May 21, 2014

कमर बांधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

कमर बांधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं ।
बहोत आगे गए, बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं ।।

न छेड़ ए निक़हत-ए-बाद-ए-बहारी, राह लग अपनी ।
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं ।।

तसव्वुर अर्श पर है और सर है पा-ए-साक़ी पर ।
ग़र्ज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मय-ख़्वार बैठे हैं ।।

बसाने नक़्शपाए रहरवाँ कू-ए-तमन्ना में ।
नहीं उठने की ताक़त, क्या करें? लाचार बैठे हैं ।।

यह अपनी चाल है उफ़तादगी से इन दिनों पहरों तक ।
नज़र आया जहां पर साया-ए-दीवार बैठे हैं ।।

कहाँ सब्र-ओ-तहम्मुल? आह! नंगोंनाम क्या शै है ।
मियाँ! रो-पीटकर इन सबको हम यकबार बैठे हैं ।।

नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो ।
जहाँ पूछो यही कहते हैं, "हम बेकार बैठे हैं" ।।

भला गर्दिश फ़लक की चैन देती है किसे इंशा !
ग़़नीमत है कि हम सूरत यहाँ दो-चार बैठे हैं ।

~ "इंशा" अल्लाह खां

May 1, 2014

समंदर की उम्र

लहर ने समंदर से उसकी उम्र पूछी
समंदर मुस्करा दिया।

लेकिन,
जब बूंद ने
लहर से उसकी उम्र पूछी
तो लहर बिगड़ गई
कुढ़ गई
चिढ़ गई
बूंद के ऊपर ही चढ़ गई
और मर गई।

बूंद ,
समंदर में समा गई
और समंदर की उम्र बढ़ा गई।

---अशोक चक्रधर

Apr 10, 2014

Dalit Poetry

I can be a Hindu
A Buddhist,
A Muslim
But the shadow
Shall never be severed from me,

The Kuladi is done,
The broom is gone,
But the shadow
Still stalks me,

I change my name,
My job,
My village,
My caste,
But the shadow will never leave me alone,

The language has changed,
The dress,
The gesture,
But the shadow
Plods resolutely on.

---Gandhvi Pravin