Dec 24, 2025

अरावली के आख़िरी दिन

एक मधुमक्खी परागकणों के साथ

उड़ते-उड़ते थक जाएगी।

सभी बहेलिए जाल को देखकर

उलझन में पड़ जाएँगे।

एक नन्हा ख़रगोश लू की बौछार में

हाँफते-हाँफते थक जाएगा।

चेतना आकुलित बघेरे कहीं नहीं दिखेंगे

इस निरीह-निर्वसन धरती पर।

अरावली के आख़िरी दिन

युवतियाँ छाता लेकर सैर करने जाएँगी

और लॉन में टहलकर लौट आएँगी।

एक शराबी चंद्रमा की रोशनी में

बहेलिए बस्तियों की ओर लौटते नज़र आएँगे।

कुछ पीले चेहरे सब्ज़ियों के ठेले लेकर

मुहल्लों में रेंगते हुए आवाज़ें देंगे।

बिना तारों वाली सघन अँधेरी रात में

रावण-हत्थे की आवाज़ के साथ तैरेगी

बच रह गए एक गीदड़ की टीस।

और जिन्हें नीले नभ में बिजलियाँ चमकने,

बादल गरजने और वर्षा की बूँदों का इंतिज़ार है,

सूखे काले अँधेरे में आँख मिचमिचाते और

कानों में कनिष्ठिकाएँ हिलाते थक जाएँगे।

और जिन्हें किताबें पढ़ने का शौक होगा,

शब्दकोश में साँप का अर्थ ढूँढ़कर

अपने बच्चों को कालबेलिया जोगियों की कथा सुनाएँगे

और सुनहरे केंचुल ओढ़े कोई देवता

सितारों की ओट में धरती को भरी आँख से निर्निमेष निहारेगा।

हालाँकि बात ऐसी है


अरावली की कोई एक तस्वीर देखकर

सूरज और चाँद के नीचे सुन नहीं पाता कोई

कभी ख़त्म न होने वाली बिलख, जो हर

इमारत की नींव तले दबी फूटती रहती है।

बड़ी आलीशान इमारतों में खिलते रहते हैं

ख़ूबसूरत गुलाबों जैसे नन्हे शिशु

और इसीलिए किसी को विश्वास नहीं होता कि

अरावली के आख़िरी दिन अरावली ऐसी होगी?

अरावली के आख़िरी दिन ऐसा ज़रूर होगा

एक अवतारी पुरुष आएँगे

एक नबी पुकारेगा

लेकिन बात ऐसी है कि वे दोनों आईफ़ोन पर व्यस्त होंगे

उन्हें न धनिए, न हरी मिर्च, न मेथी, न आलू,

न टमाटर, न ज़ीरे और न हरे चने की ज़रूरत होगी,

क्योंकि उनके बैग में

मैक्डॉनल्ड के बर्गर, मैकपफ़ और सालसा रैप होंगे।

अरावली का इसके अलावा यहाँ और क्या अंत होगा?

अरावली का इसके अलावा वहाँ और क्या अंत होगा?

स्रोत :रचनाकार : त्रिभुवन

प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

सौरभ द्विवेदी ने कविता “अरावली के आख़िरी दिन” अपने अंदाज़ में पढ़ी है और इसे आज के अरावली के दर्द से जोड़ दिया है। 

संदर्भ : सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2025 में अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दी, जिसमें 100 मीटर ऊंचाई से कम की पहाड़ियों को बाहर रखा गया, जिससे राजस्थान के 91% से अधिक क्षेत्र असुरक्षित हो गए। यह फैसला पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश पर आधारित था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ही समिति (सीईसी) और भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने इसका विरोध किया, क्योंकि इससे अवैध खनन को बढ़ावा मिलेगा।अरावली, जो दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमाला है, दिल्ली-एनसीआर को रेगिस्तान से बचाती है, भूजल रिचार्ज करती है और जैव विविधता का केंद्र है, लेकिन पिछले दो दशक में 25-35% हिस्सा खनन से नष्ट हो चुका।ग्रामीणों, पर्यावरणविदों और आदिवासी समुदायों ने जयपुर, अलवर, उदयपुर जैसे क्षेत्रों में बड़े प्रदर्शन शुरू कर दिए, जहाँ गुर्जर-मेव किसान उपवास, जनसभाएँ और हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं।"अरावली विरासत जन अभियान" के तहत चार राज्यों के प्रतिनिधि खनन माफियाओं के खिलाफ एकजुट हुए, मांग की कि पूरी 692 किमी रेंज को पारिस्थितिक क्षेत्र घोषित कर नई खदानों पर पूर्ण रोक लगे।कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह और नीलम अहुवालिया जैसे नेता चेतावनी दे रहे हैं कि यह फैसला मरुस्थलीकरण, जल संकट और प्रदूषण को बढ़ेगा, जबकि कोर्ट ने सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तक नई लीज पर रोक का निर्देश दिया है।यह संघर्ष पर्यावरण रक्षा से आगे लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई बन गया है।

Dec 22, 2025

I am Kurdish ( أنا كردي )

I challenge poverty, privation, pain. 
I resist times of oppression with strength.
I have courage.
I do not love angel eyes, skin white as marble.
I love the rocks, the hills, the peaks lost among the clouds.
I challenge misfortune, misery, solitude 
And I shall never be a slave of the enemy, never grant him treaty!
I challenge batons, chains, torture. 
And even if my body lies torn in pieces,
With all my strength 
I shall scream: I am Kurdish.


Kurds are an ethnic group indigenous to a region called Kurdistan spanning parts of Turkey, Iraq, Iran, and Syria. They have long sought the creation of an independent Kurdish nation due to historic repression and the denial of autonomy. Despite partial autonomy in Iraq and Syria, the demand for a separate nation remains unresolved, with Kurdish nationalism still actively suppressed in several countries

Dec 19, 2025

यह वह बनारस नहीं गिंसबर्ग

'हाउल' नहीं गिंसबर्ग
परवर्ती पीढ़ी हमारी

नहीं मालूम जिसे क्यों कब
किसने लिखा कुछ पढ़कर सो कुछ लिखकर सो

देख रही बिकती बोटियाँ जिगर कीं
छह दो सात पाँच बोली न्यूयॉर्क-टोक्यो की

हाँ ऐलेन क्यों आए थे बनारस
यहाँ तो छूटा फॉर्टी सेकंड स्ट्रीट बहुत पीछे

कुत्तों ने किया हमेशा सड़कों पर संभोग यहाँ
रंग-बिरंगी नंगी रंभाएँ बेच रहा ईश्वर ख़ुराक आज़ादी के मसीहे की

चीत्कार इस पीढ़ी की नहीं बनेगी लंबी कविता नहीं बजेंगे ढोल
यह वह बनारस नहीं बीटनिक बहुत बड़ा गड्ढा है

रेंग रहा कीड़ा जिसमें
नहीं किसी और ग्रह का, मेरा ही दिमाग़ है लिंग है

हे भगवान चली गोलियाँ छत्तीसगढ़
भाई मेरा भूमिगत मैं क्यों गड्ढे में फिर

पाखंडी पीढ़ी मेरी
जाँघियों में खटमल-सी

भूखी बहुत भूखी
बनारस ले गए कहाँ तुम

जाएँ कहाँ हम छिपकर इन ख़ाली-ख़ाली तक़दीरों से
इन नंगे राजाओं से

कहाँ वह औरत वह मोक्षदात्री
बहुत प्यार है उससे

चाहा मैंने भी विवस्त्र उसे हे सिद्धार्थ
भूखे मरते मजूर वह क्यों फैलाती जाँघें

कहते कोई डर नहीं उसे एड्स का
बहुत दुखी इस पीढ़ी का पीछे छूटा यह बीमार

कई शीशों के बीच खड़ा ढोता लाशें अनगिनत
उठो औरतों प्यार करो हमसे

बना दो दीवार बाँध की हमें
कहो गिंसबर्ग कहो हमें गाने को यह गीत

बनारस नहीं आवाज़ हमारी अंतिम कविता
कहो।

--- लाल्टू

Dec 15, 2025

BORDERS



Adored land, my country,

a love that I had lost..

if you had been remote 

in an inaccessible sky

or at a summit of the world

I would have known 

how to run to you 

even with iron shoes.

But a narrow distance 

separates you from me..

The invader calls it a border.

--- Hemin Mukriyani

Kurds are an ethnic group indigenous to a region called Kurdistan spanning parts of Turkey, Iraq, Iran, and Syria. They have long sought the creation of an independent Kurdish nation due to historic repression and the denial of autonom. Despite partial autonomy in Iraq and Syria, the demand for a separate nation remains unresolved, with Kurdish nationalism still actively suppressed in several countries.

Dec 10, 2025

खेले मसाने में होरी दिगम्बर

खेले मसाने में होरी दिगम्बर
भुत पिसाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी,

लखि सूंदर फागुनी झता के,
मन से रंग गुलाल हटा के,
चिता बसम की झोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी,

नाचत गावत डमरू धारी,
छोडत सर पे गर्ल पिचकारी,
बीते प्रेत थपोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी,

भुत नाथ की मंगल होरी,
देख सिहाये ब्रिज की छोरी,
धन धन नाथ अगोहरी,
दिगंबर खेले मसाने में होरी,

गोप न गोपी श्याम न राधा,
ना कोई रोक न कोहनू वाधा
न साजन न गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी |

"खेले मसाने में होरी दिगम्बर" एक प्रसिद्ध भजन और लोकगीत है जो खासकर काशी (वाराणसी) के मणिकर्णिका घाट पर होली के त्योहार के दौरान गाया जाता है। इस गीत में भगवान शिव की महिमा का वर्णन होता है, जो श्मशान (मसाना) की पवित्रता और शक्ति को दर्शाता है।