Aug 23, 2024

एक चंबेली के मंडवे तले

एक चंबेली के मंडवे तले
मैकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़ ए वफ़ा प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन
ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा रु ओ ताज़ा दम फूल पिछले पहर

ठंडी ठंडी सुबक-रव चमन की हवा
सर्फ़ ए मातम हुई
काली काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
हमने देखा उन्हें
दिन और रात में
नूर ओ ज़ुल्मात में
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों की किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें

अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारगर
तेरीज़ंबील में
नुस्ख़ा ए कीमिया ए मोहब्बत भी है
कुछ इलाज ओ मदावा ए उल्फ़त भी है?
एक चंबेली के मंडवे तले
दो बदन।


यह कहानी जमी़ल गुलरेज़ द्वारा साझा की गई है। उन्होंने एक संस्मरण सुनाया कि एक बार वे अपने कैंपस में खुशी-खुशी एक फ़िल्मी गाना गा रहे थे, तभी उनके  टीचर जाफ़री साहब ने उनसे अचानक पूछ लिया, "मियाँ, इल्म है, ये नज़्म मख़्दूम ने क्यूँ कही थी?" जब उन्होंने अनभिज्ञता जताई, तब जाफ़री साहब ने बताया कि हैदराबाद में जब एक नौजवान लड़के और एक नौजवान लड़की को, अलग-अलग मजहब के होने के बावजूद, आपस में शादी करने की वजह से ज़िंदा जला दिया गया था, तब मख़्दूम मोइनुद्दीन ने इस ज़ुल्म और त्रासदी पर शोक मनाने और अपना विरोध जताने के लिए यह नज़्म लिखी थी।(स्रोत: जमी़ल गुलरायस, Founder- Katha Kathan, @gulrayys, ट्विटर पोस्ट, 1 जून 2023)

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