Nov 14, 2025

सुभाषितानि - 1 (Subhashitani -1)

 १. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

हिन्दी अर्थ: यह मेरा है, वह पराया है - यह सोच संकीर्ण चित्त वाले लोगों की है। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो पूरा विश्व ही एक परिवार है।

२. सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्। एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥

हिन्दी अर्थ: दूसरों पर निर्भर रहना दुख का कारण है; अपने अधिकार में रहना ही सुख है। सुख-दुख की यही पहचान है।

३. वृथा वृद्धि: समुद्रेऽपि वृथा तृप्तस्य भोजनम्। वृथा दानं समर्थस्य वृथा दीपो दिवापि च॥

हिन्दी अर्थ: समुद्र में अनावश्यक वृद्धि (पानी डालना) व्यर्थ है, संतुष्ट व्यक्ति को भोजन देना भी व्यर्थ है; सम्पन्न व्यक्ति को दान देना और दिन के उजाले में दीप जलाना भी व्यर्थ है।

४. काव्यशास्त्रविनोदेन् काले गच्छति धीमताम्। व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥

हिन्दी अर्थ: समझदार लोग अपना समय काव्य, शास्त्र और विद्या में लगाते हैं। मूर्ख लोग अपना समय व्यसनों, नींद और झगड़ों में गँवा देते हैं।

५. महान्तं प्रायः सद्बुद्धेः संयोजनं लघुजनम्। यत्रास्ति सूचिकार्पः कृपाण: किं करिष्यति॥

हिन्दी अर्थ: जहां बुद्धि, सद्बुद्धि (विवेक) और महापुरुषों का संग होता है, वहीं महानता आती है। सुई में अगर तलवार की धार लगा दी जाए, तो भी वह तलवार का काम नहीं कर सकती।

६. किं कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य देहिनः। विद्यावान् पूज्यते लोके नाविध्य: परिपूज्यते॥

हिन्दी अर्थ: बड़े कुल (परिवार) में जन्म लेने का क्या लाभ, अगर मनुष्य में विद्या नहीं है। संसार में विद्वान् की ही पूजा होती है, अविद्वान् की नहीं।

७. वेशेन वपुषा वाचा विद्यया विनयेन च। वकारैः पञ्चाभिजुक्तो नरो भवति पूजितः॥

हिन्दी अर्थ: वेश (वस्त्र), शरीर, वाणी, विद्या और विनय - ये पांच 'व' गुण जिस मनुष्य में होते हैं, वही समाज में सम्मान पाता है।

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