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Oct 27, 2025

आनेवाला ख़तरा

इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता

कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती

और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि फलते-फूलनेवाले हैं लोग

औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे—रमेश
एक दिन इसी तरह आएगा—रमेश
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी—रमेश
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्ज़ियों के सिवाय—रमेश

ख़तरा होगा ख़तरे की घंटी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा—रमेश

--- रघुवीर सहाय 
पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ 

Oct 8, 2025

गाज़ा का कुत्ता

वह जो कुर्सी पर बैठा
अख़बार पढ़ने का ढोंग कर रहा है
जासूस की तरह
वह दरअसल मृत्यु का फ़रिश्ता है ।

क्या शानदार डॉक्टरों जैसी बेदाग़ सफ़ेद पोशाक है उसकी
दवाओं की स्वच्छ गंध से भरी
मगर अभी जब उबासी लेकर अख़बार फड़फड़ाएगा,
जो दरअसल उसके पंख हैं
तो भयानक बदबू से भर जायेगा यह कमरा
और ताजा खून के गर्म छींटे
तुम्हारे चेहरे और बालों को भी लथपथ कर देंगे
हालांकि बैठा है वह समुद्रों के पार
और तुम जो उसे देख प् रहे हो

वह सिर्फ तकनीक है
ताकि तुम उसकी सतत उपस्तिथि को विस्मृत न कर सको

बालू पर चलते हैं अविश्वसनीय रफ़्तार से सरसराते हुए भारी-भरकम टैंक
घरों पर बुलडोजर
बस्तियों पर बम बरसते हैं
बच्चों पर गोलियां

एक कुत्ता भागा जा रहा है
धमाकों की आवाज़ के बीच
मुंह में किसी बच्चे की उखड़ी बची हुई भुजा दबाये
कान पूँछ हलके से दबे हुए
उसे किसी परिकल्पित
सुरक्षित ठिकाने की तलाश है
जहाँ वह इत्मीनान से
खा सके अपना शानदार भोज
वह ठिकाना उसे कभी मिलेगा नहीं ।

--- वीरेन डंगवाल

Oct 5, 2025

किसान की आवाज़ | The Voice of the Farmer - Poem in Jolly LLB 3 Movie

छप्पर टपकता रहा मेरा फिर भी

मैंने बारिश की दुआ की

मेरे दादा को परदादा से

पिता को दादा से

और मुझे पिता से जो विरासत मिली

वही सौंपना चाहता था मैं अपने बेटे को

देना चाहता था थोड़ी-सी ज़मीन

और एक मुट्ठी बीज कि

सबकी भूख मिटाई जा सके

इसलिए मैंने यकीन किया

उनकी हर एक बात पर

भाषण में कहे जज्बात पर

मैं मुग्ध होकर देखता रहा

आसमान की तरफ उठे उनके सर

और उन्होंने मेरे पैरों के नीचे से जमीन खींच ली

मुझे अन्नदाता होने का अभिमान था

यही अपराध था मेरा कि

मैं एक किसान था।

संदर्भ:कविता हिंदी के यथार्थवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध से प्रेरित है। फिल्म "जॉली एलएलबी 3" में किसान की आत्मकथा की तरह सुनाई गई वह कविता हिंदी साहित्य के महान कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रेरणा से बनायी गई है। यह कविता किसान की भावनाओं और संघर्ष को गहरे और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है।

प्रश्नोत्तर तरह के जोगीरा (Jogira sa ra ra )

1. कय हाथ के धोती पेन्हा,  कय हाथ लपेटा?

कय पान का बीरा खाया,  कय बाप के बेटा?

सात हाथ का धोती पेन्हा, पाँच हाथ लपेटा ।

चार पान का बीड़ा खाया,  एक बाप का बेटा ।

जोगीरा सा रा रा रा।

2. कोन समय में धरती फाटल, कोन समय असमान,

कोन समय में सिया हरण भेल खोजै छथि भगवान

सतयुग में धरती फाटल, द्वापर में असमान

त्रेता युग में  सिया हरण भेल, खोजै छथि भगवान!
 
जोगीरा सा रा रा रा।

फगुआ रंग, तरंग आ उमंग आनय।

3.  कौन काठ के बनी खड़ौआ, कौन यार बनाया है?

कौन गुरु की सेवा कीन्हो, कौन खड़ौआ पाया?

चनन काठ के बनी खड़ौआ, बढ़यी यार बनाया हो।

हम गुरु की सेवा कीन्हा, हम खड़ौआ पाया है।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।


4.  किसके बेटा राजा रावण किसके बेटा बाली?

किसके बेटा हनुमान जी जे लंका जारी?

विसेश्रवा के राजा रावण बाणासुर का बाली।

पवन के बेटा हनुमान जी, ओहि लंका के जारी।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।


5. किसके मारे अर्जुन मर गए किसके मारे भीम?

किसके मारे बालि मर गये, कहाँ रहा सुग्रीव?

कृष्ण मारे आर्जुन मर गए कृष्ण के मारे भीम।

राम के मारे बालि मर गए लड़ता था सुग्रीव।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।

Oct 1, 2025

बनारस की गली / नज़ीर बनारसी

हर गाम पे हुशियार बनारस की गली में
फ़ितने भी हैं बेदार बनारस की गली में

ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में
बिक जायें ख़रीदार बनारस की गली में

हुशियारी से रहना नहीं आता जिन्हें इस पार
हो जाते हैं उस पार बनारस की गली में

सड़कों पे दिखाओगे अगर अपनी रईसी
लुट जाओगे सरकार, बनारस की गली में

दूकान पे रूकिएगा तो फिर आपके पीछे
लग जायेंगे दो-चार बनारस की गली में

हैरत का यह आलम है कि हर देखने वाला
है ऩक्श ब दीवार बनारस की गली में

मिलता है निगाहों को सुकूँ हृदय को आराम
क्या प्रेम है क्या प्यार बनारस की गली में

हर सन्त के, साधू के, ऋषि और मुनि के
सपने हुए साकार बनारस की गली में

शंकर की जटाओं की तरह साया फ़िगन
साया करने वाला, सरपरस्ती छाँह देने वाला है

हर साया-ए-दीवार बनारस की गली में
गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो
मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में

Sep 29, 2025

निराला की कविता में संगीत

ताक कमसिनवारि,
ताक कम सिनवारि,
ताक कम सिन वारि,
सिनवारि सिनवारि।
ता ककमसि नवारि,
ताक कमसि नवारि,
ताक कमसिन वारि,
कमसिन कमसिनवारि।

इरावनि समक कात्,
इरावनि सम ककात्,
इराव निसम ककात्,
सम ककात् सिनवारि।


यह पोस्ट निराला के जीवन के अंतिम वर्षों में लिखा गया एक अनोखा और ध्वन्यात्मक गीत प्रस्तुत करता है, जो उनकी मृत्यु के बाद "सान्ध्य काकली" में संकलित हुआ। यह गीत पारंपरिक ध्रुपद गायन की शैली के समान शब्दों के उलटफेर और पुनरावृत्ति से भरा है, जिसे रामविलास शर्मा ने निराला की "क्लासिकी" संगीत रचना बताया है।

Sep 26, 2025

प्यार की गंगा बहे (Pyar Kee Ganga Bahe)

सुन सुन सुन मेरे नन्हे सुन,
सुन सुन सुन मेरे मुन्ने सुन,
प्यार की गंगा बहे, देश में एकता रहे।

सुन सुन सुन मेरी नन्ही सुन,
सुन सुन सुन मेरी मुन्नी सुन,
प्यार की गंगा बहे, देश में एकता रहे।

ख़त्म काली रात हो, रोशनी की बात हो,
दोस्ती की बात हो, ज़िन्दगी की बात हो।
बात हो इंसान की, बात हो हिन्दुस्तान की,
सारा भारत ये कहे –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे।

अब ना दुश्मनी पाले, अब ना कोई घर जले,
अब नहीं उजड़े सुहाग, अब नहीं फैले ये आग।
अब ना हों बच्चे अनाथ, अब ना हो नफ़रत की घाट,
सारा भारत ये कहे –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे।

सारे बच्चे बच्चियाँ, सारे बूढ़े और जवाँ,
यानि सब हिन्दुस्तान।
एक मंज़िल पर मिलें, एक साथ फिर चलें,
एक साथ फिर रहें, एक साथ फिर कहें।
एक साथ फिर कहें, फिर कहें –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे,
देश में एकता रहे, सारा भारत ये कहे,
सारा भारत ये कहे –
देश में एकता रहे।  

गीत “प्यार की गंगा बहे” 1993 में निर्देशक सुभाष घई ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आग्रह पर बनाया, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में साम्प्रदायिक तनाव था। गीतकार जावेद अख्तर और संगीतकार लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल ने इसे रचा। इसमें बॉलीवुड सितारे सलमान खान, आमिर खान, अनिल कपूर, गोविंदा, जैकी श्रॉफ, ऋषि कपूर, नसीरुद्दीन शाह तथा दक्षिण और क्षेत्रीय सितारे रजनीकांत, मम्मूटी, चिरंजीवी, प्रसेंजीत, सचिन पिलगांवकर आदि शामिल हुए। सभी कलाकारों ने बिना पारिश्रमिक भाग लेकर अपने बच्चों को भी इसमें शामिल किया। गीत का उद्देश्य था देश में प्रेम, भाईचारा और एकता का संदेश फैलाना।

Sep 7, 2025

Alif Laila - Title Song Lyrics - Doordarshan

 अलिफ लैला ओ ओ…

अलिफ लैला, अलिफ लैला, अलिफ लैला ओ ओ

अलिफ लैला, अलिफ लैला, अलिफ लैला

हर शब नई कहानी

दिलचस्प है बयानी

सदियाँ गुज़र गयी है

लेकिन न हो पुरानी

परियों को जीत लाये

जीनो को भी हराए

इंसान में वो ताकत

सब पे करे हुकूमत

अलिफ लैला ओ ओ ओ….

Aug 28, 2025

Baje sargam har taraf se goonj bankar...

बजे सरगम हर तरफ से, 
गूँज बनकर देश राग, देश राग। 
ताल कदमों पे जागे जाय, 
लब पे जागे गीत ऐसा, 
गूँजे बनकर देश राग।

इस गीत का मतलब है कि देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की धुन हर तरफ बज रही है, जो सभी को जोड़ती है और आगे बढ़ने की ताकत देती है। इसमें भारत के मशहूर गायक, वादक और नर्तकी देश की मुख्य परंपरागत कलाओं का सुंदर प्रदर्शन करते हैं। राग जो कि शास्त्रीय संगीत की आत्मा है, के साथ तबला, संतूर, सरोद, सितार, कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी और ओड़िसी जैसे कई नृत्य और संगीत शैलियाँ इस वीडियो में एक ही संगति में भारत की एकता और खूबसूरती को दर्शाती हैं।


   

Aug 21, 2025

ऐ उम्र..! कुछ कहा मैंने

ऐ उम्र..!

कुछ कहा मैंने,
पर शायद तूने सुना नहीं..
तू छीन सकती है बचपन मेरा,
पर बचपना नहीं..!!

हर बात का कोई जवाब नहीं होता
हर इश्क का नाम खराब नहीं होता…
यूं तो झूम लेते है नशे में पीनेवाले
मगर हर नशे का नाम शराब नहीं होता…

खामोश चेहरे पर हजारों पहरे होते हैं
हंसती आँखों में भी जख्म गहरे होते हैं
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम,
असल में उनसे ही रिश्ते गहरे होते हैं…

किसी ने खुदा से दुआ मांगी
दुआ में अपनी मौत मांगी,
खुदा ने कहा, मौत तो तुझे दे दूँ मगर,
उसे क्या कहूं जिसने तेरी जिंदगी की दुआ मांगी…

हर इन्सान का दिल बुरा नहीं होता
हर एक इन्सान बुरा नहीं होता
बुझ जाते है दीये कभी तेल की कमी से…
हर बार कुसूर हवा का नहीं होता !!!

Aug 4, 2025

उस शहर में मत जाओ

उस शहर में मत जाओ
जहाँ तुम्हारा बचपन गुज़रा
अब वो वैसा नहीं मिलेगा
जिस घर में तुम किराएदार थे
वहाँ कोई और होगा
तुम उजबक की तरह
खपरैल वाले उस घर के दरवाजे पर खड़े होगे और
कोई तुम्हें पहचान नहीं पाएगा !

— विनय सौरभ

Aug 1, 2025

स्थानीयता के संघर्ष

आसान है करना प्रधानमंत्री की आलोचना
मुख्यमंत्री की करना उससे थोड़ा मुश्किल
विधायक की आलोचना में ख़तरा ज़रूर है
लेकिन ग्राम प्रधान के मामले में तो पिटाई होना तय है।

अमेज़न के वर्षा वनों की चिंता करना कूल है
हिमालय के ग्लेशियरों पर बहस खड़ी करना
थोड़ा मेहनत का काम
बड़े पावर प्लांट का विरोध करना
एक्टिविज्म तो है जिसमें पैसे भी बन सकते हैं
लेकिन पास की नदी से रेत-बजरी भरते हुए
ट्रैक्टर की शिकायत जानलेवा है।

स्थानीयता के सारे संघर्ष ख़तरनाक हैं
भले ही वे कविता में हों या जीवन में।

--- प्रदीप सैनी

Jul 9, 2025

शासन सचमुच बंदरों के हाथ में है!

एक दिन बंदरों ने हथिया ली सत्ता
उंगलियों में सोने की अंगूठी ठूंस ली
सफ़ेद कलफ़दार क़मीज़ें पहनीं
सुगंधित हवाना सिगार का कश लगाया
अपने पांव में डाले चमाचम काले जूते!

हमें पता ही न चला, क्योंकि हम दूसरे कामों में व्यस्त थे
कोई अरस्तू पढ़ता रहा, तो कोई आकंठ प्यार में डूबा हुआ था
शासकों के भाषण ऊटपटांग होने लगे
गपड़-सपड़, लेकिन हमने कभी इन्हें ध्यान से सुना ही नहीं
हमें संगीत ज़्यादा पसंद था
युद्ध अधिक वहशी होने लगे
जेलख़ाने पहले से और गंदे हो गये
तब जाकर लगा कि शासन सचमुच बंदरों के हाथ में है!

- आदम ज़गायेव्स्की 

Jun 23, 2025

रद्दी

एकदा रेशन संपल्यावर
घरातली रद्दी विकायला काढली
तेव्हा तू हसत म्हणालीस,
तुमच्या कवितांचे कागद
यात घालू का ?
तेवढंच वजन वाढेल !

मी उत्तरलो, जे काम काळ उद्या करणार आहे
ते तू आज करू नकोस.
तुझ्या डोळ्यांत अनपेक्षित आसवं तरारली
आणि तू म्हणालीस,
मी तर नाहीच,
पण काळही ते करणार नाही

- कुसुमाग्रज

रद्दी

एक दफा, 
जब राशन खत्म हुआ था तो 
रद्दी निकाली थी घर से
 कि बेच आएँ! 
हँस के कहा था तू ने तब
कहो तुम्हारी नज़्में भी, डाल दूँ उन में? 
उन से वज़न बढ़ जाएगा।

मैंने कहा था :
"कल जो वक़्त करेगा, 
वो मत आज करो!" 
आँखे भर आई थीं तेरी ! 
और कहा थाः
"मैं तो क्या.... 
वो वक़्त भी न कर पाएगा!!"

अनुवादगुलजार

Jun 16, 2025

15 बेहतरीन शेर - 16 !!!

1. चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं नया है ज़माना नई रौशनी है - खुमार बाराबंकवी

2. ये अलग बात है कि ख़ामोश खड़े रहते हैं, फिर भी जो लोग बड़े हैं, वो बड़े रहते हैं ~राहत इंदौरी

3. पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला, मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा -बशीर बद्र

4. और क्या था बेचने के लिए, अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं। -जौन एलिया

5. फ़क़ीराना आए सदा कर चले, मियाँ ख़ुश रहो दुआ कर चले - मीर तकि मीर

6. बाग़बाँ दिल से वतन को ये दुआ देता है, मैं रहूँ या न रहूँ ये चमन आबाद रहे। - बृजनारायण चकबस्त

7. उठाओ हाथ कि दस्त-ए-दुआ बुलंद करें, हमारी उम्र का एक और दिन तमाम हुआ - अख़्तरुल ईमान

8. हैं और भी दुनिया में सुखन्वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि गालिब का है अन्दाज-ए-बयां और - मिर्ज़ा ग़ालिब

9. मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बेख़बर, मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं -तहज़ीब हाफ़ी

10. वादा-ए-यार की बात न छेड़ो, ये धोखा भी खा रक्खा है. - नासिर काज़मी

11. कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम, कह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम - फ़िराक़ गोरखपुरी

12. ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ, हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते - उम्मीद फ़ाज़ली

13. कौन सीखा है सिर्फ बातों से सबको एक हादसा ज़रूरी है - जौन एलिया

14. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं - हफ़ीज़ जालंधरी

15. फ़ारेहा क्या बहुत जरूरी है हर किसी शेरसाज़ को पढ़ना, मेरे ग़ुस्से के बाद भी तुमने नहीं छोड़ा मजाज़ को पढ़ना -जौन एलिया

Jun 8, 2025

न मोहब्बत न दोस्ती के लिए

न मोहब्बत न दोस्ती के लिए
वक्त रुकता नहीं किसी के लिए

दिल को अपने सज़ा न दे यूँ ही
इस ज़माने की बेरुखी के लिए

कल जवानी का हश्र क्या होगा
सोच ले आज दो घड़ी के लिए

हर कोई प्यार ढूंढता है यहाँ
अपनी तनहा सी ज़िन्दगी के लिए

वक्त के साथ साथ चलता रहे
यही बेहतर है आदमी के लिए

May 22, 2025

जंगल जंगल बात चली है (Jungle Book) (Old Doordarshan Serial Title Song)

जंगल जंगल बात चली है
पता चला है.. 
जंगल जंगल बात चली है। 
पता चला है..

अरे चड्डी पहन के फूल खिला है
फूल खिला है 
अरे चड्डी पहन के फूल खिला हैं 
फूल खिला है

जंगल जंगल पता चला है, 
चड्डी पहन के फूल खिला है 
जंगल जंगल पता चला है, 
चड्डी पहन के फूल खिला है

एक परिंदा है शर्मिंदा, 
था वो नंगा
भाई इससे तो अंडे के अंदर, 
था वो चंगा

सोच रहा है 
बाहर आखिर क्यों निकला है 
अरे चड्डी पहन के फूल खिला है 
फूल खिला है


 

Apr 30, 2025

Gullak (गुल्लक) Theme Song

कभी अक्कड़ थी, कभी बक्कड़ थी
कभी टेढ़ी थी, कभी मेढ़ी थी

कभी अक्कड़ थी, कभी बक्कड़ थी
कभी टेढ़ी थी, कभी मेढ़ी थी
थोड़ी अकड़ी थी, थोड़ी जकड़ी थी
पर लपक के हमने पकड़ी थी

थोड़ी गीली थी, थोड़ी dry थी
कभी low सी थी, कभी high थी
घुल जाए तो इलायची
घिस जाती तो अदरक थी

ये ज़िंदगी यादों की गुल्लक सी
गुल्लक सी गुल्लक सी
ये ज़िंदगी यादों की गुल्लक सी
गुल्लक सी गुल्लक सी

बाबू-लल्ला, हल्ला-गुल्ला
चैं-चैं, पौं-पौं हो गईल ईह मुहल्ला
बाबू-लल्ला, हल्ला-गुल्ला
चैं-चैं, पौं-पौं हो गईल ईह मुहल्ला

हाँ, ऊनी गेंदों सी, फटी जेबों सी
छँटे कोहरे सी, बासी तहरी सी
ऊनी गेंदों सी, फटी जेबों सी

छँटे कोहरे सी, बासी तहरी सी 
बातों की दातुन से चलती
Unlimited WiFi थी
फ़ुरसत का petrol पड़ा के

Slowly, slowly भगाई थी
हम सब के हिस्से आई थी
हम सब ने गले लगाई थी
एक चम्मच थी, पर too much थी

ये ज़िंदगी यादों की गुल्लक सी
गुल्लक सी, गुल्लक सी
ये ज़िंदगी यादों की गुल्लक सी
ज़िंदगी गुल्लक सी

Apr 25, 2025

ना नर में कोई राम बचा

ना नर में कोई राम बचा,
नारी में ना कोई सीता है !
ना धरा बचाने के खातिर,
विष कोई शंकर पीता है !!

ना श्रीकृष्ण सा धर्म-अधर्म का,
किसी में ज्ञान बचा है!
ना हरिश्चंद्र सा सत्य,
किसी के अंदर रचा बसा है !!

न गौतम बुद्ध सा धैर्य बचा,
न नानक जी सा परम त्याग !
बस नाच रही है नर के भीतर
प्रतिशोध की कुटिल आग !!

फिर बोलो की उस स्वर्णिम युग का,
क्या अंश बाकि तुम में !
कि किसकी धुनी में रम कर फुले नहीं समाते हो,
तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो…

तुम भीष्म पितामह की भांति,
अपने ही जिद पर अड़े रहे !
तुम शकुनि के षणयंत्रो से, घृणित रहे, तुम दंग रहे,
तुम कर्ण के जैसे भी होकर, दुर्योधन दल के संग रहे !!

एक दुर्योधन फिर,
सत्ता के लिए युद्ध में जाता है !
कुछ धर्मांधो के अन्दर फिर
थोड़ा धर्म जगाता है !!

फिर धर्म की चिलम में नफ़रत की
चिंगारी से आग लगाकर!
चरस की धुँआ फुक-फुक कर, मतवाले होते जाते है,
तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो…

--- शुभम शाम

 

Apr 15, 2025

एक कविता पढ़ रहा था

एक कविता पढ़ रहा था
लम्बी न थी
शब्दों को सोचता हुआ
मन जाने कहाँ-कहाँ की
यात्राएँ करता रहा
आँख उठाकर देखा :
पहर बीत चला था
एक कविता और इतना समय?
अरे भोले!
एक उम्र गँवा दी थी कवि ने
इन शब्दों तक
पहुँचने के लिए

---पंकज चतुर्वेदी