September 22, 2021

जूता

तारकोल और बजरी से सना
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।

मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।

~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२३-०९-२०२१) को
    'पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक'(चर्चा अंक-४१९६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह बहुत ही गहरे भाव!

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  3. गोपेश मोहन जैसवालSeptember 23, 2021 at 1:39 PM

    सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की जूते पर कही गयी कविताएँ समाज की विसंगतियों, उसमें व्याप्त अन्याय, शोषण और मानवीय कुंठाओं का बाक खुलासा करती हैं.

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