Nov 18, 2025

सुभाषितानि - 3 (Subhashitani -3)

 1. क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्। क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

अर्थ : हर क्षण और हर छोटे से छोटे कण का ध्यान रखकर विद्या और धन का अर्जन करना चाहिए। अगर समय या संसाधन व्यर्थ जाते हैं तो विद्या या धन कैसे प्राप्त होंगे?

2.  शरणागतः कर्णाक्षैव विद्यामर्थं च चिन्तयेत्। शरण्यागः कुलो विद्या कुलन्यागः कुलो धनम॥

अर्थ : जो व्यक्ति शरण में आता है, उसे विद्या और धन के बारे में चिन्ता करनी चाहिए। कुल (वंश) की प्रतिष्ठा विद्या और धन से होती है।

3. प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्। तृतीयं नार्जितं पुण्यं चतुर्थं किं करिष्यति॥

अर्थ : पहले विद्या, फिर धन और फिर पुण्य अर्जित करो। यदि पहले तीनों नहीं, तो चौथे में क्या होगा?

4. सर्वदीव्यमभी माता सर्वदीव्यम पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वदेव्यं पूजयेत्॥

अर्थ : सब देवताओं में माता और पिता सर्वोच्च हैं, इसलिए उनका सम्मान करना चाहिए।

5. प्रियवाच्पवादेन सर्वं दुर्व्ययं जनतः। तस्मात्तव वचस्य कच्चति च दरिद्रता॥

अर्थ : प्रिय वार्ता से भी अपकार होता है। इसलिए जरूरी है कि अपने शब्दों का सावधानी से प्रयोग करें।

6. "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥"

अर्थ : हमेशा सच बोलो, परंतु ऐसा सच जो प्रिय हो। जो सत्य अप्रिय हो, उसे न कहो। साथ ही प्रिय बातें बोलो, पर झूठ नहीं।

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