Oct 25, 2024

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं ख़ुदा का नाम ले कर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इस में अगर होगा दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं हवा ख़ुशबू ज़मीन ओ आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा उस को पता हो जाएगा

--- बशीर बद्र

Oct 15, 2024

लीक पर वे चलें

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।

साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट,
कि उनमें गा रहा है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।

शेष जो भी हैं—
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़,
हिलती क्षितिज की झालरें;
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मंडली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यंत्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के सहारे हैं।

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।

--- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Oct 9, 2024

वसीयत वही लिखता है

"वसीयत वही लिखता है
जिसके पास जमा-पूँजी होती है
ग़रीब आदमी वसीयत नहीं लिखता--
वह अपने दुख की किताब लिख सकता था
कि उस पर क्या बीती
उसकी लड़ाई क्या थी
उसका समझौता क्या था
उसका विरोध क्या था
और वह कैसे अकेला छोड़ दिया गया
हम सबके द्वारा
कि उसने अन्त में हारकर
आत्महत्या कर ली।"

~ विनोद कुमार शुक्ल