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Oct 27, 2025

आनेवाला ख़तरा

इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता

कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती

और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि फलते-फूलनेवाले हैं लोग

औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे—रमेश
एक दिन इसी तरह आएगा—रमेश
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी—रमेश
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्ज़ियों के सिवाय—रमेश

ख़तरा होगा ख़तरे की घंटी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा—रमेश

--- रघुवीर सहाय 
पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ 

Oct 8, 2025

गाज़ा का कुत्ता

वह जो कुर्सी पर बैठा
अख़बार पढ़ने का ढोंग कर रहा है
जासूस की तरह
वह दरअसल मृत्यु का फ़रिश्ता है ।

क्या शानदार डॉक्टरों जैसी बेदाग़ सफ़ेद पोशाक है उसकी
दवाओं की स्वच्छ गंध से भरी
मगर अभी जब उबासी लेकर अख़बार फड़फड़ाएगा,
जो दरअसल उसके पंख हैं
तो भयानक बदबू से भर जायेगा यह कमरा
और ताजा खून के गर्म छींटे
तुम्हारे चेहरे और बालों को भी लथपथ कर देंगे
हालांकि बैठा है वह समुद्रों के पार
और तुम जो उसे देख प् रहे हो

वह सिर्फ तकनीक है
ताकि तुम उसकी सतत उपस्तिथि को विस्मृत न कर सको

बालू पर चलते हैं अविश्वसनीय रफ़्तार से सरसराते हुए भारी-भरकम टैंक
घरों पर बुलडोजर
बस्तियों पर बम बरसते हैं
बच्चों पर गोलियां

एक कुत्ता भागा जा रहा है
धमाकों की आवाज़ के बीच
मुंह में किसी बच्चे की उखड़ी बची हुई भुजा दबाये
कान पूँछ हलके से दबे हुए
उसे किसी परिकल्पित
सुरक्षित ठिकाने की तलाश है
जहाँ वह इत्मीनान से
खा सके अपना शानदार भोज
वह ठिकाना उसे कभी मिलेगा नहीं ।

--- वीरेन डंगवाल

Oct 5, 2025

किसान की आवाज़ | The Voice of the Farmer - Poem in Jolly LLB 3 Movie

छप्पर टपकता रहा मेरा फिर भी

मैंने बारिश की दुआ की

मेरे दादा को परदादा से

पिता को दादा से

और मुझे पिता से जो विरासत मिली

वही सौंपना चाहता था मैं अपने बेटे को

देना चाहता था थोड़ी-सी ज़मीन

और एक मुट्ठी बीज कि

सबकी भूख मिटाई जा सके

इसलिए मैंने यकीन किया

उनकी हर एक बात पर

भाषण में कहे जज्बात पर

मैं मुग्ध होकर देखता रहा

आसमान की तरफ उठे उनके सर

और उन्होंने मेरे पैरों के नीचे से जमीन खींच ली

मुझे अन्नदाता होने का अभिमान था

यही अपराध था मेरा कि

मैं एक किसान था।

संदर्भ:कविता हिंदी के यथार्थवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध से प्रेरित है। फिल्म "जॉली एलएलबी 3" में किसान की आत्मकथा की तरह सुनाई गई वह कविता हिंदी साहित्य के महान कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रेरणा से बनायी गई है। यह कविता किसान की भावनाओं और संघर्ष को गहरे और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है।

प्रश्नोत्तर तरह के जोगीरा (Jogira sa ra ra )

1. कय हाथ के धोती पेन्हा,  कय हाथ लपेटा?

कय पान का बीरा खाया,  कय बाप के बेटा?

सात हाथ का धोती पेन्हा, पाँच हाथ लपेटा ।

चार पान का बीड़ा खाया,  एक बाप का बेटा ।

जोगीरा सा रा रा रा।

2. कोन समय में धरती फाटल, कोन समय असमान,

कोन समय में सिया हरण भेल खोजै छथि भगवान

सतयुग में धरती फाटल, द्वापर में असमान

त्रेता युग में  सिया हरण भेल, खोजै छथि भगवान!
 
जोगीरा सा रा रा रा।

फगुआ रंग, तरंग आ उमंग आनय।

3.  कौन काठ के बनी खड़ौआ, कौन यार बनाया है?

कौन गुरु की सेवा कीन्हो, कौन खड़ौआ पाया?

चनन काठ के बनी खड़ौआ, बढ़यी यार बनाया हो।

हम गुरु की सेवा कीन्हा, हम खड़ौआ पाया है।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।


4.  किसके बेटा राजा रावण किसके बेटा बाली?

किसके बेटा हनुमान जी जे लंका जारी?

विसेश्रवा के राजा रावण बाणासुर का बाली।

पवन के बेटा हनुमान जी, ओहि लंका के जारी।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।


5. किसके मारे अर्जुन मर गए किसके मारे भीम?

किसके मारे बालि मर गये, कहाँ रहा सुग्रीव?

कृष्ण मारे आर्जुन मर गए कृष्ण के मारे भीम।

राम के मारे बालि मर गए लड़ता था सुग्रीव।

जोगी जी वाह वाह, जोगी जी सारा रा रा।

Oct 1, 2025

बनारस की गली / नज़ीर बनारसी

हर गाम पे हुशियार बनारस की गली में
फ़ितने भी हैं बेदार बनारस की गली में

ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में
बिक जायें ख़रीदार बनारस की गली में

हुशियारी से रहना नहीं आता जिन्हें इस पार
हो जाते हैं उस पार बनारस की गली में

सड़कों पे दिखाओगे अगर अपनी रईसी
लुट जाओगे सरकार, बनारस की गली में

दूकान पे रूकिएगा तो फिर आपके पीछे
लग जायेंगे दो-चार बनारस की गली में

हैरत का यह आलम है कि हर देखने वाला
है ऩक्श ब दीवार बनारस की गली में

मिलता है निगाहों को सुकूँ हृदय को आराम
क्या प्रेम है क्या प्यार बनारस की गली में

हर सन्त के, साधू के, ऋषि और मुनि के
सपने हुए साकार बनारस की गली में

शंकर की जटाओं की तरह साया फ़िगन
साया करने वाला, सरपरस्ती छाँह देने वाला है

हर साया-ए-दीवार बनारस की गली में
गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो
मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में

Sep 29, 2025

निराला की कविता में संगीत

ताक कमसिनवारि,
ताक कम सिनवारि,
ताक कम सिन वारि,
सिनवारि सिनवारि।
ता ककमसि नवारि,
ताक कमसि नवारि,
ताक कमसिन वारि,
कमसिन कमसिनवारि।

इरावनि समक कात्,
इरावनि सम ककात्,
इराव निसम ककात्,
सम ककात् सिनवारि।


यह पोस्ट निराला के जीवन के अंतिम वर्षों में लिखा गया एक अनोखा और ध्वन्यात्मक गीत प्रस्तुत करता है, जो उनकी मृत्यु के बाद "सान्ध्य काकली" में संकलित हुआ। यह गीत पारंपरिक ध्रुपद गायन की शैली के समान शब्दों के उलटफेर और पुनरावृत्ति से भरा है, जिसे रामविलास शर्मा ने निराला की "क्लासिकी" संगीत रचना बताया है।

Sep 26, 2025

प्यार की गंगा बहे (Pyar Kee Ganga Bahe)

सुन सुन सुन मेरे नन्हे सुन,
सुन सुन सुन मेरे मुन्ने सुन,
प्यार की गंगा बहे, देश में एकता रहे।

सुन सुन सुन मेरी नन्ही सुन,
सुन सुन सुन मेरी मुन्नी सुन,
प्यार की गंगा बहे, देश में एकता रहे।

ख़त्म काली रात हो, रोशनी की बात हो,
दोस्ती की बात हो, ज़िन्दगी की बात हो।
बात हो इंसान की, बात हो हिन्दुस्तान की,
सारा भारत ये कहे –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे।

अब ना दुश्मनी पाले, अब ना कोई घर जले,
अब नहीं उजड़े सुहाग, अब नहीं फैले ये आग।
अब ना हों बच्चे अनाथ, अब ना हो नफ़रत की घाट,
सारा भारत ये कहे –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे।

सारे बच्चे बच्चियाँ, सारे बूढ़े और जवाँ,
यानि सब हिन्दुस्तान।
एक मंज़िल पर मिलें, एक साथ फिर चलें,
एक साथ फिर रहें, एक साथ फिर कहें।
एक साथ फिर कहें, फिर कहें –
प्यार की गंगा बहे, प्यार की गंगा बहे,
देश में एकता रहे,
देश में एकता रहे, सारा भारत ये कहे,
सारा भारत ये कहे –
देश में एकता रहे।  

गीत “प्यार की गंगा बहे” 1993 में निर्देशक सुभाष घई ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आग्रह पर बनाया, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में साम्प्रदायिक तनाव था। गीतकार जावेद अख्तर और संगीतकार लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल ने इसे रचा। इसमें बॉलीवुड सितारे सलमान खान, आमिर खान, अनिल कपूर, गोविंदा, जैकी श्रॉफ, ऋषि कपूर, नसीरुद्दीन शाह तथा दक्षिण और क्षेत्रीय सितारे रजनीकांत, मम्मूटी, चिरंजीवी, प्रसेंजीत, सचिन पिलगांवकर आदि शामिल हुए। सभी कलाकारों ने बिना पारिश्रमिक भाग लेकर अपने बच्चों को भी इसमें शामिल किया। गीत का उद्देश्य था देश में प्रेम, भाईचारा और एकता का संदेश फैलाना।

Sep 7, 2025

Alif Laila - Title Song Lyrics - Doordarshan

 अलिफ लैला ओ ओ…

अलिफ लैला, अलिफ लैला, अलिफ लैला ओ ओ

अलिफ लैला, अलिफ लैला, अलिफ लैला

हर शब नई कहानी

दिलचस्प है बयानी

सदियाँ गुज़र गयी है

लेकिन न हो पुरानी

परियों को जीत लाये

जीनो को भी हराए

इंसान में वो ताकत

सब पे करे हुकूमत

अलिफ लैला ओ ओ ओ….

Sep 5, 2025

Additional Sessions Judge Amitabh Rawat - Poem

“Babu pleading for his bail;State opposing tooth and nail.
Summers bygone, winters have arrived;
But crime you did, and Rahul cried.
I am not the one, I am not the one;
Too grave the charge, don’t pretend.
Whom did I attack, where is he;
Oh! That we know, in the trial we will see.
You say I have said & I deny from the first blush;
Rahul may be gone yet Satish said.
Didn’t we say; don’t rush;
Let me go, let me go, even Imran is on bail.
Even then, even then; it wouldn’t be a smooth sail.
Stop! Stop! Stop! Stop;
I have heard, heard a lot.
Mind is clear, with claims tall;
Its my time to take a call.
Babu has a sordid past;
proof is scant, which may not last.
His omnipotence can’t be assumed;
Peril to vanished Rahul, is legally fumed.”
Take your freedom from the cage you are in;
Till the trial is over, the state is reigned in.
The State proclaims; to have the cake and eat it too; The Court comes calling ;
before the cake is eaten, bake it too.

--- Judge Amitabh Rawat

Aug 28, 2025

Baje sargam har taraf se goonj bankar...

बजे सरगम हर तरफ से, 
गूँज बनकर देश राग, देश राग। 
ताल कदमों पे जागे जाय, 
लब पे जागे गीत ऐसा, 
गूँजे बनकर देश राग।

इस गीत का मतलब है कि देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की धुन हर तरफ बज रही है, जो सभी को जोड़ती है और आगे बढ़ने की ताकत देती है। इसमें भारत के मशहूर गायक, वादक और नर्तकी देश की मुख्य परंपरागत कलाओं का सुंदर प्रदर्शन करते हैं। राग जो कि शास्त्रीय संगीत की आत्मा है, के साथ तबला, संतूर, सरोद, सितार, कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी और ओड़िसी जैसे कई नृत्य और संगीत शैलियाँ इस वीडियो में एक ही संगति में भारत की एकता और खूबसूरती को दर्शाती हैं।


   

Aug 21, 2025

ऐ उम्र..! कुछ कहा मैंने

ऐ उम्र..!

कुछ कहा मैंने,
पर शायद तूने सुना नहीं..
तू छीन सकती है बचपन मेरा,
पर बचपना नहीं..!!

हर बात का कोई जवाब नहीं होता
हर इश्क का नाम खराब नहीं होता…
यूं तो झूम लेते है नशे में पीनेवाले
मगर हर नशे का नाम शराब नहीं होता…

खामोश चेहरे पर हजारों पहरे होते हैं
हंसती आँखों में भी जख्म गहरे होते हैं
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम,
असल में उनसे ही रिश्ते गहरे होते हैं…

किसी ने खुदा से दुआ मांगी
दुआ में अपनी मौत मांगी,
खुदा ने कहा, मौत तो तुझे दे दूँ मगर,
उसे क्या कहूं जिसने तेरी जिंदगी की दुआ मांगी…

हर इन्सान का दिल बुरा नहीं होता
हर एक इन्सान बुरा नहीं होता
बुझ जाते है दीये कभी तेल की कमी से…
हर बार कुसूर हवा का नहीं होता !!!

Aug 15, 2025

ये दाढ़ियाँ ये तिलक धारियाँ नहीं चलतीं

ये दाढ़ियाँ ये तिलक धारियाँ नहीं चलतीं
हमारे अहद में मक्कारियाँ नहीं चलतीं
 
क़बीले वालों के दिल जोड़िए मिरे सरदार
सरों को काट के सरदारियाँ नहीं चलतीं
 
बुरा न मान अगर यार कुछ बुरा कह दे
दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं
 
छलक छलक पड़ीं आँखों की गागरें अक्सर
सँभल सँभल के ये पनहारियाँ नहीं चलतीं
 
जनाब-ए-'कैफ़' ये दिल्ली है 'मीर' ओ 'ग़ालिब' की
यहाँ किसी की तरफ़-दारियाँ नहीं चलतीं

--- कैफ़ भोपाली

Aug 9, 2025

रक्षाबंधन विशेष: 'मैं अपने हाथ से प्यारे के बाँधूँ प्यार की राखी'

चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी
बनी है गो कि नादिर ख़ूब हर सरदार की राखी
सलोनों में अजब रंगीं है उस दिलदार की राखी
न पहुँचे एक गुल को यार जिस गुलज़ार की राखी

अयाँ है अब तो राखी भी चमन भी गुल भी शबनम भी
झमक जाता है मोती और झलक जाता है रेशम भी
तमाशा है अहा हा-हा ग़नीमत है ये आलम भी
उठाना हाथ प्यारे वाह-वा टुक देख लें हम भी
तुम्हारी मोतियों की और ज़री के तार की राखी

मची है हर तरफ़ क्या क्या सलोनों की बहार अब तो
हर इक गुल-रू फिरे है राखी बाँधे हाथ में ख़ुश हो
हवस जो दिल में गुज़रे है कहूँ क्या आह मैं तुम को
यही आता है जी में बन के बाम्हन, आज तो यारो
मैं अपने हाथ से प्यारे के बाँधूँ प्यार की राखी

हुई है ज़ेब-ओ-ज़ीनत और ख़ूबाँ को तो राखी से
व-लेकिन तुम से ऐ जाँ और कुछ राखी के गुल फूले
दिवानी बुलबुलें हों देख गुल चुनने लगीं तिनके
तुम्हारे हाथ ने मेहंदी ने अंगुश्तों ने नाख़ुन ने
गुलिस्ताँ की चमन की बाग़ की गुलज़ार की राखी

अदा से हाथ उठते हैं गुल-ए-राखी जो हिलते हैं
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
कहाँ नाज़ुक ये पहुँचे और कहाँ ये रंग मिलते हैं
चमन में शाख़ पर कब इस तरह के फूल खिलते हैं
जो कुछ ख़ूबी में है उस शोख़-ए-गुल-रुख़्सार की राखी

फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के तारे
तो उन की राखियों को देख ऐ जाँ चाव के मारे
पहन ज़ुन्नार और क़श्क़ा लगा माथे उपर बारे
'नज़ीर' आया है बाम्हन बन के राखी बाँधने प्यारे
बँधा लो उस से तुम हँस कर अब इस त्यौहार की राखी

--- नज़ीर अकबराबादी

Aug 4, 2025

उस शहर में मत जाओ

उस शहर में मत जाओ
जहाँ तुम्हारा बचपन गुज़रा
अब वो वैसा नहीं मिलेगा
जिस घर में तुम किराएदार थे
वहाँ कोई और होगा
तुम उजबक की तरह
खपरैल वाले उस घर के दरवाजे पर खड़े होगे और
कोई तुम्हें पहचान नहीं पाएगा !

— विनय सौरभ

Aug 1, 2025

स्थानीयता के संघर्ष

आसान है करना प्रधानमंत्री की आलोचना
मुख्यमंत्री की करना उससे थोड़ा मुश्किल
विधायक की आलोचना में ख़तरा ज़रूर है
लेकिन ग्राम प्रधान के मामले में तो पिटाई होना तय है।

अमेज़न के वर्षा वनों की चिंता करना कूल है
हिमालय के ग्लेशियरों पर बहस खड़ी करना
थोड़ा मेहनत का काम
बड़े पावर प्लांट का विरोध करना
एक्टिविज्म तो है जिसमें पैसे भी बन सकते हैं
लेकिन पास की नदी से रेत-बजरी भरते हुए
ट्रैक्टर की शिकायत जानलेवा है।

स्थानीयता के सारे संघर्ष ख़तरनाक हैं
भले ही वे कविता में हों या जीवन में।

--- प्रदीप सैनी

Jul 25, 2025

15 बेहतरीन शेर - 17 !!!

 1. ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है , दिए तो दिए, दिल बुझे जा रहे हैं  -  ख़ुमार बाराबंकवी

2. ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी,  मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी - नज़ीर बनारसी

3. हवाएँ ज़ोर कितना ही लगाएँ आँधियाँ बन कर, मगर जो घिर के आता है वो बादल छा ही जाता है -  जोश मलीहाबादी

4. खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए, सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को - नज़ीर बाकरी

5. मोहब्बत क्या बला है चैन लेना ही भुला दे है, ज़रा भी आँख झपके है तो बेताबी जगा दे है - कलीम आजिज़

6. सुब्ह हो जाएगी हाथ आ न सकेगा महताब, आप अगर ख़्वाब में चलते हैं तो चलते रहिए - मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

7. मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने, तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं  - अख़्तर शुमार

8. हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए, जो थक गया हो बैठ के मंज़िल के सामने...!!! - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9. जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया, परछाईं ज़िंदा रह गई, इंसान मर गया...!!!  - उम्मीद फ़ाज़ली

10.  अपने माज़ी से निकलना भी हुनर होता है, घर को छोड़ आइए पीछे, तो सफ़र होता है...!!! - वसीम बरेलवी

11.  किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता, यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता - मख़मूर देहलवी

12.  चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़', जुज़ तेरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे - अहमद फ़राज़

13. दिल गया, जान गई, यार के पैमॉं के साथ, घर से घर वाले भी रूख़सत हुए मेहमान के साथ 

14. उफ़ तलक करते नहीं ज़िल्ल-ए-इलाही के ख़िलाफ़, आप को दरबार की आदत है, दरबारी हैं आप - ~ अब्बास क़मर

15. मस्जिद तो बना दी शब भर में, ईमाँ की हरारत वालों ने, मन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाज़ी बन न सका। -अल्लामा इक़बाल

Jul 20, 2025

सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे (Ram Setu Construction Song from Ramayana: The Legend of Prince Rama)

जय जय जय जय......
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
सागार उरु निर्धरत कृत्व पादैहः ताडय रे
सागार उरु निर्धरत कृत्व पादैहः ताडय रे ।
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
शैलम् भञ्जय, शिलानु खण्डय, शैलम् भञ्जय शिलानु खण्डय
विक्षलयति मुलधातु पाटय विक्षलयति मुलधातु पाटय ।
सागर तेजोहरणम् चित्ते सततम् धारय रे
सागर तेजोहरणम् चित्ते सततम् धारय रे ।
रघुपति चरण स्पर्श वरदानम्, भवति काष्ठवत् दृढपाषाणम्
रघुपति चरण स्पर्श वरदानम्, भवति काष्ठवत् दृढपाषाणम् ।
स्पर्श तुनीत शिला खण्डानपि जलधिजले धारयरे
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ।
शिला भवति खलु, सन्तरणीय, शिला भवति खलु सन्तरणीय 
राम कृपा चिर सन्स्मरणीय राम कृपा चिर सन्स्मरणीय ।
जय जय जय श्री राम जयति जय मन्त्रम् पाठय रे
जय जय जय श्री राम जयति जय मन्त्रम् पाठय रे ।
यत्र एकत तत्र सबलता भक्तिः यत्र तत्र सफलता
यत्र एकत तत्र सबलता भक्तिः यत्र तत्र सफलता
रामनाम अङ्किता धरित्रिम् धर्णसा सञ्योजय ।
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
सागार उरु निर्धारत कृत्व पादैहः ताडय रे
सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे
श्री राम सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य सेतुम् बन्ध्य रे ॥

Translation (English): Lets make a bridge! In the name of Sri Rama lets make a bridge! (Lets make a bridge) To cross the wide ocean on foot and settle on the other side! (Lets make a bridge) By smashing mountains and breaking rocks, without getting washed away or falling into the ocean. Let's keep the intention in mind not to take away the ocean's glory by doing so. With the blessings from the feet of Raghupati Sri Rama, pieces of wood and stone will stay firm. With his touch, rocks and trunks will stay firm in the ocean. Lets make a bridge! In the name of Sri Rama lets make a bridge! Now the rocks are firm are they not? Then lets cross the ocean! With the grace of Sri Rama, they will forever be remembered in history. Lets recite the mantra - "Victory to Sri Rama". Where there is unity there is strength, where there is devotion (to work) there is success. With the name of Sri Rama marked (on all the rocks), they will be supported and remain firm together. Lets make a bridge! In the name of Sri Rama lets make a bridge to cross the wide ocean on foot and settle on the other side!

Jul 15, 2025

Listen! Faiz,

Listen! Faiz,
Do you know?
The difference
between your and my wait
Is only
A fixed time
Just a few more days
You knew that
Like the gust of breeze
Speechless cloud does not tell
When I ask—
“How many more seasons like this?”
Who knows how many more seasons?

The walls around me,
These four walls,
Have been standing quietly,
Raising their heads high,
Bearing winds and storms, and the scorching sun.
Why do they not speak?
No! Maybe, they do speak.
When sand and plaster fall,
They surely say something.
But! The owner repairs them off
silencing their words
One day,
Finally, the weary wall collapses,
And at the same place,
Another silent wall is built.

On the pitch-black night yesterday,
There was a knock on the doors of prison
Of the innocent breezes
Of cries of our dear ones
Even the lightning
Was screaming for help
Asking for our freedom
Even the well-shaped branches
Openly joined in the grief
After failed attempts
And losing control
The delicate tears of rain
Started to pour
Struck against the earth’s crust,
And the rhythm of the drops
Turned it into
A commotion of pleas.
But—
The deaf snakes
Kept dancing
With their poisonous hoods
Laying their web of traps.
And—
The oppressed
Stood with their hands raised
On that pitch-black night…

--- Gulfisha Fatima

Jul 3, 2025

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं

बुत-ख़ाना समझते हो जिस को पूछो न वहाँ क्या हालत है
हम लोग वहीं से लौटे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं शहरों में ग़मों के साए हैं

होंटों पे तबस्सुम हल्का सा आँखों में नमी सी है 'फ़ाकिर'
हम अहल-ए-मोहब्बत पर अक्सर ऐसे भी ज़माने आए हैं

--- सुदर्शन फ़ाकिर

Jun 23, 2025

रद्दी

एकदा रेशन संपल्यावर
घरातली रद्दी विकायला काढली
तेव्हा तू हसत म्हणालीस,
तुमच्या कवितांचे कागद
यात घालू का ?
तेवढंच वजन वाढेल !

मी उत्तरलो, जे काम काळ उद्या करणार आहे
ते तू आज करू नकोस.
तुझ्या डोळ्यांत अनपेक्षित आसवं तरारली
आणि तू म्हणालीस,
मी तर नाहीच,
पण काळही ते करणार नाही

- कुसुमाग्रज

रद्दी

एक दफा, 
जब राशन खत्म हुआ था तो 
रद्दी निकाली थी घर से
 कि बेच आएँ! 
हँस के कहा था तू ने तब
कहो तुम्हारी नज़्में भी, डाल दूँ उन में? 
उन से वज़न बढ़ जाएगा।

मैंने कहा था :
"कल जो वक़्त करेगा, 
वो मत आज करो!" 
आँखे भर आई थीं तेरी ! 
और कहा थाः
"मैं तो क्या.... 
वो वक़्त भी न कर पाएगा!!"

अनुवादगुलजार