Nov 16, 2025

सुभाषितानि -2 (Subhashitani -2)

1. अक्रोधेन जयेत्त्क्रोधम् असाधुं साधुना जयेत्।  जयेत्त्कदर्यं दानेन जयेत्स्तेनं चातुतम्॥  

अर्थ : गुस्से से क्रोध को हराया जा सकता है। बुरे मनुष्य को अच्छे मनुष्य से जीता जा सकता है। दान से लालच को हराया जा सकता है और सत्य बोलने से झूठ पर जीत होती है।  

2. गच्छन् पिपीलिको याति योजनानां शतान्यपि।  अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति॥  

अर्थ : चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन की दूरी तय कर जाती है, परंतु न चलने वाला गरुड़ पक्षी भी एक कदम नहीं बढ़ा सकता। इससे यह सीख मिलती है कि निरंतर प्रयास से ही सफलता मिलती है, चाहे गति धीमी हो।  

3. दिनान्ते च पिबेद् दुग्धं निशान्ते च पिबेत् पयः।  भोजनान्ते च पिबेत् तक्रं किम् वैध्यस्य प्रयोजनम्॥  

अर्थ : दिन के अंत में दूध पिए और रात के अंत में जल पिए। भोजन के अंत में दही पिए। ऐसे आहार से शरीर स्वस्थ रहता है, अन्यथा चिकित्सक (वैद्य) का कोई लाभ नहीं।  

4. षड्दोषाः पुरुषेणेः हाथव्याः भूतमता।  निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता॥  

अर्थ : मनुष्य को छह दोषों से बचना चाहिए, जो उसके विनाश के कारण हैं – नींद, सुस्ती, भय, क्रोध, आलस्य और बहुत लंबे समय तक निरंतर विचार करना।  

5. निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।  

अधेव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीरा:॥  

अर्थ : जो लोग नीति में पारंगत हैं, चाहे उनका कोई भी निंदा करें या स्तुति, लक्ष्मी (श्री, समृद्धि) उनका साथ देती है या नहीं, चलो, मर जाना बेहतर है। क्योंकि जो धीर पुरुष सत्य और न्याय के मार्ग पर चलते हैं, उनका कभी पद भी नहीं हिलता। 

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