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13 दिसंबर 2024

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें

प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें

घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें

--- वसीम बरेलवी

29 नवंबर 2024

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था

मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई
जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था

बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था

मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को
हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था

दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था

23 नवंबर 2024

हज़ारों कांटों से

हज़ारों कांटों से दामन बचा लिया मैंने,
अना को मार के सब कुछ बचा लिया मैंने!!

कहीं भी जाऊँ नज़र में हूँ इक ज़माने की,
ये कैसा ख़ुद को तमाशा बना लिया मैंने!!

अज़ीम थे ये दुआओं को उठने वाले हाथ,
न जाने कब इन्हें कासा बना लिया मैंने!!

अंधेरे बीच में आ जाते इससे पहले ही,
दिया तुम्हारे दिये से जला लिया मैंने!!

मुझे जुनून था हीरा तराशने का तो फिर,
कोई भी राह का पत्थर उठा लिया मैंने!!

जले तो हाथ मगर हाँ हवा के हमलों से,
किसी चराग़ की लौ को बचा लिया मैंने!!

25 अक्टूबर 2024

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं ख़ुदा का नाम ले कर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इस में अगर होगा दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं हवा ख़ुशबू ज़मीन ओ आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा उस को पता हो जाएगा

--- बशीर बद्र

2 अक्टूबर 2024

उम्र में उस से बड़ी थी

उम्र में उस से बड़ी थी लेकिन पहले टूट के बिखरी मैं 
साहिल साहिल जज़्बे थे और दरिया दरिया पहुँची मैं 

शहर में उस के नाम के जितने शख़्स थे सब ही अच्छे थे 
सुब्ह-ए-सफ़र तो धुँद बहुत थी धूपें बन कर निकली में 

उस की हथेली के दामन में सारे मौसम सिमटे थे 
उस के हाथ में जागी मैं और उस के हाथ से उजली मैं 

इक मुट्ठी तारीकी में था इक मुट्ठी से बढ़ कर प्यार 
लम्स के जुगनू पल्लू बाँधे ज़ीना ज़ीना उतरी मैं 

उस के आँगन में खुलता था शहर-ए-मुराद का दरवाज़ा 
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में ले कर पलटी मैं 

मैं ने जो सोचा था यूँ तो उस ने भी वही सोचा था 
दिन निकला तो वो भी नहीं था और मौजूद नहीं थी मैं 

लम्हा लम्हा जाँ पिघलेगी क़तरा क़तरा शब होगी 
अपने हाथ लरज़ते देखे अपने-आप ही संभली मैं

-किश्वर नाहिद

26 सितंबर 2024

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं
इस ज़माने के कई मीर मतब कर रहे हैं

कोई हमदर्द भरे शहर में बाक़ी हो तो हो
इस कड़े वक़्त में गुमराह तो सब कर रहे हैं

कहीं ख़तरे में न पड़ जाए बुज़ुर्गी अपनी
लोग इस ख़ौफ़ से छोटों का अदब कर रहे हैं

सब लिफ़ाफ़े की हुसूली के लिए हो रहा है
हम जो ये शग़्ल जो ये कार-ए-अदब कर रहे हैं

हर कोई जान हथेली पे लिए फिर रहा है
इन दिनों वो लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ब कर रहे हैं

--- शकील जमाली

27 अगस्त 2024

15 बेहतरीन शेर - 12 !!!

1. कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आँकिए, असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है.
    जिस शहर में मुंतज़िम अंधे हों जल्वागाह के, उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है. 
    - अदम गोंडवी

2. अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं, अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
    और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं, अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं
    - मुईन अह्सन जज़्बी

3- मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है, 
    कि हरकत तेज़-तर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता - मुनीर नियाज़ी

4- तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था, 
    उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था हबीब जालिब

3. शाम-ए-फ़िराक़ अब ना पूछ, आई और आ के टल गई | 
    दिल था कि फिर बहल गया , जां थी कि फिर संभल गई...!!! - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

4. शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूं , फ़रिश्तों अब तो सोने दो, 
 
    कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता - आहिस्ता...!!! - अमीर मीनाई

5. वही कारवाँ,वही रास्ते, वही ज़िंदगी, वही मरहले,  
 
    मगर अपने अपने मक़ाम पर, कभी तुम नहीं,कभी हम नहीं - शकील बदायूनी

6. जहाँ हर सिंगार फ़ुज़ूल हों जहाँ उगते सिर्फ़ बबूल हों,  
    जहाँ ज़र्द रंग हो घास का वहाँ क्यूँ न शक हो बहार पर  ~ विकास शर्मा राज़

7. वो तुझ को भूलें हैं तो तुझ पे भी लाज़िम है मीर,
    ख़ाक डाल. आग लगा. नाम न ले. याद न कर ! - मीर तक़ी मीर

8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे, 
    पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ! - नज़्म तबातबाई

9. इस दर्जा होशियार तो पहले कभी न थे, 
    अब क्यों क़दम क़दम पे संभलने लगे हैं हम ! - वाली आसी

10. 'रातों को दिन कह रहा, दिन को कहता रात,  
       जितना ऊँचा आदमी, उतनी नीची बात।' - अंसार कम्बरी

11. बेगुनाही जुर्म था अपना, सो इस कोशिश में हूं,  
       सुर्ख़-रू मैं भी रहूं, क़ातिल भी शर्मिंदा न हो ! - सुरूर बाराबंकवी

12- इलेक्शन तक गरीबों का वो हुजरा देखते हैं, 
       हुकूमत मिल गई तो सिर्फ "मुजरा" देखते हैं। ~उस्मान मीनाई

13- है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है, 
    कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है ~ बशीर बद्र

14- हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए, 
       बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए - अकबर इलाहाबादी

15-  जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा, 
        तिरा दिल तो है सनम-आश्ना  तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में - अल्लामा इक़बाल

23 अगस्त 2024

एक चंबेली के मंडवे तले

एक चंबेली के मंडवे तले
मैकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़ ए वफ़ा प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन
ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा रु ओ ताज़ा दम फूल पिछले पहर

ठंडी ठंडी सुबक-रव चमन की हवा
सर्फ़ ए मातम हुई
काली काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
हमने देखा उन्हें
दिन और रात में
नूर ओ ज़ुल्मात में
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों की किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें

अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारगर
तेरीज़ंबील में
नुस्ख़ा ए कीमिया ए मोहब्बत भी है
कुछ इलाज ओ मदावा ए उल्फ़त भी है?
एक चंबेली के मंडवे तले
दो बदन।

3 अगस्त 2024

15 बेहतरीन शेर - 11 !!!

1- लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है, उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी - फ़िराक़ गोरखपुरी

2- माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,  तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख - अल्लामा इक़बाल

3- शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं - वसीम बरेलवी

4-  किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल', मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया - बिस्मिल सईदी

5- यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है,  हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है - मंज़ूर हाशमी

6- ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना,  पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना - मेराज फ़ैज़ाबादी

7- मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर, मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता - रियाज़ ख़ैराबादी

8- कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे, हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे - हसन नईम

9-  इंक़िलाबों की घड़ी है,  हर नहीं हाँ से बड़ी है - जाँ निसार अख़्तर

10- झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर,  सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े - इक़बाल अज़ीम

11- साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का, उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ - कैफ़ भोपाली

12 - शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे, ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे - अज्ञात

13-  सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं,  जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं - सुदर्शन फ़ाकिर

14-  छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे, आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं - अब्दुल हमीद अदम

15- इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ,  जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से - साहिर लुधियानवी

5 जून 2024

15 बेहतरीन शेर - 10 !!!

1.  एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकूं होगा, न दिल में कसक होगी, न सर में जुनूँ होगा. - गुलज़ार  

2. मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त, आह! अब मुझसे तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं - फ़िराक़ गोरखपुरी

3. शिकवा समुनदरों का कोई किस तरह करे, साहिल भी ख़ुद नहीं थे सफ़ीनों के ख़ैर-ख़्वाह

4. निगाह पड़ने न पाए यतीम बच्चों की, ज़रा छुपा के खिलौने दुकान में रखना - महबूब ज़फ़र

5. दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे - दाग़ देहलवी

6. कभी चराग़, कभी तीरगी से हार गये, जो बे-शऊर थे वे हर किसी से हार गये...!!! - अनवर जलालपुरी

7- फ़ितूर होता है हर उम्र में जुदा-जुदा, खिलौना, माशूक़ा, रूतबा, ख़ुदा...!!!

8- तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी
 
9- एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है, तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना. - मुनव्वर राणा

10 - तमाम उम्र हम इक दूसरे से लड़ते रहे, मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए ~ मुनव्वर राना

11- चाह लेते या मुकम्मल ही किनारा करते, अपने हिस्से का कोई काम तो सारा करते - उमैना यूसफ़

12- वाइज़ को जो आदत है पेचीदा-बयानी की, हैरां है कि रिंदों की हर बात खरी क्यों है ! - असद मुल्तानी

13-  मेरे इश्क से मिली तेरे हुस्न को ये शोहरत, तेरा ज़िक्र ही कहाँ था मेरी दास्तान से पहले ! - जाकिर खान

14-  अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ, किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे - इक़बाल अशहर

15- एक बार हम भी रहनुमा बन के देख लें,  फिर उसके बाद क़ौम का जो कुछ भी हाल हो...!!! - दिलावर फ़िग़ार

21 अप्रैल 2024

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत ब'अद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे

लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएँ कैसे

क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे

फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं
अपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुंदर नज़र आएँ कैसे

जिस ने दानिस्ता किया हो नज़र-अंदाज़ 'वसीम'
उस को कुछ याद दिलाएँ तो दिलाएँ कैसे

--- वसीम बरेलवी

15 अप्रैल 2024

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँडे
पत्थर की तरह बे-हिस ओ बे-जान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है

--- अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'

14 फ़रवरी 2024

15 बेहतरीन शेर - 9 !!!

1. कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर, अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा - जिगर मुरादाबादी

2. जो अक़्ल के मारे थे, अपने भी काम ना आये , दीवानों ने दुनिया की तक़दीर बदल डाली.

3. मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की, दर्द बढ़ता गया यूँ यूँ दवा की - मीर तक़ी मीर

4. कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो, ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो! - फ़िराक़ गोरखपुरी

5. मदहोश ही रहा मैं जहाने ख़राब में, गूँथी गई थी क्या मेरी मिट्टी शराब में - मुज़तर ख़ैराबादी

6. गिरज़ा में, मन्दिरों में, अज़ानों में बँट गया, एक ही मूल का इन्सान, कई नामों में बँट गया । - निदा फ़ाज़ली

7. उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब', हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी

9. गुल खिलेंगे नए फूलों की नुमाइश होगी, उस सितमगर की मुहब्बत में भी साज़िश होगी -ज़हीर रहमती

10. बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दोचार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएंगे ~ निदा फ़ाज़ली

11- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे - जिगर मुरादाबादी

12- मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा - अमीर क़ज़लबाश

13- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - ग़ालिब

14- जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है - शहरयार

15- दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है -निदा फ़ाज़ली

14 जनवरी 2024

अल्लाह तेरो नाम

अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम

माँगौं का सिन्दूर न छूटे
मां बहनों की आश न टूटे
देह बिना दाता
भटके न प्राण
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम

ओ सारे जग के रखवाले
निर्बल को बल देने वाले
बलवानों को दे दे ज्ञान
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम

अल्लाह तेरो नाम

--- साहिर लुधियानवी

20 दिसंबर 2023

बहुत कठिन है डगर पनघट की

इधर पत्थर का पूजन है तो इधर है मतलबी सजदा है
यह है मंदिर का शैदाई और यह है मस्जिद का दिलदारा
इसे है स्वर्ग का लालच तो यह जन्नत का मतवाला
इधर भी राह में चक्कर, इधर भी राह में चक्कर
इधर काशी में है पत्थर,उधर काबे में है पत्थर
इधर पत्थर का पूजन है , उधर पत्थर को बोसा है
समझ में कुछ नहीं आता के माजरा क्या है
इधर पंडित अकड़ते हैं के वो काशी में रहता है
उधर हैं शेख जी नादान के वो काबे में रहता है
यानी जैसे मस्ज़िद भीतर अल्लाह बंद
और इश्वर कैद शिवालय में
स्वर्ग में कब्ज़ा पंडित जी का
जन्नत अल्लाह वालन में
राम की पढ़ गयी खींचा तानी
राम पढ़े जंजालन में
अरे बहुत कठिन है डगर पनघट की

--- अमीर खुसरो

21 नवंबर 2023

बेख़बर कुर्सियाँ आँख मलती रहीं

बेख़बर कुर्सियां आँख मलती रहीं
बस्तियाँ बेगुनाहों की जलती रहीं
आदमियत मोहब्बत शराफ़त वफ़ा
नागिनें आस्तीनों में पलती रहीं

दो बदन जितने नज़दीक होते गए
कुर्बतें फ़ासलों में बदलती रहीं
जब मिरी ज़िंदगी में अँधेरा हुआ
मेरे चारों तरफ़ शम्मे जलती रहीं

ज़हर पानी बना मछलियों के लिए
पंछियों को हवाएँ मसलती रहीं
ज़िंदगी तेरी नाज़ुक बदन लड़कियाँ
आग की शाहराहों पे चलती रहीं

--- बशीर बद्र

9 अक्टूबर 2023

ख़तरे में इस्लाम नहीं

ख़तरा है ज़रदारों को, गिरती हुई दीवारों को

सदियों के बीमारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं आख़िर चंद घराने क्यों

नाम नबी का लेने वाले उल्फ़त से बेगाने क्यों

ख़तरा है खूंखारों को, रंग बिरंगी कारों को

अमरीका के प्यारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

आज हमारे नारों से लज़ी है बया ऐवानों में

बिक न सकेंगे हसरतों अमां ऊंची सजी दुकानों में

ख़तरा है बटमारों को, मग़रिब के बाज़ारों को

चोरों को मक्कारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

अम्न का परचम लेकर उठो, हर इंसां से प्यार करो

अपना तो मंशूर है ‘जालिब’, सारे जहां से प्यार करो

ख़तरा है दरबारों को, शाहों के ग़मख़ारों को

नव्वाबों ग़द्दारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

27 सितंबर 2023

15 बेहतरीन शेर - 8 !!!

1. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता --- क़ाबिल अजमेरी

2. दिल था एक शोला मगर बीत गए वो दिन "क़तील", अब कुरेदो न इसे, राख में रखा क्या है ! क़तील शिफ़ाई

3. हद से बढ़े जो इल्म, तो है ज़हर दोस्तों, सब कुछ जो जानते हैं, वो कुछ जानते नहीं...! खुमार बाराबंकवी

4. इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं, आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है, या फ़रार...!!! - दुष्यंत कुमार

5. लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास, सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए...! - परवीन शाकिर

7. बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने, क्या शहर-ए-मुहब्बत में हज्जाम नहीं होता... - ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'

8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे , पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ...! - नज़्म तबातबाई

9. ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव काग़ज़ की सदा चलती नहीं - इस्माईल मेरठी

10. ख़याल ए ज़ुल्फ़ में हर दम नसीर पीटा कर, गया है साँप निकल अब लकीर पीटा कर - शाह नसीर

11. 'जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने' ~ शहरयार

12. वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, मगर इन एहतियातों से ताल्लुक़ मर नहीं जाता...!!! - वसीम बरेलवी

13. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं... - हफ़ीज़ जालंधरी

14. 'ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले' ~ कैफ़ भोपाली

15. हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी

13 जून 2023

15 बेहतरीन शेर - 7 !!!

1. जनाबे शेख़ का फ़लसफ़ा, है अजीब सारे जहान से, जो वहाँ पियो तो हलाल है, जो यहाँ पियो तो हराम है - जिगर मुरादाबादी

2. दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे. जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों ... बशीर बद्र

3. देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़', कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़ - फ़िराक़ गोरखपुरी

4. "पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब, ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए" -परवीन शाकिर

5. इल्म में झिंगुर से बढ़ कर कामरां कोई नहीं, चाट जाता है किताबें, इम्तिहां कोई नहीं...!!! - ज़रीफ़ लखनवी

6. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता - क़ाबिल अजमेरी

7. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक --- मिर्ज़ा ग़ालिब

8. जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले, गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो ~ सफ़ी लखनवी

9. क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं ग़ालिब, हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे - ग़ालिब

10. वो गलियाँ याद आती हैं जवानी जिन में खोई बड़ी हसरत से लब पर ज़िक्र ए गोरखपुर आता है - रियाज़ ख़ैराबादी

11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना. आदमी को भी मय्यसर नहीं इंसां होना - ग़ालिब.

12. पेट के तक़ाज़ों ने कर दिया है नाबीना, दाना याद रहता है, दाम भूल जाता हूं ...!!! - क़तील शिफ़ाई

13. कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशां है, ज़रूरत करवाती है सजदे, वर्ना इबादत यहां कौन करता है - महशर आबिदी

14. तैयार थे नमाज़ पे, हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर, जलवा बुतों का देख के नीयत बदल गई ! - अकबर इलाहाबादी

15. “मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस, ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं” - जौन एलिया

7 अप्रैल 2023

आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए