कुछ दूर हमारे साथ चलो हम दिल की कहानी कह देंगे
समझे न जिसे तुम आँखों से वो बात ज़ुबानी कह देंगे
जो प्यार करेंगे जानेंगे हर बात हमारी मानेंगे
जो ख़ुद न जले हों उल्फ़त में वो आग को पानी कह देंगे,
जब प्यास जवाँ हो जायेगी एहसास की मंज़िल पायेगी
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे
इस दिल में ज़रा तुम बैठो तो कुछ हाल हमारा पूछो तो
हम सादा दिल हैं 'अश्क' मगर हर बात पुरानी कह देंगे|
---इब्राहीम अश्क़
Mar 30, 2012
Mar 20, 2012
कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार...
और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश—
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त—
कितनी बार!
---अज्ञेय
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार...
और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश—
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त—
कितनी बार!
---अज्ञेय
Mar 16, 2012
कॉलेज के रोमांस में
कॉलेज के रोमांस में ऐसा होता था/
डेस्क के पीछे बैठे-बैठे/
चुपके से दो हाथ सरकते
धीरे-धीरे पास आते...
और फिर एक अचानक पूरा हाथ पकड़ लेता था,
मुट्ठी में भर लेता था।
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फ़लक में आज।।
---गुलज़ार...
डेस्क के पीछे बैठे-बैठे/
चुपके से दो हाथ सरकते
धीरे-धीरे पास आते...
और फिर एक अचानक पूरा हाथ पकड़ लेता था,
मुट्ठी में भर लेता था।
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फ़लक में आज।।
---गुलज़ार...
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