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Nov 20, 2025

सुभाषितानि - 4 (Subhashitani -4)

 1. सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्॥

हिन्दी अर्थ: सब लोग सुखी हों, सब लोग स्वस्थ एवं निरोगी रहें। सबको शुभ फल प्राप्त हों, कोई भी दुःखी न हो।

2. अलस्यस्य कुतो विद्या? अविद्यस्य कुतो धनम्? अधनस्य कुतो मित्रम्? अमित्रस्य कुतः सुखम्॥

हिन्दी अर्थ: आलसी व्यक्ति को विद्या कहाँ? अनपढ़ को धन कहाँ? गरीब को मित्र कहाँ? और जिसका मित्र नहीं है, उसे सुख कहाँ?

3. विद्या ददाति विनयम्, विनयाद् याति पात्रता। पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मः ततः सुखम्॥

हिन्दी अर्थ: विद्या से विनय मिलता है, विनय से योग्य बनने की शक्ति मिलती है। पात्रता से धन मिलता है, धन से धर्म, और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।

4. पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं धनम्। कार्यकाले समुपस्थिते, न सा विद्या न तत् धनम्॥

हिन्दी अर्थ: जो विद्या केवल पुस्तकों में है, जैसा धन जो केवल दूसरों के पास है, वह दोनों आवश्यकता के समय काम नहीं आते।

5. परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः। परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थमिदं शरीरम्॥

हिन्दी अर्थ: वृक्ष फल दूसरों के लिए देते हैं, नदियाँ दूसरों के लिए अपना जल बहाती हैं, गायें दूसरों के लिए दूध देती हैं, मनुष्य का शरीर भी दूसरों की भलाई के लिए होना चाहिए।

6. अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च। धर्मेणैव जीवितं हि लोकः सुखमास्थितः।

हिन्दी अर्थ:  अहिंसा ही परम धर्म है, परंतु यदि धर्म की रक्षा के लिए हिंसा आवश्यक हो तो वह भी धर्म के अन्तर्गत आती है। इससे जीवन का सही अर्थ और संसार का संतुलन समझ आता है।

7. अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तितः । न स्नानेन न दानेन प्राणायाम शतेन वा ॥

हिंदी अर्थ: विवेकपूर्ण विचार-मनन और हितकारी उपदेशों के द्वारा ही तत्त्वज्ञान की निश्चयात्मक प्राप्ति होती है। केवल स्नान करने से, दान देने से अथवा सैकड़ों प्राणायाम करने से आत्मज्ञान प्राप्त नहीं होता. 

Nov 18, 2025

सुभाषितानि - 3 (Subhashitani -3)

 1. क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्। क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

अर्थ : हर क्षण और हर छोटे से छोटे कण का ध्यान रखकर विद्या और धन का अर्जन करना चाहिए। अगर समय या संसाधन व्यर्थ जाते हैं तो विद्या या धन कैसे प्राप्त होंगे?

2.  शरणागतः कर्णाक्षैव विद्यामर्थं च चिन्तयेत्। शरण्यागः कुलो विद्या कुलन्यागः कुलो धनम॥

अर्थ : जो व्यक्ति शरण में आता है, उसे विद्या और धन के बारे में चिन्ता करनी चाहिए। कुल (वंश) की प्रतिष्ठा विद्या और धन से होती है।

3. प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्। तृतीयं नार्जितं पुण्यं चतुर्थं किं करिष्यति॥

अर्थ : पहले विद्या, फिर धन और फिर पुण्य अर्जित करो। यदि पहले तीनों नहीं, तो चौथे में क्या होगा?

4. सर्वदीव्यमभी माता सर्वदीव्यम पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वदेव्यं पूजयेत्॥

अर्थ : सब देवताओं में माता और पिता सर्वोच्च हैं, इसलिए उनका सम्मान करना चाहिए।

5. प्रियवाच्पवादेन सर्वं दुर्व्ययं जनतः। तस्मात्तव वचस्य कच्चति च दरिद्रता॥

अर्थ : प्रिय वार्ता से भी अपकार होता है। इसलिए जरूरी है कि अपने शब्दों का सावधानी से प्रयोग करें।

6. "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥"

अर्थ : हमेशा सच बोलो, परंतु ऐसा सच जो प्रिय हो। जो सत्य अप्रिय हो, उसे न कहो। साथ ही प्रिय बातें बोलो, पर झूठ नहीं।

Nov 16, 2025

सुभाषितानि -2 (Subhashitani -2)

1. अक्रोधेन जयेत्त्क्रोधम् असाधुं साधुना जयेत्।  जयेत्त्कदर्यं दानेन जयेत्स्तेनं चातुतम्॥  

अर्थ : गुस्से से क्रोध को हराया जा सकता है। बुरे मनुष्य को अच्छे मनुष्य से जीता जा सकता है। दान से लालच को हराया जा सकता है और सत्य बोलने से झूठ पर जीत होती है।  

2. गच्छन् पिपीलिको याति योजनानां शतान्यपि।  अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति॥  

अर्थ : चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन की दूरी तय कर जाती है, परंतु न चलने वाला गरुड़ पक्षी भी एक कदम नहीं बढ़ा सकता। इससे यह सीख मिलती है कि निरंतर प्रयास से ही सफलता मिलती है, चाहे गति धीमी हो।  

3. दिनान्ते च पिबेद् दुग्धं निशान्ते च पिबेत् पयः।  भोजनान्ते च पिबेत् तक्रं किम् वैध्यस्य प्रयोजनम्॥  

अर्थ : दिन के अंत में दूध पिए और रात के अंत में जल पिए। भोजन के अंत में दही पिए। ऐसे आहार से शरीर स्वस्थ रहता है, अन्यथा चिकित्सक (वैद्य) का कोई लाभ नहीं।  

4. षड्दोषाः पुरुषेणेः हाथव्याः भूतमता।  निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता॥  

अर्थ : मनुष्य को छह दोषों से बचना चाहिए, जो उसके विनाश के कारण हैं – नींद, सुस्ती, भय, क्रोध, आलस्य और बहुत लंबे समय तक निरंतर विचार करना।  

5. निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।  

अधेव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीरा:॥  

अर्थ : जो लोग नीति में पारंगत हैं, चाहे उनका कोई भी निंदा करें या स्तुति, लक्ष्मी (श्री, समृद्धि) उनका साथ देती है या नहीं, चलो, मर जाना बेहतर है। क्योंकि जो धीर पुरुष सत्य और न्याय के मार्ग पर चलते हैं, उनका कभी पद भी नहीं हिलता। 

Nov 14, 2025

सुभाषितानि - 1 (Subhashitani -1)

 १. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

हिन्दी अर्थ: यह मेरा है, वह पराया है - यह सोच संकीर्ण चित्त वाले लोगों की है। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो पूरा विश्व ही एक परिवार है।

२. सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्। एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥

हिन्दी अर्थ: दूसरों पर निर्भर रहना दुख का कारण है; अपने अधिकार में रहना ही सुख है। सुख-दुख की यही पहचान है।

३. वृथा वृद्धि: समुद्रेऽपि वृथा तृप्तस्य भोजनम्। वृथा दानं समर्थस्य वृथा दीपो दिवापि च॥

हिन्दी अर्थ: समुद्र में अनावश्यक वृद्धि (पानी डालना) व्यर्थ है, संतुष्ट व्यक्ति को भोजन देना भी व्यर्थ है; सम्पन्न व्यक्ति को दान देना और दिन के उजाले में दीप जलाना भी व्यर्थ है।

४. काव्यशास्त्रविनोदेन् काले गच्छति धीमताम्। व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥

हिन्दी अर्थ: समझदार लोग अपना समय काव्य, शास्त्र और विद्या में लगाते हैं। मूर्ख लोग अपना समय व्यसनों, नींद और झगड़ों में गँवा देते हैं।

५. महान्तं प्रायः सद्बुद्धेः संयोजनं लघुजनम्। यत्रास्ति सूचिकार्पः कृपाण: किं करिष्यति॥

हिन्दी अर्थ: जहां बुद्धि, सद्बुद्धि (विवेक) और महापुरुषों का संग होता है, वहीं महानता आती है। सुई में अगर तलवार की धार लगा दी जाए, तो भी वह तलवार का काम नहीं कर सकती।

६. किं कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य देहिनः। विद्यावान् पूज्यते लोके नाविध्य: परिपूज्यते॥

हिन्दी अर्थ: बड़े कुल (परिवार) में जन्म लेने का क्या लाभ, अगर मनुष्य में विद्या नहीं है। संसार में विद्वान् की ही पूजा होती है, अविद्वान् की नहीं।

७. वेशेन वपुषा वाचा विद्यया विनयेन च। वकारैः पञ्चाभिजुक्तो नरो भवति पूजितः॥

हिन्दी अर्थ: वेश (वस्त्र), शरीर, वाणी, विद्या और विनय - ये पांच 'व' गुण जिस मनुष्य में होते हैं, वही समाज में सम्मान पाता है।

Jul 20, 2025

सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे (Ram Setu Construction Song from Ramayana: The Legend of Prince Rama)

जय जय जय जय......
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
सागार उरु निर्धरत कृत्व पादैहः ताडय रे
सागार उरु निर्धरत कृत्व पादैहः ताडय रे ।
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
शैलम् भञ्जय, शिलानु खण्डय, शैलम् भञ्जय शिलानु खण्डय
विक्षलयति मुलधातु पाटय विक्षलयति मुलधातु पाटय ।
सागर तेजोहरणम् चित्ते सततम् धारय रे
सागर तेजोहरणम् चित्ते सततम् धारय रे ।
रघुपति चरण स्पर्श वरदानम्, भवति काष्ठवत् दृढपाषाणम्
रघुपति चरण स्पर्श वरदानम्, भवति काष्ठवत् दृढपाषाणम् ।
स्पर्श तुनीत शिला खण्डानपि जलधिजले धारयरे
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
शिला भवति खलु, सन्तरणीय, शिला भवति खलु सन्तरणीय 
राम कृपा चिर सन्स्मरणीय राम कृपा चिर सन्स्मरणीय ।
जय जय जय श्री राम जयति जय मन्त्रम् पाठय रे
जय जय जय श्री राम जयति जय मन्त्रम् पाठय रे ।
यत्र एकत तत्र सबलता भक्तिः यत्र तत्र सफलता
यत्र एकत तत्र सबलता भक्तिः यत्र तत्र सफलता
रामनाम अङ्किता धरित्रिम् धर्णसा सञ्योजय ।
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
सागार उरु निर्धारत कृत्व पादैहः ताडय रे
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ॥

Translation (English): Lets make a bridge! 
In the name of Sri Rama lets make a bridge! 
(Lets make a bridge) 
To cross the wide ocean on foot and settle on the other side! 
(Lets make a bridge) 
By smashing mountains and breaking rocks, 
without getting washed away or falling into the ocean. 
Let's keep the intention in mind not to take away the ocean's glory by doing so. 
With the blessings from the feet of Raghupati Sri Rama, 
pieces of wood and stone will stay firm. 
With his touch, rocks and trunks will stay firm in the ocean. 
Lets make a bridge! In the name of Sri 
Rama lets make a bridge! Now the rocks are firm are they not? 
Then lets cross the ocean! With the grace of Sri Rama, 
they will forever be remembered in history. 
Lets recite the mantra - "Victory to Sri Rama". 
Where there is unity there is strength, 
where there is devotion (to work) there is success. 
With the name of Sri Rama marked (on all the rocks), 
they will be supported and remain firm together. 
Lets make a bridge! In the name of Sri Rama 
Lets make a bridge to cross the wide ocean on foot and settle on the other side!

 

Jan 16, 2019

दुर्दिन

देवे कुर्वति दुर्दिनव्यतिकरं नास्त्येव तन्मन्दिरं
यत्राहारगवेषणाय बहुशो नासीद् गता वायसी ।
किन्तु प्राप न किञ्चन क्वचिदपि प्रस्वापहेतोस्तथा
प्युद्भिन्नार्भकचञ्चुषु भ्रमयति स्वं रिक्त-चञ्चुपुटम् ।।

अर्थात्
कैसा दुर्दिन दिखाया देव ने
पानी बरसता ही रहा लगातार
कोई घर नहीं था जहाँ न गई हो कौवी
दाना खोजने के लिये.
पर कहीं से कुछ न पा सकी.
चोंचें खोले हुए चूजों को सुलाने के लिये अब वह
घुमा रही है अपनी खाली चोंच
उनकी चोंचों में.

--- अज्ञात (संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा)
अनुवाद - डा राधावल्लभ त्रिपाठी