ीक शादानी

23 मार्च 2021

अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गांव में

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के

कह रही है झोपडी औ’ पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के

बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के

कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के

हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेडि़याँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के

दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के

एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के

तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में

देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के

---बल्ली सिंह चीमा

15 मार्च 2021

"Estadio Chile", or "Somos Cinco Mil"

There are five thousand of us herein this small part of the city.
We are five thousand.
I wonder how many we are in all
in the cities and in the whole country?
Here alone
are ten thousand hands which plant seeds
and make the factories run.
How much humanity
exposed to hunger, cold, panic, pain,
moral pressure, terror and insanity?
Six of us were lost
as if into starry space.
One dead, another beaten as I could never have believed
a human being could be beaten.
The other four wanted to end their terror
one jumping into nothingness,
another beating his head against a wall,
but all with the fixed stare of death.
What horror the face of fascism creates!
They carry out their plans with knife-like precision.
Nothing matters to them.
To them, blood equals medals,
slaughter is an act of heroism.
Oh God, is this the world that you created,
for this your seven days of wonder and work?
Within these four walls only a number exists
which does not progress,
which slowly will wish more and more for death.
But suddenly my conscience awakes
and I see that this tide has no heartbeat,
only the pulse of machines
and the military showing their midwives' faces
full of sweetness.
Let Mexico, Cuba and the world
cry out against this atrocity!
We are ten thousand hands
which can produce nothing.
How many of us in the whole country?
The blood of our President, our compañero,
will strike with more strength than bombs and machine guns!
So will our fist strike again!

How hard it is to sing
when I must sing of horror.
Horror which I am living,
horror which I am dying.
To see myself among so much
and so many moments of infinity
in which silence and screams
are the end of my song.
What I see, I have never seen
What I have felt and what I feel
Will give birth to the momentÂ…

8 मार्च 2021

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार
तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल
क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़
तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

---कैफ़ी आज़मी

1 मार्च 2021

मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा


मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।

आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।। 

कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।

जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।। 

मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।। 

कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।। 

23 फ़रवरी 2021

पुल बन गया था

 मैं जिन लोगों के लिए

पुल बन गया था 

वे जब मुझ पर से 

गुज़र कर जा रहे थे

मैंने सुना—मेरे बारे में कह रहे थे :

वह कहाँ छूट गया 

चुप-सा आदमी?

शायद पीछे लौट गया है!

हमें पहले ही ख़बर थी

उसमें दम नहीं है।

--- सुरजीत पातर  

पंजाबी से अनुवाद : चमनलाल


20 फ़रवरी 2021

10-Year-Old Shot Three Times, but She’s Fine

Dumbfounded in hospital whites, you are picture-book
itty-bit, floundering in bleach and steel. Braids untwirl
and corkscrew, you squirm, the crater in your shoulder
spews a soft voltage. On a TV screwed into the wall
above your head, neon rollicks. A wide-eyed train
engine perfectly smokes, warbles a song about forward.

Who shot you, baby?
I don’t know. I was playing.
You didn’t see anyone?
I was playing with my friend Sharon.
I was on the swing
and she was—
Are you sure you didn’t—
No, I ain’t seen nobody but Sharon. I heard
people yelling though, and—

Each bullet repainted you against the brick, kicked
you a little sideways, made you need air differently.
You leaked something that still goldens the boulevard.
I ain’t seen nobody, I told you.
And at A. Lincoln Elementary on Washington Street,
or Jefferson Elementary on Madison Street, or Adams
Elementary just off the Eisenhower Expressway,
we gather the ingredients, if not the desire, for pathos:

an imploded homeroom, your empty seat pulsating
with drooped celebrity, the sometime counselor
underpaid and elsewhere, a harried teacher struggling
toward your full name. Anyway your grades weren’t
all that good. No need to coo or encircle anything,
no call for anyone to pull their official white fingers
through your raveled hair, no reason to introduce
the wild notion of loving you loud and regardless.

Oh, and they’ve finally located your mama, who
will soon burst in with her cut-rate cure of stammering
Jesus’ name. Beneath the bandages, your chest crawls
shut. Perky ol’ Thomas winks a bold-faced lie from
his clacking track, and your heart monitor hums
a wry tune no one will admit they’ve already heard.

Elsewhere, 23 seconds rumble again and again through
Sharon’s body. Boom, boom, she says to no one.

14 फ़रवरी 2021

Ode to the flute

A man sings
by opening his
mouth a man
sings by opening
his lungs by
turning himself into air
a flute can
be made of a man
nothing is explained
a flute lays
on its side
and prays a wind
might enter it
and make of it
at least
a small final song

3 फ़रवरी 2021

Strange Fruits

Southern trees bear a strange fruit
Blood on the leaves and blood at the root
Black bodies swingin' in the Southern breeze
Strange fruit hangin' from the poplar trees

Pastoral scene of the gallant South
The bulgin' eyes and the twisted mouth
Scent of magnolias sweet and fresh
Then the sudden smell of burnin' flesh

Here is a fruit for the crows to pluck
For the rain to gather, for the wind to suck
For the sun to rot, for the tree to drop
Here is a strange and bitter crop

1 फ़रवरी 2021

My Mother’s Fault

You marched with other seven-year-old girls,
Singing songs of freedom at dawn in rural Gujarat,
Believing that would shame the British and they would leave India. 

Five years later, they did. You smiled, 
When you first saw Maqbool Fida Husain’s nude sketches of Hindu goddesses, 
And laughed, 
When I told you that some people wanted to burn his art. 
‘Have those people seen any of our ancient sculptures? Those are far naughtier,’ You said.

Your voice broke, On December 6, 1992, 
As you called me at my office in Singapore, 
When they destroyed the Babri Masjid. 
‘We have just killed Gandhi again,’ you said. 
We had. Aavu te karaay koi divas (Can anyone do such a thing any time?) 

You asked, aghast, Staring at the television, 
As Hindu mobs went, house-to-house, 
Looking for Muslims to kill, 
After a train compartment in Godhra burned, 
Killing 58 Hindus in February 2002. 
You were right, each time. 

After reading what I’ve been writing over the years, 
Some folks have complained that I just don’t get it. 
I live abroad: what do I know of India? 
But I knew you; that was enough. 
And that’s why I turned out this way. 

30 जनवरी 2021

आएँगे उजले दिन ज़रूर आएँगे

आतंक सरीखी बिछी हुई हर ओर बर्फ़
है हवा कठिन, हड्डी-हड्डी को ठिठुराती
आकाश उगलता अन्धकार फिर एक बार
संशय विदीर्ण आत्मा राम की अकुलाती

होगा वह समर, अभी होगा कुछ और बार
तब कहीं मेघ ये छिन्न -भिन्न हो पाएँगे

तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे
जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे
हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
चीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहे

पर डरो नहीं, चूहे आखिर चूहे ही हैं
जीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पाएँगे

यह रक्तपात यह मारकाट जो मची हुई
लोगों के दिल भरमा देने का ज़रिया है
जो अड़ा हुआ है हमें डराता रस्ते पर
लपटें लेता घनघोर आग का दरिया है

सूखे चेहरे बच्चों के उनकी तरल हँसी
हम याद रखेंगे, पार उसे कर जाएँगे

मैं नहीं तसल्ली झूठ-मूठ की देता हूँ
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है
हर दौर कभी तो ख़त्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है

आए हैं जब चलकर इतने लाख बरस
इसके आगे भी चलते ही जाएँगे

आएँगे उजले दिन ज़रूर आएँगे

---वीरेन डंगवाल

26 जनवरी 2021

छोड़ो कल की बातें (हम हिन्दुस्तानी 1961)


छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी
नए दौर में लिखेंगे मिल कर नयी कहानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी…
आज पुरानी जंजीरों को तोड़ चुके है
क्या देखे उस मंजिल को जो छोड़ चुके है
चाँद के दर पे जा पंहुचा है आज ज़माना
नए जगत से हम भी नाता जोड़ चुके है
नया खून है नयी उमंगें अब है नयी जवानी

हमको कितने ताजमहल है और बनाने
कितने ही अजन्ता है, हमको और सजाने
अभी पलटना है रुख कितने दरियाओ का
कितने पर्वत राहो से है आज हटाने
आओ मेहनत को अपना इमान बनाये
अपने हाथों से अपना भगवान बनाये
राम की इस धरती को, गौतम की इस भूमि को
सपनो से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाये
नया खून है नयी उमंगें अब है नयी जवानी

दाग गुलामी का धोया है जान लुटा के…
दीप जलाये है कितने दीप बुझा के…
मिली है आज़ादी तो, इस आज़ादी को…
रखना होगा हर दुश्मन से आज बचा के…

हर जर्रा है मोती आँख उठाकर देखो
मिटटी में है सोना हाथ बढाकर देखो
सोने की ये गंगा है, चाँदी की जमुना
चाहो तो पत्थर पे धान उगाकर के देखो

नए दौर में लिखेंगे मिल कर नयी कहानी…

--- प्रेम धवन

22 जनवरी 2021

The Hill We Climb


When day comes we ask ourselves,
where can we find light in this never-ending shade?
The loss we carry,
a sea we must wade

We’ve braved the belly of the beast
We’ve learned that quiet isn’t always peace
And the norms and notions
of what just is

Isn’t always just-ice
And yet the dawn is ours
before we knew it
Somehow we do it

Somehow we’ve weathered and witnessed
a nation that isn’t broken
but simply unfinished
We the successors of a country and a time
Where a skinny Black girl
descended from slaves and raised by a single mother
can dream of becoming president
only to find herself reciting for one
And yes we are far from polished
far from pristine
but that doesn’t mean we are
striving to form a union that is perfect
We are striving to forge a union with purpose
To compose a country committed to all cultures, colors, characters and
conditions of man
And so we lift our gazes not to what stands between us
but what stands before us
We close the divide because we know, to put our future first,
we must first put our differences aside
We lay down our arms
so we can reach out our arms
to one another
We seek harm to none and harmony for all
Let the globe, if nothing else, say this is true:
That even as we grieved, we grew
That even as we hurt, we hoped
That even as we tired, we tried
That we’ll forever be tied together, victorious
Not because we will never again know defeat
but because we will never again sow division
Scripture tells us to envision
that everyone shall sit under their own vine and fig tree
And no one shall make them afraid
If we’re to live up to our own time
Then victory won’t lie in the blade
But in all the bridges we’ve made
That is the promise to glade
The hill we climb
If only we dare
It’s because being American is more than a pride we inherit,
it’s the past we step into
and how we repair it
We’ve seen a force that would shatter our nation
rather than share it
Would destroy our country if it meant delaying democracy
And this effort very nearly succeeded
But while democracy can be periodically delayed
it can never be permanently defeated
In this truth
in this faith we trust
For while we have our eyes on the future
history has its eyes on us
This is the era of just redemption
We feared at its inception
We did not feel prepared to be the heirs
of such a terrifying hour
but within it we found the power
to author a new chapter
To offer hope and laughter to ourselves
So while once we asked,
how could we possibly prevail over catastrophe?
Now we assert
How could catastrophe possibly prevail over us?
We will not march back to what was
but move to what shall be
A country that is bruised but whole,
benevolent but bold,
fierce and free
We will not be turned around
or interrupted by intimidation
because we know our inaction and inertia
will be the inheritance of the next generation
Our blunders become their burdens
But one thing is certain:
If we merge mercy with might,
and might with right,
then love becomes our legacy
and change our children’s birthright
So let us leave behind a country
better than the one we were left with
Every breath from my bronze-pounded chest,
we will raise this wounded world into a wondrous one
We will rise from the gold-limbed hills of the west,
we will rise from the windswept northeast
where our forefathers first realized revolution
We will rise from the lake-rimmed cities of the midwestern states,
we will rise from the sunbaked south
We will rebuild, reconcile and recover
and every known nook of our nation and
every corner called our country,
our people diverse and beautiful will emerge,
battered and beautiful
When day comes we step out of the shade,
aflame and unafraid
The new dawn blooms as we free it
For there is always light,
if only we’re brave enough to see it
If only we’re brave enough to be it

21 जनवरी 2021

A Man Doesn't Have Time In His Life

A man doesn't have time in his life
to have time for everything.
He doesn't have seasons enough to have
a season for every purpose. Ecclesiastes
Was wrong about that.

A man needs to love and to hate at the same moment,
to laugh and cry with the same eyes,
with the same hands to throw stones and to gather them,
to make love in war and war in love.
And to hate and forgive and remember and forget,
to arrange and confuse, to eat and to digest
what history
takes years and years to do.

A man doesn't have time.
When he loses he seeks, when he finds
he forgets, when he forgets he loves, when he loves
he begins to forget.

And his soul is seasoned, his soul
is very professional.
Only his body remains forever
an amateur. It tries and it misses,
gets muddled, doesn't learn a thing,
drunk and blind in its pleasures
and its pains.

He will die as figs die in autumn,
Shriveled and full of himself and sweet,
the leaves growing dry on the ground,
the bare branches pointing to the place
where there's time for everything.

--- Yehuda Amichai (Note: From "The Selected Poetry of Yehuda Amichai", translations by ChanaBloch and Stephen Mitchell)

20 जनवरी 2021

A Worker Reads History

Who built the seven gates of Thebes?
The books are filled with names of kings.
Was it the kings who hauled the craggy blocks of stone?
And Babylon, so many times destroyed.
Who built the city up each time? In which of Lima's houses,
That city glittering with gold, lived those who built it?
In the evening when the Chinese wall was finished
Where did the masons go? Imperial Rome
Is full of arcs of triumph. Who reared them up? Over whom
Did the Caesars triumph? Byzantium lives in song.
Were all her dwellings palaces? And even in Atlantis of the legend
The night the seas rushed in,
The drowning men still bellowed for their slaves.

Young Alexander conquered India.
He alone?
Caesar beat the Gauls.
Was there not even a cook in his army?
Phillip of Spain wept as his fleet
was sunk and destroyed. Were there no other tears?
Frederick the Greek triumphed in the Seven Years War.
Who triumphed with him?

Each page a victory
At whose expense the victory ball?
Every ten years a great man,
Who paid the piper?

So many particulars.
So many questions.

--- Bertolt Brecht

14 जनवरी 2021

Bitter Cold

There is bitter cold 
At the borders of the city Of indifference. 
Wizened women and men 
And children below their teens 
Lie the frozen nights 
On bare tarmac, 
Surviving by the fire in their hearts, 
And the justice of their cause. 

A glow of truth from their being 
Warms the air and shames the 
Winter of crude impertinence, 
Even as their human bodies may 
Succumb to the December hell.

 Carrying the nursing warmth 
Of the soil in their bones, 
India’s farmers outface the urban 
Cold and show how the real freeze 
Lies in the swollen skull of authority 
Whose hollow cruelty may be stern 
Without human content, but whose 
Pride of office screams for pity. 

 This is truly a new beauty born 
That gathers histories 
Of courage and faith
 In the sounding of the people’s horn 
That may never be stilled 
Either by Nature’s extremes 
Or the flimsy robes worn By Pharaohs of the day. 
Yet again, the ploughshare shows the way. 

13 जनवरी 2021

गीत है यह, गिला नही

 'आये भी वो गये भी वो' 'गीत है यह, गिला नहीं।'

हमने ये कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं।

आपके एक ख़याल में मिलते रहे हम आपसे

ये भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं।

गर्मे-सफर हैं आप, तो हम भी हैं भीड़ में कहीं।

अपना भी काफ़िला है कुछ आप ही का काफ़िला नहीं।

दर्द को पूछते थे वो, मेरी हँसी थमी नहीं,

दिल को टटोलते थे वो, मेरा जिगर हिला नहीं।

आयी बहार हुस्‍न का खाबे-गराँ लिये हुए,

मेरे चमन को क्‍या हुआ, जो कोई गुल खिला नहीं।

उसने किये बहत जतन, हार के कह उठी नज़र,

सीना-ए-चाक का रफू हमसे कभी सिला नहीं।

इश्‍क़ का शायर है ख़ाक, हुस्‍न का जिक्र है मज़ाक़

दर्द में गर चमक नहीं, रूह में गर जिला नहीं।

कौन उठाये उसके नाज, दिल तो उसी के पास है;

'शम्‍स' मजे में हैं कि हम इश्‍क में मुब्तिला नहीं।

---  शमशेर बहादुर सिंह

2 जनवरी 2021

In Flanders Fields

In Flanders fields the poppies blow
Between the crosses, row on row,
That mark our place; and in the sky
The larks, still bravely singing, fly
Scarce heard amid the guns below.

We are the dead. Short days ago
We lived, felt dawn, saw sunset glow,
Loved, and were loved, and now we lie
In Flanders fields.

Take up our quarrel with the foe:
To you from failing hands we throw
The torch; be yours to hold it high.
If ye break faith with us who die
We shall not sleep, though poppies grow
In Flanders fields.

---John McCrae