Jul 4, 2016

एन.जी.ओ. एक ख़तरनाक साम्राज्यवादी कुचक्र

भिखमंगे आये
नवयुग का मसीहा बनकर,
लोगों को अज्ञान, अशिक्षा और निर्धनता से मुक्ति दिलाने ।
अद्भुत वक्तृता, लेखन–कौशल और
सांगठनिक क्षमता से लैस
स्वस्थ–सुदर्शन–सुसंस्कृत भिखमंगे आये
हमारी बस्ती में ।
एशिया–अफ्रीका–लातिनी अमेरिका के
तमाम गरीबों के बीच
जिस तरह पहुंचे वे यानों और
वाहनों पर सवार,
उसी तरह आये वे हमारे बीच ।
भीख, दया, समर्पण और भय की
संस्कृति के प्रचारक
पुराने मिशनरियों से वे अलग थे,
जैसे कि उनके दाता भी भिन्न थे
अपने पूर्वजों से ।
अलग थे वे उन सर्वोदयी याचकों से भी
जिनके गांधीवादी जांघिये में
पड़ा रहता था
(और आज भी पड़ा रहता है)
विदेशी अनुदान का नाड़ा ।
भिखमंगों ने बेरोजगार युवाओं से
कहा-“तुम हमारे पास आओ,
हम तुम्हें जनता की सेवा करना सिखायेंगे,
वेतन कम देंगे
पर गुजारा–भत्ता से बेहतर होगा
और उसकी भरपाई के लिए
‘जनता के आदमी’ का
ओहदा दिलायेंगे,
स्थायी नौकरी न सही,
बिना किसी जोखिम के
क्रान्तिकारी बनायेंगे,
मजबूरी के त्याग का वाजिब
मोल दिलायेंगे ।”
“रिटायर्ड, निराश, थके हुए क्रान्तिकारियो,
आओ, हम तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बतायेंगे ।
वामपंथी विद्वानो, आओ
आओ सबआल्टर्न वालो,
आओ तमाम उत्तर मार्क्सवादियो,
उत्तर नारीवादियो वगैरह–वगैरह
आओ, अपने ज्ञान और अनुभव से
एन.जी.ओ. दर्शन के नये–नये शस्त्र और शास्त्र रचो,”
आह्वान किया भिखमंगों ने
और जुट गये दाता–एजेंसियों के लिए
नई रिपोर्ट तैयार करने में

May 1, 2016

निवाला

मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिए जलायेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!

---अली सरदार जाफ़री

Apr 2, 2016

कौन आज़ाद हुआ ?

कौन आज़ाद हुआ ?
किसके माथे से सियाही छुटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?

खंजर आज़ाद है सीने मे उतरने के लिए
वर्दी आज़ाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशो पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?

काले बाज़ार मे बदशक्ल चुदैलों की तरह
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?

कारखानों मे लगा रहता है
साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?

रोटियाँ चकलो की कहवाये है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजबनी देश के बाजारों मे बिक जाते है
और बदबख्त किसानो की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है

कौन आजाद हुआ ?

---अली सरदार जाफ़री