9 जुलाई 2025

शासन सचमुच बंदरों के हाथ में है!

एक दिन बंदरों ने हथिया ली सत्ता
उंगलियों में सोने की अंगूठी ठूंस ली
सफ़ेद कलफ़दार क़मीज़ें पहनीं
सुगंधित हवाना सिगार का कश लगाया
अपने पांव में डाले चमाचम काले जूते!

हमें पता ही न चला, क्योंकि हम दूसरे कामों में व्यस्त थे
कोई अरस्तू पढ़ता रहा, तो कोई आकंठ प्यार में डूबा हुआ था
शासकों के भाषण ऊटपटांग होने लगे
गपड़-सपड़, लेकिन हमने कभी इन्हें ध्यान से सुना ही नहीं
हमें संगीत ज़्यादा पसंद था
युद्ध अधिक वहशी होने लगे
जेलख़ाने पहले से और गंदे हो गये
तब जाकर लगा कि शासन सचमुच बंदरों के हाथ में है!

- आदम ज़गायेव्स्की 

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