ताक कम सिनवारि,
ताक कम सिन वारि,
सिनवारि सिनवारि।
ता ककमसि नवारि,
ताक कमसि नवारि,
ताक कमसिन वारि,
कमसिन कमसिनवारि।
इरावनि समक कात्,
इरावनि सम ककात्,
इराव निसम ककात्,
सम ककात् सिनवारि।
यह पोस्ट निराला के जीवन के अंतिम वर्षों में लिखा गया एक अनोखा और ध्वन्यात्मक गीत प्रस्तुत करता है, जो उनकी मृत्यु के बाद "सान्ध्य काकली" में संकलित हुआ। यह गीत पारंपरिक ध्रुपद गायन की शैली के समान शब्दों के उलटफेर और पुनरावृत्ति से भरा है, जिसे रामविलास शर्मा ने निराला की "क्लासिकी" संगीत रचना बताया है।
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