1. क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया, वो आया भी तो किसी और काम से आया - ज़माल एहसानी
2. किस सलीक़े से मता-ए-होश हम खोते रहे, गर्द चेहरे पर जमी थी आइना धोते रहे - असर फ़ैज़ाबादी
3. वो इंतिक़ाम की आतिश थी मेरे सीने में, मिला न कोई तो ख़ुद को पछाड़ आया हूँ - जमाल एहसानी
4. तितलियाँ यूँ ही नहीं बैठ रही हैं तुम पर, बारहा तुमको भी फूलों में गिना जाता है - नासिर खान नासिर
5. जो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँ, मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ - अज्ञात
6. सेंक देता था जो जाड़े में ग़रीबों के बदन, आज उस सूरज को इक दीवार उठ कर खा गई - नज़ीर बनारसी
7. उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए, इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ - नोशी गिलानी
8. हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है, हमें ढूँडेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में ~ अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
9. मैं दोस्ती में हर एक बढ़ता हाथ चूमता हूँ, बस शर्त ये हैं कि बन्दा नमक हराम न हो - राकिब मुख़्तार
10. अब नहीं कोई बात ख़तरे की, अब सभी को सभी से ख़तरा है। - जौन एलिया
11. नुक्स निकालते हैं लोग कुछ इस कदर हम में , जैसे उन्हें खुदा चाहिए था और हम इंसान मिल गए। - अज्ञात
12. उम्मीदें इंसान से लगा कर शिकवा खुदा से करते हो, तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो... - अज्ञात
13. रियाज़ मौत है इस शर्त से हमें मंज़ूर, ज़मीं सताये ना मरने पे आसमान की तरह - रियाज़ ख़ैराबादी
14. ऐ दिल! न अक़ीदा है दवा पर, न दुआ पर कम-बख़्त तुझे छोड़ दिया हम ने ख़ुदा पर...!!! - सफ़ी औरंगाबादी
15. ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए, सौ बार तौबा कीजिए, सौ बार तोड़िए...!!! - जिगर मुरादाबादी
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20 अप्रैल 2025
25 मार्च 2025
15 बेहतरीन शेर - 14 !!!
1-तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री, तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए - अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
2- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है - मीर तक़ी मीर
3- नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं, ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे- बशीर बद्र
4-जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं, ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से - नज़ीर सिद्दीक़ी
5- चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है, हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम - सरशार सैलानी
6- ये कोई क़त्ल थोड़ी है कि बात आई-गई हो, मैं और अपना नज़र-अंदाज़ होना भूल जाऊँ? - जव्वाद शेख़
7- अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल, हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया - जिगर मुरादाबादी
8- मैंने गिनती सिखाई थी जिसको, वो पहाड़ा पढ़ा रहा है मुझे। ~ फ़हमी बदायूँनी
9- मिले खाक में नौजवां कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे - प्रेम धवन
10- उस की बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सिर पर , ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ...!!! - अकबर इलाहाबादी
2- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है - मीर तक़ी मीर
4-जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं, ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से - नज़ीर सिद्दीक़ी
5- चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है, हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम - सरशार सैलानी
6- ये कोई क़त्ल थोड़ी है कि बात आई-गई हो, मैं और अपना नज़र-अंदाज़ होना भूल जाऊँ? - जव्वाद शेख़
7- अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल, हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया - जिगर मुरादाबादी
8- मैंने गिनती सिखाई थी जिसको, वो पहाड़ा पढ़ा रहा है मुझे। ~ फ़हमी बदायूँनी
9- मिले खाक में नौजवां कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे - प्रेम धवन
10- उस की बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सिर पर , ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ...!!! - अकबर इलाहाबादी
11- साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन, तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है - आल-ए-अहमद सुरूर
12- लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को, मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं - अकबर इलाहाबादी
13-देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार, रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख - मजरूह सुल्तानपुरी
14- इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के - मिर्ज़ा ग़ालिब
15- सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें, आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत - बशीर बद्र
7 फ़रवरी 2025
फ़िरंगी का जो मैं दरबान होता
फ़िरंगी का जो मैं दरबान होता तो
जीना किस क़दर आसान होता
मेरे बच्चे भी अमरीका में पढ़ते
मैं हर गर्मी में इंग्लिस्तान होता
मेरी इंग्लिश बला की चुस्त होती
बला से जो न उर्दू दान होता
झुका के सर को हो जाता जो ‘सर’ मैं
तो लीडर भी अज़ीमुश्शान होता
ज़मीनें मेरी हर सूबें में होतीं
मैं वल्लाह सदर-ए पाकिस्तान होता
जीना किस क़दर आसान होता
मेरे बच्चे भी अमरीका में पढ़ते
मैं हर गर्मी में इंग्लिस्तान होता
मेरी इंग्लिश बला की चुस्त होती
बला से जो न उर्दू दान होता
झुका के सर को हो जाता जो ‘सर’ मैं
तो लीडर भी अज़ीमुश्शान होता
ज़मीनें मेरी हर सूबें में होतीं
मैं वल्लाह सदर-ए पाकिस्तान होता
--- हबीब जालिब
17 जनवरी 2025
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना
पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना
इक हश्र बपा है घर में दम घुटता है गुम्बद-ए-बे-दर में
इक शख़्स के हाथों मुद्दत से रुस्वा है वतन दुनिया-भर में
ऐ दीदा-वरो इस ज़िल्लत को क़िस्मत का लिखा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ये अहल-ए-हश्म ये दारा-ओ-जम सब नक़्श बर-आब हैं ऐ हमदम
मिट जाएँगे सब पर्वर्दा-ए-शब ऐ अहल-ए-वफ़ा रह जाएँगे हम
हो जाँ का ज़ियाँ पर क़ातिल को मासूम-अदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
लोगों पे ही हम ने जाँ वारी की हम ने ही उन्ही की ग़म-ख़्वारी
होते हैं तो हों ये हाथ क़लम शाएर न बनेंगे दरबारी
इब्लीस-नुमा इंसानों की ऐ दोस्त सना क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हक़ बात पे कोड़े और ज़िंदाँ बातिल के शिकंजे में है ये जाँ
इंसाँ हैं कि सहमे बैठे हैं खूँ-ख़्वार दरिंदे हैं रक़्साँ
इस ज़ुल्म-ओ-सितम को लुत्फ़-ओ-करम इस दुख को दवा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
सहरा को चमन बन कर गुलशन बादल को रिदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो
विर्से में हमें ये ग़म है मिला इस ग़म को नया क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
--- हबीब जालिब
इक शख़्स के हाथों मुद्दत से रुस्वा है वतन दुनिया-भर में
ऐ दीदा-वरो इस ज़िल्लत को क़िस्मत का लिखा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ये अहल-ए-हश्म ये दारा-ओ-जम सब नक़्श बर-आब हैं ऐ हमदम
मिट जाएँगे सब पर्वर्दा-ए-शब ऐ अहल-ए-वफ़ा रह जाएँगे हम
हो जाँ का ज़ियाँ पर क़ातिल को मासूम-अदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
लोगों पे ही हम ने जाँ वारी की हम ने ही उन्ही की ग़म-ख़्वारी
होते हैं तो हों ये हाथ क़लम शाएर न बनेंगे दरबारी
इब्लीस-नुमा इंसानों की ऐ दोस्त सना क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हक़ बात पे कोड़े और ज़िंदाँ बातिल के शिकंजे में है ये जाँ
इंसाँ हैं कि सहमे बैठे हैं खूँ-ख़्वार दरिंदे हैं रक़्साँ
इस ज़ुल्म-ओ-सितम को लुत्फ़-ओ-करम इस दुख को दवा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
सहरा को चमन बन कर गुलशन बादल को रिदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो
विर्से में हमें ये ग़म है मिला इस ग़म को नया क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
--- हबीब जालिब
1 जनवरी 2025
15 बेहतरीन शेर - 13 !!!
1. तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर, सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर - अमीर मीनाई
2. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की - जमील मज़हरी
3. 'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली, न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी - हफ़ीज़ जालंधरी
2. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की - जमील मज़हरी
3. 'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली, न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी - हफ़ीज़ जालंधरी
4. आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए, गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए - जिगर मुरादाबादी
5. फूल कर ले निबाह काँटों से, आदमी ही न आदमी से मिले - ख़ुमार बाराबंकवी
6. एक ही मसला ताउम्र मेरा हल न हुआ, नींद पूरी न हुई, ख़्वाब मुकम्मल न हुआ ...!!! - मुनव्वर हाशमी
7. बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक, ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीबख़ाने में...!!! - (नोमान शौक़)
8. इस सफ़र में नींद ऐसी खो गयी, हम न सोये रात थक कर सो गयी...!!! - राही मासूम रज़ा
9. जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें, हम जिसे छू न सकें उसको खुदा कहते हैं - अहमद फ़राज़
10. 'दुनिया से निराली है नज़ीर अपनी कहानी, अंगारों से बच निकला हूँ, फूलों से जला हूँ' ~ नज़ीर बनारसी
11. 'हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया, हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही' ~ दुष्यन्त कुमार
12.आदमी खुद को कभी यूं ही सजा देता है, रौशनी के लिए शोलों को हवा देता है। - गोपालदास 'नीरज'
13. मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले, तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं - -महमूद ख़िज़ाँ
14. तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें, ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है! - तहज़ीब हाफ़ी
15. और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई, जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई - तहज़ीब हाफी
2 अक्टूबर 2024
उम्र में उस से बड़ी थी
उम्र में उस से बड़ी थी लेकिन पहले टूट के बिखरी मैं
साहिल साहिल जज़्बे थे और दरिया दरिया पहुँची मैं
शहर में उस के नाम के जितने शख़्स थे सब ही अच्छे थे
सुब्ह-ए-सफ़र तो धुँद बहुत थी धूपें बन कर निकली में
उस की हथेली के दामन में सारे मौसम सिमटे थे
उस के हाथ में जागी मैं और उस के हाथ से उजली मैं
इक मुट्ठी तारीकी में था इक मुट्ठी से बढ़ कर प्यार
लम्स के जुगनू पल्लू बाँधे ज़ीना ज़ीना उतरी मैं
उस के आँगन में खुलता था शहर-ए-मुराद का दरवाज़ा
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में ले कर पलटी मैं
मैं ने जो सोचा था यूँ तो उस ने भी वही सोचा था
दिन निकला तो वो भी नहीं था और मौजूद नहीं थी मैं
लम्हा लम्हा जाँ पिघलेगी क़तरा क़तरा शब होगी
अपने हाथ लरज़ते देखे अपने-आप ही संभली मैं
-किश्वर नाहिद
3 अगस्त 2024
15 बेहतरीन शेर - 11 !!!
1- लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है, उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी - फ़िराक़ गोरखपुरी
6- ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना, पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना - मेराज फ़ैज़ाबादी
7- मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर, मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता - रियाज़ ख़ैराबादी
8- कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे, हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे - हसन नईम
9- इंक़िलाबों की घड़ी है, हर नहीं हाँ से बड़ी है - जाँ निसार अख़्तर
2- माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख - अल्लामा इक़बाल
3- शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं - वसीम बरेलवी
4- किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल', मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया - बिस्मिल सईदी
3- शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं - वसीम बरेलवी
4- किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल', मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया - बिस्मिल सईदी
5- यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है - मंज़ूर हाशमी
6- ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना, पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना - मेराज फ़ैज़ाबादी
7- मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर, मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता - रियाज़ ख़ैराबादी
8- कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे, हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे - हसन नईम
9- इंक़िलाबों की घड़ी है, हर नहीं हाँ से बड़ी है - जाँ निसार अख़्तर
10- झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर, सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े - इक़बाल अज़ीम
11- साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का, उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ - कैफ़ भोपाली
12 - शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे, ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे - अज्ञात
13- सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं, जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं - सुदर्शन फ़ाकिर
14- छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे, आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं - अब्दुल हमीद अदम
15- इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ, जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से - साहिर लुधियानवी
11- साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का, उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ - कैफ़ भोपाली
12 - शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे, ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे - अज्ञात
13- सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं, जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं - सुदर्शन फ़ाकिर
14- छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे, आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं - अब्दुल हमीद अदम
15- इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ, जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से - साहिर लुधियानवी
14 फ़रवरी 2024
15 बेहतरीन शेर - 9 !!!
1. कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर, अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा - जिगर मुरादाबादी
2. जो अक़्ल के मारे थे, अपने भी काम ना आये , दीवानों ने दुनिया की तक़दीर बदल डाली.
3. मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की, दर्द बढ़ता गया यूँ यूँ दवा की - मीर तक़ी मीर
4. कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो, ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो! - फ़िराक़ गोरखपुरी
5. मदहोश ही रहा मैं जहाने ख़राब में, गूँथी गई थी क्या मेरी मिट्टी शराब में - मुज़तर ख़ैराबादी
6. गिरज़ा में, मन्दिरों में, अज़ानों में बँट गया, एक ही मूल का इन्सान, कई नामों में बँट गया । - निदा फ़ाज़ली
7. उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब', हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है - मिर्ज़ा ग़ालिब
8. तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी
9. गुल खिलेंगे नए फूलों की नुमाइश होगी, उस सितमगर की मुहब्बत में भी साज़िश होगी -ज़हीर रहमती
10. बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दोचार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएंगे ~ निदा फ़ाज़ली
11- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे - जिगर मुरादाबादी
12- मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा - अमीर क़ज़लबाश
13- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - ग़ालिब
14- जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है - शहरयार
15- दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है -निदा फ़ाज़ली
2. जो अक़्ल के मारे थे, अपने भी काम ना आये , दीवानों ने दुनिया की तक़दीर बदल डाली.
3. मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की, दर्द बढ़ता गया यूँ यूँ दवा की - मीर तक़ी मीर
4. कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो, ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो! - फ़िराक़ गोरखपुरी
5. मदहोश ही रहा मैं जहाने ख़राब में, गूँथी गई थी क्या मेरी मिट्टी शराब में - मुज़तर ख़ैराबादी
6. गिरज़ा में, मन्दिरों में, अज़ानों में बँट गया, एक ही मूल का इन्सान, कई नामों में बँट गया । - निदा फ़ाज़ली
7. उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब', हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है - मिर्ज़ा ग़ालिब
8. तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी
9. गुल खिलेंगे नए फूलों की नुमाइश होगी, उस सितमगर की मुहब्बत में भी साज़िश होगी -ज़हीर रहमती
10. बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दोचार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएंगे ~ निदा फ़ाज़ली
11- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे - जिगर मुरादाबादी
12- मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा - अमीर क़ज़लबाश
13- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - ग़ालिब
14- जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है - शहरयार
15- दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है -निदा फ़ाज़ली
9 अक्टूबर 2023
ख़तरे में इस्लाम नहीं
ख़तरा है ज़रदारों को, गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं आख़िर चंद घराने क्यों
नाम नबी का लेने वाले उल्फ़त से बेगाने क्यों
ख़तरा है खूंखारों को, रंग बिरंगी कारों को
अमरीका के प्यारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
आज हमारे नारों से लज़ी है बया ऐवानों में
बिक न सकेंगे हसरतों अमां ऊंची सजी दुकानों में
ख़तरा है बटमारों को, मग़रिब के बाज़ारों को
चोरों को मक्कारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
अम्न का परचम लेकर उठो, हर इंसां से प्यार करो
अपना तो मंशूर है ‘जालिब’, सारे जहां से प्यार करो
ख़तरा है दरबारों को, शाहों के ग़मख़ारों को
नव्वाबों ग़द्दारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
सदियों के बीमारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं आख़िर चंद घराने क्यों
नाम नबी का लेने वाले उल्फ़त से बेगाने क्यों
ख़तरा है खूंखारों को, रंग बिरंगी कारों को
अमरीका के प्यारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
आज हमारे नारों से लज़ी है बया ऐवानों में
बिक न सकेंगे हसरतों अमां ऊंची सजी दुकानों में
ख़तरा है बटमारों को, मग़रिब के बाज़ारों को
चोरों को मक्कारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
अम्न का परचम लेकर उठो, हर इंसां से प्यार करो
अपना तो मंशूर है ‘जालिब’, सारे जहां से प्यार करो
ख़तरा है दरबारों को, शाहों के ग़मख़ारों को
नव्वाबों ग़द्दारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं
---हबीब जालिब
27 सितंबर 2023
15 बेहतरीन शेर - 8 !!!
1. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता --- क़ाबिल अजमेरी
2. दिल था एक शोला मगर बीत गए वो दिन "क़तील", अब कुरेदो न इसे, राख में रखा क्या है ! क़तील शिफ़ाई
3. हद से बढ़े जो इल्म, तो है ज़हर दोस्तों, सब कुछ जो जानते हैं, वो कुछ जानते नहीं...! खुमार बाराबंकवी
4. इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं, आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है, या फ़रार...!!! - दुष्यंत कुमार
5. लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास, सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए...! - परवीन शाकिर
7. बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने, क्या शहर-ए-मुहब्बत में हज्जाम नहीं होता... - ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे , पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ...! - नज़्म तबातबाई
9. ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव काग़ज़ की सदा चलती नहीं - इस्माईल मेरठी
10. ख़याल ए ज़ुल्फ़ में हर दम नसीर पीटा कर, गया है साँप निकल अब लकीर पीटा कर - शाह नसीर
11. 'जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने' ~ शहरयार
12. वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, मगर इन एहतियातों से ताल्लुक़ मर नहीं जाता...!!! - वसीम बरेलवी
13. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं... - हफ़ीज़ जालंधरी
14. 'ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले' ~ कैफ़ भोपाली
15. हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी
2. दिल था एक शोला मगर बीत गए वो दिन "क़तील", अब कुरेदो न इसे, राख में रखा क्या है ! क़तील शिफ़ाई
3. हद से बढ़े जो इल्म, तो है ज़हर दोस्तों, सब कुछ जो जानते हैं, वो कुछ जानते नहीं...! खुमार बाराबंकवी
4. इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं, आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है, या फ़रार...!!! - दुष्यंत कुमार
5. लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास, सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए...! - परवीन शाकिर
7. बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने, क्या शहर-ए-मुहब्बत में हज्जाम नहीं होता... - ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे , पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ...! - नज़्म तबातबाई
9. ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव काग़ज़ की सदा चलती नहीं - इस्माईल मेरठी
10. ख़याल ए ज़ुल्फ़ में हर दम नसीर पीटा कर, गया है साँप निकल अब लकीर पीटा कर - शाह नसीर
11. 'जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने' ~ शहरयार
12. वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, मगर इन एहतियातों से ताल्लुक़ मर नहीं जाता...!!! - वसीम बरेलवी
13. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं... - हफ़ीज़ जालंधरी
14. 'ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले' ~ कैफ़ भोपाली
15. हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी
13 जून 2023
15 बेहतरीन शेर - 7 !!!
1. जनाबे शेख़ का फ़लसफ़ा, है अजीब सारे जहान से, जो वहाँ पियो तो हलाल है, जो यहाँ पियो तो हराम है - जिगर मुरादाबादी
2. दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे. जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों ... बशीर बद्र
3. देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़', कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़ - फ़िराक़ गोरखपुरी
4. "पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब, ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए" -परवीन शाकिर
5. इल्म में झिंगुर से बढ़ कर कामरां कोई नहीं, चाट जाता है किताबें, इम्तिहां कोई नहीं...!!! - ज़रीफ़ लखनवी
6. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता - क़ाबिल अजमेरी
7. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक --- मिर्ज़ा ग़ालिब
8. जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले, गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो ~ सफ़ी लखनवी
9. क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं ग़ालिब, हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे - ग़ालिब
10. वो गलियाँ याद आती हैं जवानी जिन में खोई बड़ी हसरत से लब पर ज़िक्र ए गोरखपुर आता है - रियाज़ ख़ैराबादी
11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना. आदमी को भी मय्यसर नहीं इंसां होना - ग़ालिब.
12. पेट के तक़ाज़ों ने कर दिया है नाबीना, दाना याद रहता है, दाम भूल जाता हूं ...!!! - क़तील शिफ़ाई
13. कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशां है, ज़रूरत करवाती है सजदे, वर्ना इबादत यहां कौन करता है - महशर आबिदी
14. तैयार थे नमाज़ पे, हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर, जलवा बुतों का देख के नीयत बदल गई ! - अकबर इलाहाबादी
15. “मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस, ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं” - जौन एलिया
2. दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे. जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों ... बशीर बद्र
3. देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़', कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़ - फ़िराक़ गोरखपुरी
4. "पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब, ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए" -परवीन शाकिर
5. इल्म में झिंगुर से बढ़ कर कामरां कोई नहीं, चाट जाता है किताबें, इम्तिहां कोई नहीं...!!! - ज़रीफ़ लखनवी
6. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता - क़ाबिल अजमेरी
7. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक --- मिर्ज़ा ग़ालिब
8. जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले, गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो ~ सफ़ी लखनवी
9. क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं ग़ालिब, हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे - ग़ालिब
10. वो गलियाँ याद आती हैं जवानी जिन में खोई बड़ी हसरत से लब पर ज़िक्र ए गोरखपुर आता है - रियाज़ ख़ैराबादी
11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना. आदमी को भी मय्यसर नहीं इंसां होना - ग़ालिब.
12. पेट के तक़ाज़ों ने कर दिया है नाबीना, दाना याद रहता है, दाम भूल जाता हूं ...!!! - क़तील शिफ़ाई
13. कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशां है, ज़रूरत करवाती है सजदे, वर्ना इबादत यहां कौन करता है - महशर आबिदी
14. तैयार थे नमाज़ पे, हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर, जलवा बुतों का देख के नीयत बदल गई ! - अकबर इलाहाबादी
15. “मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस, ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं” - जौन एलिया
14 नवंबर 2022
यह बच्चा किसका बच्चा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
यह बच्चा काला-काला-सा
यह काला-सा, मटियाला-सा
यह बच्चा भूखा-भूखा-सा
यह बच्चा सूखा-सूखा-सा
यह बच्चा किसका बच्चा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
जो रेत पर तन्हा बैठा है
ना इसके पेट में रोटी है
ना इसके तन पर कपड़ा है
ना इसके सर पर टोपी है
ना इसके पैर में जूता है
ना इसके पास खिलौना है
कोई भालू है कोई घोड़ा है
ना इसका जी बहलाने को
कोई लोरी है कोई झूला है
ना इसकी जेब में धेला है
ना इसके हाथ में पैसा है
ना इसके अम्मी-अब्बू हैं
ना इसकी आपा-खाला है
यह सारे जग में तन्हा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
[2]
यह सहरा कैसा सहरा है
ना इस सहरा में बादल है
ना इस सहरा में बरखा है
ना इस सहरा में बाली है
ना इस सहरा में खोशा (अनाज की बाली) है
ना इस सहरा में सब्ज़ा है
ना इस सहरा में साया है
यह सहरा भूख का सहरा है
यह सहरा मौत का सहरा है
[3]
यह बच्चा कैसे बैठा है
यह बच्चा कब से बैठा है
यह बच्चा क्या कुछ पूछता है
यह बच्चा क्या कुछ कहता है
यह दुनिया कैसी दुनिया है
यह दुनिया किसकी दुनिया है
[4]
इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है
कहीं बादल घिर-घिर आते हैं
कहीं चश्मा है कहीं दरिया है
कहीं ऊंचे महल अटरिया हैं
कहीं महफ़िल है, कहीं मेला है
कहीं कपड़ों के बाज़ार सजे
यह रेशम है, यह दीबा (बारीक रेशमी कपड़ा) है
कहीं गल्ले के अम्बार लगे
सब गेहूं धान मुहय्या है
कहीं दौलत के संदूक़ भरे
हां तांबा, सोना, रूपा है
तुम जो मांगो सो हाज़िर है
तुम जो चाहो सो मिलता है
इस भूख के दुख की दुनिया में
यह कैसा सुख का सपना है?
वो किस धरती के टुकड़े हैं?
यह किस दुनिया का हिस्सा है?
[5]
हम जिस आदम के बेटे हैं
यह उस आदम का बेटा है
यह आदम एक ही आदम है
वह गोरा है या काला है
यह धरती एक ही धरती है
यह दुनिया एक ही दुनिया है
सब इक दाता के बंदे हैं
सब बंदों का इक दाता है
कुछ पूरब-पच्छिम फ़र्क़ नहीं
इस धरती पर हक़ सबका है
[6]
यह तन्हा बच्चा बेचारा
यह बच्चा जो यहां बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
(क्या मुश्किल है, हो सकता है)
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
(हां दूध यहां बहुतेरा है)
इस बच्चे का कोई तन ढांके
(क्या कपड़ों का यहां तोड़ा (अभाव) है?)
इस बच्चे को कोई गोद में ले
(इंसान जो अब तक ज़िंदा है)
फिर देखिए कैसा बच्चा है
यह कितना प्यारा बच्चा है
[7]
इस जग में सब कुछ रब का है
जो रब का है, वह सबका है
सब अपने हैं कोई ग़ैर नहीं
हर चीज़ में सबका साझा है
जो बढ़ता है, जो उगता है
वह दाना है, या मेवा है
जो कपड़ा है, जो कम्बल है
जो चांदी है, जो सोना है
वह सारा है इस बच्चे का
जो तेरा है, जो मेरा है
यह बच्चा किसका बच्चा है?
यह बच्चा सबका बच्चा है
--- इब्ने इंशा
यह बच्चा काला-काला-सा
यह काला-सा, मटियाला-सा
यह बच्चा भूखा-भूखा-सा
यह बच्चा सूखा-सूखा-सा
यह बच्चा किसका बच्चा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
जो रेत पर तन्हा बैठा है
ना इसके पेट में रोटी है
ना इसके तन पर कपड़ा है
ना इसके सर पर टोपी है
ना इसके पैर में जूता है
ना इसके पास खिलौना है
कोई भालू है कोई घोड़ा है
ना इसका जी बहलाने को
कोई लोरी है कोई झूला है
ना इसकी जेब में धेला है
ना इसके हाथ में पैसा है
ना इसके अम्मी-अब्बू हैं
ना इसकी आपा-खाला है
यह सारे जग में तन्हा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
[2]
यह सहरा कैसा सहरा है
ना इस सहरा में बादल है
ना इस सहरा में बरखा है
ना इस सहरा में बाली है
ना इस सहरा में खोशा (अनाज की बाली) है
ना इस सहरा में सब्ज़ा है
ना इस सहरा में साया है
यह सहरा भूख का सहरा है
यह सहरा मौत का सहरा है
[3]
यह बच्चा कैसे बैठा है
यह बच्चा कब से बैठा है
यह बच्चा क्या कुछ पूछता है
यह बच्चा क्या कुछ कहता है
यह दुनिया कैसी दुनिया है
यह दुनिया किसकी दुनिया है
[4]
इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है
कहीं बादल घिर-घिर आते हैं
कहीं चश्मा है कहीं दरिया है
कहीं ऊंचे महल अटरिया हैं
कहीं महफ़िल है, कहीं मेला है
कहीं कपड़ों के बाज़ार सजे
यह रेशम है, यह दीबा (बारीक रेशमी कपड़ा) है
कहीं गल्ले के अम्बार लगे
सब गेहूं धान मुहय्या है
कहीं दौलत के संदूक़ भरे
हां तांबा, सोना, रूपा है
तुम जो मांगो सो हाज़िर है
तुम जो चाहो सो मिलता है
इस भूख के दुख की दुनिया में
यह कैसा सुख का सपना है?
वो किस धरती के टुकड़े हैं?
यह किस दुनिया का हिस्सा है?
[5]
हम जिस आदम के बेटे हैं
यह उस आदम का बेटा है
यह आदम एक ही आदम है
वह गोरा है या काला है
यह धरती एक ही धरती है
यह दुनिया एक ही दुनिया है
सब इक दाता के बंदे हैं
सब बंदों का इक दाता है
कुछ पूरब-पच्छिम फ़र्क़ नहीं
इस धरती पर हक़ सबका है
[6]
यह तन्हा बच्चा बेचारा
यह बच्चा जो यहां बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
(क्या मुश्किल है, हो सकता है)
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
(हां दूध यहां बहुतेरा है)
इस बच्चे का कोई तन ढांके
(क्या कपड़ों का यहां तोड़ा (अभाव) है?)
इस बच्चे को कोई गोद में ले
(इंसान जो अब तक ज़िंदा है)
फिर देखिए कैसा बच्चा है
यह कितना प्यारा बच्चा है
[7]
इस जग में सब कुछ रब का है
जो रब का है, वह सबका है
सब अपने हैं कोई ग़ैर नहीं
हर चीज़ में सबका साझा है
जो बढ़ता है, जो उगता है
वह दाना है, या मेवा है
जो कपड़ा है, जो कम्बल है
जो चांदी है, जो सोना है
वह सारा है इस बच्चे का
जो तेरा है, जो मेरा है
यह बच्चा किसका बच्चा है?
यह बच्चा सबका बच्चा है
--- इब्ने इंशा
4 अगस्त 2022
बीस घराने
बीस घराने हैं आबाद
बीस घराने हैं आबाद
और करोड़ों हैं नाशाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
आज भी हम पर जारी है
काली सदियों की बेदाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
बीस रूपय्या मन आटा
इस पर भी है सन्नाटा
गौहर, सहगल, आदमजी
बने हैं बिरला और टाटा
मुल्क के दुश्मन कहलाते हैं
जब हम करते हैं फ़रियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
लाइसेंसों का मौसम है
कंवेंशन को क्या ग़म है
आज हुकूमत के दर पर
हर शाही का सर ख़म है
दर्से ख़ुदी देने वालों को
भूल गई इक़बाल की याद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
आज हुई गुंडागर्दी
चुप हैं सिपाही बावर्दी
शम्मे नवाये अहले सुख़न
काले बाग़ ने गुल कर दी
अहले क़फ़स की कैद बढ़ाकर
कम कर ली अपनी मीयाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
ये मुश्ताके इसतम्बूल
क्या खोलूं मैं इनका पोल
बजता रहेगा महलों में
कब तक ये बेहंगम ढोल
सारे अरब नाराज़ हुए हैं
सीटो और सेंटों हैं शाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
गली गली में जंग हुई
ख़िल्क़त देख के दंग हुई
अहले नज़र की हर बस्ती
जेहल के हाथों तंग हुई
वो दस्तूर हमें बख़्शा है
नफ़रत है जिसकी बुनियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
- हबीब जालिब
बीस घराने हैं आबाद
और करोड़ों हैं नाशाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
आज भी हम पर जारी है
काली सदियों की बेदाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
बीस रूपय्या मन आटा
इस पर भी है सन्नाटा
गौहर, सहगल, आदमजी
बने हैं बिरला और टाटा
मुल्क के दुश्मन कहलाते हैं
जब हम करते हैं फ़रियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
लाइसेंसों का मौसम है
कंवेंशन को क्या ग़म है
आज हुकूमत के दर पर
हर शाही का सर ख़म है
दर्से ख़ुदी देने वालों को
भूल गई इक़बाल की याद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
आज हुई गुंडागर्दी
चुप हैं सिपाही बावर्दी
शम्मे नवाये अहले सुख़न
काले बाग़ ने गुल कर दी
अहले क़फ़स की कैद बढ़ाकर
कम कर ली अपनी मीयाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
ये मुश्ताके इसतम्बूल
क्या खोलूं मैं इनका पोल
बजता रहेगा महलों में
कब तक ये बेहंगम ढोल
सारे अरब नाराज़ हुए हैं
सीटो और सेंटों हैं शाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
गली गली में जंग हुई
ख़िल्क़त देख के दंग हुई
अहले नज़र की हर बस्ती
जेहल के हाथों तंग हुई
वो दस्तूर हमें बख़्शा है
नफ़रत है जिसकी बुनियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद
- हबीब जालिब
20 जून 2022
15 बेहतरीन शेर - 5 !!!
1. आपके तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है उस तरफ़ निगाहें हैं इस तरफ़ निशाना है - हिना तैमूरी
2. तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल, तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया - आरिफ़ इमाम
3. मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं आप ज़िंदा कहाँ हैं जो मर जायेंगे ! - अंसार कम्बरी
4. इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहां, होता है इश्क़ ग़ालिब, उनकी नहीं-नहीं से - मीर तक़ी मीर
5. रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को, मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी - जलील मानिकपुरी
6. दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
7. 'रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं - मिर्ज़ा ग़ालिब
8. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
9. अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला', ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया - आनंद नारायण मुल्ला
10. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का, मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है - बशीर बद्र
11. घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में, उस का लहू भी मर गया सुब्ह के इंतिज़ार में. - आदिल मंसूरी
12. 'हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे' - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
13. जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों, यहां तो कोई मेरा हम-ज़बां नहीं मिलता ! - कैफ़ी आज़मी
14. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी, वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी
15. बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए - निदा फ़ाज़ली
2. तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल, तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया - आरिफ़ इमाम
3. मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं आप ज़िंदा कहाँ हैं जो मर जायेंगे ! - अंसार कम्बरी
4. इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहां, होता है इश्क़ ग़ालिब, उनकी नहीं-नहीं से - मीर तक़ी मीर
5. रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को, मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी - जलील मानिकपुरी
6. दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
7. 'रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं - मिर्ज़ा ग़ालिब
8. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
9. अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला', ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया - आनंद नारायण मुल्ला
10. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का, मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है - बशीर बद्र
11. घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में, उस का लहू भी मर गया सुब्ह के इंतिज़ार में. - आदिल मंसूरी
12. 'हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे' - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
13. जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों, यहां तो कोई मेरा हम-ज़बां नहीं मिलता ! - कैफ़ी आज़मी
14. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी, वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी
15. बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए - निदा फ़ाज़ली
25 दिसंबर 2021
15 बेहतरीन शेर - 4 !!!
1. 'रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें, जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया' - सुदर्शन फ़ाकिर
2. मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहे | कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है - अल्लामा इक़बाल
3. एक आस्तीं चढ़ाने की आदत को छोड़कर, हाफ़ी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो -तहज़ीब हाफ़ी
4. ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं - आलोक श्रीवास्तव
5. न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया -परवीन शाकिर
6. जीने का कुछ उसूल न मरने का ढंग है हर छोटी-छोटी बात पे आपस में जंग है - रऊफ़ रहीम
7. बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई, बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी - ऐन इरफ़ान
8. कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा, मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है - बशीर बद्र
9. मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए - राहत इंदौरी
10. सुना ये है, बना करते हैं जोड़े आसमानों में, तो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है - अहमद अल्वी
11. जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं - आबिद अदीब
12. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - मिर्ज़ा ग़ालिब
13. बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है, हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है - अनवर शऊर
14. ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है - मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
15. गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं, हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं - क़तील शिफ़ाई
2. मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहे | कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है - अल्लामा इक़बाल
3. एक आस्तीं चढ़ाने की आदत को छोड़कर, हाफ़ी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो -तहज़ीब हाफ़ी
4. ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं - आलोक श्रीवास्तव
5. न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया -परवीन शाकिर
6. जीने का कुछ उसूल न मरने का ढंग है हर छोटी-छोटी बात पे आपस में जंग है - रऊफ़ रहीम
7. बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई, बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी - ऐन इरफ़ान
8. कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा, मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है - बशीर बद्र
9. मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए - राहत इंदौरी
10. सुना ये है, बना करते हैं जोड़े आसमानों में, तो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है - अहमद अल्वी
11. जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं - आबिद अदीब
12. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - मिर्ज़ा ग़ालिब
13. बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है, हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है - अनवर शऊर
14. ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है - मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
15. गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं, हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं - क़तील शिफ़ाई
21 दिसंबर 2021
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
क्यूँ जान-ए-हज़ीं ख़तरा-ए-मौहूम से निकले
क्यूँ नाला-ए-हसरत दिल-ए-मग़्मूम से निकले
आँसू न किसी दीदा-ए-मज़लूम से निकले
कह दो कि न शिकवा लब-ए-मग़्मूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू का ग़म-ए-मर्ग सुबुक भी है गराँ भी
है शामिल-ए-अर्बाब-ए-अ'ज़ा शाह-ए-जहाँ भी
मिटने को है अस्लाफ़ की अज़्मत का निशाँ भी
ये मय्यत-ए-ग़म देहली-ए-मरहूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ऐ ताज-महल नक़्श-ब-दीवार हो ग़म से
ऐ क़िला-ए-शाही ये अलम पूछ न हम से
ऐ ख़ाक-ए-अवध फ़ाएदा क्या शरह-ए-सितम से
तहरीक ये मिस्र-ओ-अ'रब-ओ-रोम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
साया हो जब उर्दू के जनाज़े पे 'वली' का
हों 'मीर-तक़ी' साथ तो हमराह हूँ 'सौदा'
दफ़नाएँ उसे 'मुसहफ़ी'-ओ-'नासिख़'-ओ-'इंशा'
ये फ़ाल हर इक दफ़्तर-ए-मंज़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
बद-ज़ौक़ है अहबाब से गो ज़ौक़ हैं रंजूर
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला के न मातम से रहें दूर
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें मोमिन-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
है मर्सियाँ-ख़्वाँ क़ौम हैं उर्दू के बहुत कम
कह दो कि 'अनीस' इस का लिखें मर्सिया-ए-ग़म
जन्नत से 'दबीर' आ के पढ़ें नौहा-ए-मातम
ये चीख़ उठे दिल से न हुल्क़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
इस लाश को चुपके से कोई दफ़न न कर दे
पहले कोई 'सरसय्यद'-ए-आज़म को ख़बर दे
वो मर्द-ए-ख़ुदा हम में नई रूह तो भर दे
वो रूह कि मौजूद न मा'दूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू के जनाज़े की ये सज-धज हो निराली
सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली
'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
फ़रियाद ये सब के दिल-ए-मग़्मूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
--- रईस अमरोहवी
16 सितंबर 2021
15 बेहतरीन शेर - 3 !!!
1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी
2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर
3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा
4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश
5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी
6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी
7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर
8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री
9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी
10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर
11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात
12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी
13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी
14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी
2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर
3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा
4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश
5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी
6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी
7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर
8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री
9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी
10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर
11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात
12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी
13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी
14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी
4 अगस्त 2020
15 बेहतरीन शेर - 2 !!!
1. 'सुख के लम्हें तक पहुँचते पहुँचते हम उन लोगों से जुदा हो जाते हैं,
जिनके साथ हमनें दुख झेलकर सुख का स्वप्न देखा था।' ~ निर्मल वर्मा
2. सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या, सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या ~ यगाना चंगेज़ी
3. कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा, फिर वही हम वही अमीनाबाद ~ यगाना चंगेज़ी
4. इंशाजी उठो अब कूच करो, इस शहर में दिल को लगाना क्या वहशी को सुकूं से क्या मतलब, जोगी का शहर में ठिकाना क्या ~ इब्ने इंशा
5. जितने हरामख़ोर थे कुरबो-जवार में, परधान बन के आ गये अगली कतार में ~ अदम गोंडवी
6. ख़बर सुन कर मेरे मरने की वो बोले रक़ीबों से, ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में ~ दाग़ देहलवी
7. कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत, जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है ~ नातिक़ लखनवी
8. तेरे घर तक आ चुकी है दूर के जंगल की आग, अब तिरा इस आग से डरना भी क्या लड़ना भी क्या ~ वज़ीर आग़ा
9. बारिश का बदन था उस का हँसना, ग़ुंचे का ख़िसाल उस का हक़ था ~ किश्वर नाहिद
10. शाएर-ए-फ़ितरत हूं जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूं मैं, रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूं मैं
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना, जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूं मैं ~ जिगर मुरादाबादी
11. क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है ~ जिगर मुरादाबादी
12. उस से बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं, सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं ~ जिगर मुरादाबादी
13. रिंद जो मुझको समझते हैं उन्हे होश नहीं, मैक़दासाज़ हूँ मै मैक़दाबरदोश नहीं ~ जिगर मुरादाबादी
14. जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तेरे आक़बत सँवार चले - फैज़
15. ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें, इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं --जाँ निसार अख़्तर
15 मई 2020
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
फूलों की खुशबू भी काफ़िर
शब्दों का जादू भी काफ़िर
यह भी काफिर, वह भी काफिर
फ़ैज़ भी और मंटो भी काफ़िर
नूरजहां का गाना काफिर
मैकडोनैल्ड का खाना काफिर
बर्गर काफिर, कोक भी काफ़िर
हंसी गुनाह, जोक भी काफ़िर
तबला काफ़िर, ढोल भी काफ़िर
प्यार भरे दो बोल भी काफ़िर
सुर भी काफिर, ताल भी काफ़िर
भांगरा, नाच, धमाल भी काफ़िर
दादरा, ठुमरी, भैरवी काफ़िर
काफी और खयाल भी काफ़िर
वारिस शाह की हीर भी काफ़िर
चाहत की जंजीर भी काफ़िर
जिंदा-मुर्दा पीर भी काफ़िर
भेंट नियाज़ की खीर भी काफ़िर
बेटे का बस्ता भी काफ़िर
बेटी की गुड़िया भी काफ़िर
हंसना-रोना कुफ़्र का सौदा
गम काफ़िर, खुशियां भी काफ़िर
जींस भी और गिटार भी काफ़िर
टखनों से नीचे बांधो तो
अपनी यह सलवार भी काफ़िर
कला और कलाकार भी काफ़िर
जो मेरी धमकी न छापे
वह सारे अखबार भी काफ़िर
यूनिवर्सिटी के अंदर काफ़िर
डार्विन भाई का बंदर काफ़िर
फ्रायड पढ़ाने वाले काफ़िर
मार्क्स के सबसे मतवाले काफ़िर
मेले-ठेले कुफ़्र का धंधा
गाने-बाजे सारे फंदा
मंदिर में तो बुत होता है
मस्जिद का भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफ़िर
कुछ मस्जिद में अंदर काफ़िर
मुस्लिम देश में अक्सर काफ़िर
काफ़िर काफ़िर मैं भी काफ़िर
काफ़िर काफ़िर तू भी काफ़िर!
---सलमान हैदर
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
फूलों की खुशबू भी काफ़िर
शब्दों का जादू भी काफ़िर
यह भी काफिर, वह भी काफिर
फ़ैज़ भी और मंटो भी काफ़िर
नूरजहां का गाना काफिर
मैकडोनैल्ड का खाना काफिर
बर्गर काफिर, कोक भी काफ़िर
हंसी गुनाह, जोक भी काफ़िर
तबला काफ़िर, ढोल भी काफ़िर
प्यार भरे दो बोल भी काफ़िर
सुर भी काफिर, ताल भी काफ़िर
भांगरा, नाच, धमाल भी काफ़िर
दादरा, ठुमरी, भैरवी काफ़िर
काफी और खयाल भी काफ़िर
वारिस शाह की हीर भी काफ़िर
चाहत की जंजीर भी काफ़िर
जिंदा-मुर्दा पीर भी काफ़िर
भेंट नियाज़ की खीर भी काफ़िर
बेटे का बस्ता भी काफ़िर
बेटी की गुड़िया भी काफ़िर
हंसना-रोना कुफ़्र का सौदा
गम काफ़िर, खुशियां भी काफ़िर
जींस भी और गिटार भी काफ़िर
टखनों से नीचे बांधो तो
अपनी यह सलवार भी काफ़िर
कला और कलाकार भी काफ़िर
जो मेरी धमकी न छापे
वह सारे अखबार भी काफ़िर
यूनिवर्सिटी के अंदर काफ़िर
डार्विन भाई का बंदर काफ़िर
फ्रायड पढ़ाने वाले काफ़िर
मार्क्स के सबसे मतवाले काफ़िर
मेले-ठेले कुफ़्र का धंधा
गाने-बाजे सारे फंदा
मंदिर में तो बुत होता है
मस्जिद का भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफ़िर
कुछ मस्जिद में अंदर काफ़िर
मुस्लिम देश में अक्सर काफ़िर
काफ़िर काफ़िर मैं भी काफ़िर
काफ़िर काफ़िर तू भी काफ़िर!
---सलमान हैदर
11 अप्रैल 2020
15 बेहतरीन शेर !!!
1. खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है - अमीर मीनाई
2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी
3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र
4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री
5. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार
6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र
7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़
6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी
7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी
8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)
9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी
10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता
11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी
12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र
13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’
14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़
15. ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी
3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र
4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री
5. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार
6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र
7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़
6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी
7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी
8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)
9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी
10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता
11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी
12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र
13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’
14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़
15. ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है - अल्लामा इक़बाल
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