28 सितंबर 2021

Poem of Love (Poema de Amor)

They who widened the Panama Canal
(and were classified “silver roll” and “gold roll”),
they who repaired the Pacific fleet at California bases,
they who rotted in the jails of Guatemala,
Mexico, Honduras, Nicaragua *
for being thieves, smugglers, swindlers, for being hungry,
they always suspicious of everything
(“permit me to haul you in as a suspect
for hanging out on corners suspiciously, and furthermore
with the pretentious air of being Salvadorian”),
they who packed the bars and brothels of all the ports
and capitals of the region
(“The Blue Cave,” “Hot Pants,” “Happyland”),
the planters of corn deep in foreign jungles,
the kings of cheap porn,
they who no one knows where they come from,
the best artisans of the world,
they who were stitched by bullets crossing the border,
they who died of malaria
or by the sting of scorpions or yellow fever
in the hell of banana plantations,
the drunkards who cried for the national anthem
under a cyclone of the Pacific or northern snows,
the moochers, the beggars, the dope pushers,
guanaco sons of bitches,
they who hardly made it back,
they who had a little more luck,
the eternally undocumented,
the jack-of-all trades, the hustlers, the gluts,
the first the flash a knife,
the sad, the saddest of all,
my people, my brothers.


*Somoza’s era in Nicaragua.
Translated from the Spanish by Zoë Anglesey and Daniel Flores Ascencio.

25 सितंबर 2021

उनको प्रणाम

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।

कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !

जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !

कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !

थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !

---नागार्जुन

22 सितंबर 2021

जूता

तारकोल और बजरी से सना
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।

मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।

~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

20 सितंबर 2021

The Warrior's Resting Place

The dead are getting more restless each day.

They used to be easy
we’d put on stiff collars flowers
praised their names on long lists
shrines of the homeland
remarkable shadows
monstrous marble.

The corpses signed away for posterity
returned to formation
and marched to the beat of our old music.

But not anymore
the dead
have changed.

They get all ironic
they ask questions.

It seems to me they’ve started to realise
they’re becoming the majority!

16 सितंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 3 !!!

1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी

2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर

3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा

4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश

5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी

6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी

7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर

8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री

9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी

10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर

11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात

12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी

13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी

14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी

13 सितंबर 2021

चेतक की वीरता

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
 चेतक बन गया निराला था
 राणाप्रताप के घोड़े से
 पड़ गया हवा का पाला था

 जो तनिक हवा से बाग हिली
 लेकर सवार उड़ जाता था
 राणा की पुतली फिरी नहीं
 तब तक चेतक मुड़ जाता था

 गिरता न कभी चेतक तन पर 
 राणाप्रताप का कोड़ा था 
 वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर 
 वह आसमान का घोड़ा था 

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं 
 वह वहीं रहा था यहाँ नहीं 
 थी जगह न कोई जहाँ नहीं 
 किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं 

 निर्भीक गया वह ढालों में 
 सरपट दौडा करबालों में 
 फँस गया शत्रु की चालों में 

 बढ़ते नद-सा वह लहर गया 
 फिर गया गया फिर ठहर गया 
 विकराल वज्रमय बादल-सा 
 अरि की सेना पर घहर गया 

 भाला गिर गया गिरा निसंग 
 हय टापों से खन गया अंग 
 बैरी समाज रह गया दंग 
 घोड़े का ऐसा देख रंग 

10 सितंबर 2021

To the Young Who Want to Die

Sit down. Inhale. Exhale.
The gun will wait. The lake will wait.
The tall gall in the small seductive vial
will wait will wait:
will wait a week: will wait through April.
You do not have to die this certain day.
Death will abide, will pamper your postponement.
I assure you death will wait. Death has
a lot of time. Death can
attend to you tomorrow. Or next week. Death is
just down the street; is most obliging neighbor;
can meet you any moment.

You need not die today.
Stay here--through pout or pain or peskyness.
Stay here. See what the news is going to be tomorrow.

Graves grow no green that you can use.
Remember, green's your color. You are Spring.

7 सितंबर 2021

The Snowfall Is So Silent

The snowfall is so silent,
so slow,
bit by bit, with delicacy
it settles down on the earth
and covers over the fields.
The silent snow comes down
white and weightless;
snowfall makes no noise,
falls as forgetting falls,
flake after flake.
It covers the fields gently
while frost attacks them
with its sudden flashes of white;
covers everything with its pure
and silent covering;
not one thing on the ground
anywhere escapes it.
And wherever it falls it stays,
content and gay,
for snow does not slip off
as rain does,
but it stays and sinks in.
The flakes are skyflowers,
pale lilies from the clouds,
that wither on earth.
They come down blossoming
but then so quickly
they are gone;
they bloom only on the peak,
above the mountains,
and make the earth feel heavier
when they die inside.
Snow, delicate snow,
that falls with such lightness
on the head,
on the feelings,
come and cover over the sadness
that lies always in my reason.

---Miguel de Unamuno
translated by Robert Bly

1 सितंबर 2021

सतपुड़ा के घने जंगल

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए-से,
ऊँघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।

सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल मे पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनोने, घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।


अटपटी-उलझी लताएँ,
डालियों को खींच खाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाऐं।
सांप सी काली लताऐं
बला की पाली लताऐं
लताओं के बने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुँह पर,
और सर के बाल मुँह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुँह पर,
वात- झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपडी पर फ़ूंस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, गोल इनके

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।

जागते अँगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्ग़े और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर!

क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,
मृत्यु तक मैला हुआ-सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

धँसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।

भवानी प्रसाद मिश्र (अगस्त, 1939)