May 27, 2009

A paragraph from Vaani

वे कहते,
मैं भाव नही, केवल प्रभाव हूँ।
सूझ नही, केवल सूझाव हूँ
सच यह!
मैं केवल स्वाभाव हूँ।

---Written by Sumitranand Pant in 'Vaani'.

May 25, 2009

Unknown Poem-1

A pound of flesh each, they all claimed

A pound of flesh their very aim

Many pounds lighter now

Happy am no heavy weight

Back to school

Waiting for buddies

At the gate

--- Amol Gupte, the scriptwriterof Taare Zameen Par.

Source : Weblink

May 23, 2009

Ghazal-1

देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में
चल, हुई अब शाम, लौटें हम भी डेरों में

सुब्‍ह की इस दौड़ में ये थक के भूले हम
लुत्फ़ क्या होता है अलसाये सबेरों में

अब न चौबारों पे वो गप्पें-ठहाकें हैं
गुम पड़ोसी हो गयें ऊँची मुँडेरों में

बंदिशें हैं अब से बाजों की उड़ानों पर
सल्तनत आकाश ने बाँटी बटेरों में

देख ली तस्वीर जो तेरी यहाँ इक दिन
खलबली-सी मच गयी सारे चितेरों में

जिसको लूटा था उजालों ने यहाँ पर कल
ढ़ूँढ़ता है आज जाने क्या अँधेरों में

कब पिटारी से निकल दिल्ली गये विषधर
ये सियासत की बहस, अब है सँपेरों में

गज़नियों का खौफ़ कोई हो भला क्यूं कर
जब बँटा हो मुल्क ही सारा लुटेरों में

ग़म नहीं, शिकवा नहीं कोई जमाने से
जिंदगी सिमटी है जब से चंद शेरों में

This work of literature is attributed to Gautam Rajrishi and original work can be traced here.