जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !
जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !
एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !
कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !
थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !
दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !
---नागार्जुन
Sep 25, 2021
Sep 22, 2021
जूता
तारकोल और बजरी से सना 
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।
मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।
~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।
मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।
~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Sep 20, 2021
The Warrior's Resting Place
The dead are getting more restless each day.
They used to be easy
we’d put on stiff collars flowers
praised their names on long lists
shrines of the homeland
remarkable shadows
monstrous marble.
The corpses signed away for posterity
returned to formation
and marched to the beat of our old music.
But not anymore
the dead
have changed.
They get all ironic
they ask questions.
It seems to me they’ve started to realise
they’re becoming the majority!
They used to be easy
we’d put on stiff collars flowers
praised their names on long lists
shrines of the homeland
remarkable shadows
monstrous marble.
The corpses signed away for posterity
returned to formation
and marched to the beat of our old music.
But not anymore
the dead
have changed.
They get all ironic
they ask questions.
It seems to me they’ve started to realise
they’re becoming the majority!
--- Roque Dalton
Sep 16, 2021
15 बेहतरीन शेर - 3 !!!
1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़,  मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी
2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर
3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा
4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश
5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी
6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी
7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर
8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री
9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी
10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर
11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात
12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी
13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी
14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी
2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर
3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा
4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश
5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी
6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी
7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर
8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री
9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी
10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर
11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात
12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी
13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी
14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी
Sep 13, 2021
चेतक की वीरता
 रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
 चेतक बन गया निराला था
 राणाप्रताप के घोड़े से
 पड़ गया हवा का पाला था
 जो तनिक हवा से बाग हिली
 लेकर सवार उड़ जाता था
 राणा की पुतली फिरी नहीं
 तब तक चेतक मुड़ जाता था
 गिरता न कभी चेतक तन पर 
 राणाप्रताप का कोड़ा था 
 वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर 
 वह आसमान का घोड़ा था 
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं 
 वह वहीं रहा था यहाँ नहीं 
 थी जगह न कोई जहाँ नहीं 
 किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं 
 निर्भीक गया वह ढालों में 
 सरपट दौडा करबालों में 
 फँस गया शत्रु की चालों में 
 बढ़ते नद-सा वह लहर गया 
 फिर गया गया फिर ठहर गया 
 विकराल वज्रमय बादल-सा 
 अरि की सेना पर घहर गया 
 भाला गिर गया गिरा निसंग 
 हय टापों से खन गया अंग 
 बैरी समाज रह गया दंग 
 घोड़े का ऐसा देख रंग 
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