पाँव दाबे हैं बुजुर्गों के , तो फ़न आया है .....!"
2)शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
---धूमिल
3) हवा का रुख ही काफी बहाना होता है,
अगर चिराग किसी को जलाना होता है,
जुबानी दावे तो बहुत लोग करते रहते हैं
जुनू के काम को करके दिखाना होता है।
--- ‘शहरयार’
4) मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर
लोग साथ आते गये कारवां बनता गया
--- मजरूह सुल्तानपुरी
5) यूँ ही रक्खा था किसी ने, संग इक दीवार पर,
सर झुकाए मैं खड़ा था, वो ख़ुदा बनता गया ।.
कौन है वो, पाक दामन जो हर इक लहजे से है,
गलतियां होती गईं और ये जहां बनता गया ।
6) वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं
और पेट की आग से डरते हैं
जबकि मैं जानता हूँ कि ‘इन्कार से भरी हुई एक चीख़’
और ‘एक समझदार चुप’
दोनों का मतलब एक है-
भविष्य गढ़ने में ,’चुप’ और ‘चीख’
अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से
अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं।
---धूमिल
7) बहक कर बाग-ए-जन्नत से चला आया था दुनिया में,
सुना है बाद महशर फिर उसी जन्नत की दावत है,
चला तो जाओं जन्नत मे मगर यह सोच कर चुप हु,
मैं आदमज़द हु मुझको बहक जाने की आदत है |
8) जितना दर्द दे सकता है देदे ऐ खुदा ,
मैं तेरी ही इबदाद से उनपर फ़तेह करूंगा|
9)मिल जाये दुनिया की उलझनों से फुर्सत, तो सोचना ...
की क्या सिर्फ फुरसतों में याद करने का रिश्ता बनाया था हम से ..
10)जाते हुए उस शक्स ने एक अजीब बददुआ सी दी....
तुझे मिले दो जहाँ की खुशियाँ पर कोई मुझ सा न मिले..
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
---धूमिल
3) हवा का रुख ही काफी बहाना होता है,
अगर चिराग किसी को जलाना होता है,
जुबानी दावे तो बहुत लोग करते रहते हैं
जुनू के काम को करके दिखाना होता है।
--- ‘शहरयार’
4) मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर
लोग साथ आते गये कारवां बनता गया
--- मजरूह सुल्तानपुरी
5) यूँ ही रक्खा था किसी ने, संग इक दीवार पर,
सर झुकाए मैं खड़ा था, वो ख़ुदा बनता गया ।.
कौन है वो, पाक दामन जो हर इक लहजे से है,
गलतियां होती गईं और ये जहां बनता गया ।
6) वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं
और पेट की आग से डरते हैं
जबकि मैं जानता हूँ कि ‘इन्कार से भरी हुई एक चीख़’
और ‘एक समझदार चुप’
दोनों का मतलब एक है-
भविष्य गढ़ने में ,’चुप’ और ‘चीख’
अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से
अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं।
---धूमिल
7) बहक कर बाग-ए-जन्नत से चला आया था दुनिया में,
सुना है बाद महशर फिर उसी जन्नत की दावत है,
चला तो जाओं जन्नत मे मगर यह सोच कर चुप हु,
मैं आदमज़द हु मुझको बहक जाने की आदत है |
8) जितना दर्द दे सकता है देदे ऐ खुदा ,
मैं तेरी ही इबदाद से उनपर फ़तेह करूंगा|
9)मिल जाये दुनिया की उलझनों से फुर्सत, तो सोचना ...
की क्या सिर्फ फुरसतों में याद करने का रिश्ता बनाया था हम से ..
10)जाते हुए उस शक्स ने एक अजीब बददुआ सी दी....
तुझे मिले दो जहाँ की खुशियाँ पर कोई मुझ सा न मिले..