बने हो एक ख़ाक से, तो दूर क्या क़रीब क्या
लहु का रंग एक है, अमीर क्या गरीब क्या
बने हो एक ...
वो ही जान वो ही तन, कहाँ तलक़ छुपाओगे -
पहन के रेशमी लिबाज़, तुम बदल न जाओगे
के एक जात हैं सभी
तो बात है अजीब सी
लहु का रंग एक है ...
गरीब है वो इस लिये, तुम अमीर हो गये
के एक बादशाह हुआ, तो सौ फ़कीर हो गये
खता यह है समाज की -(२)
भला बुरा नसीब क्या
लहु का रंग एक है ...
जो एक हो तो क्यूँ ना फिर, दिलों का दर्द बाँट लो
लहु की प्यास बाँट लो, रुको कि दर्द बाँट लो
लगा लो सब को तुम गले
हबीब क्या, रक़ीब क्या
लहु का रंग एक है ...
---मजरूह सुल्तानपुरी
Yotube Video - Link
what the hell. you bot
ReplyDeleteWakya thik se ban nahin paya
ReplyDelete