बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे काफिरों कि जानो-ईमान हैं
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाये नादानी
उसे किन कीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
निगाहें बादागूं यूँ तो तेरी बातों का क्या कहना
तेरी हर बात लेकिन अह्तियातन छान लेते हैं
तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
खुद अपना फैसला भी इश्क में काफी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं
हयाते इश्क का इक इक नफास जामे शहादत है
वो जाने-नाज़ बर दारां कोई आसन लेते हैं
हम आहंगी में भी इक चाशनी है इख्तिलाफों की
मेरी बातें बउन्वाने दीगर वो मान लेते हैं
तेरी मकबूलियत कि वजह वाहिद तेरी राम्ज़ियत
कि उस को मानते कब हैं जिसको जान लेते हैं
अब इस को कुफ्र मानें या बुलंदी-ए-नज़र जानें
खुदा-ए-दोजहां को दे के हम इंसान लेते हैं
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं
तुझे घाटा न होने देंगे कारोबारे उल्फत में
हम अपने सर तेरा ऐ दोस्त हर नुक्सान लेते हैं
हमारी हर नज़र तुझसे  नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं
रफ़ीके ज़िन्दगी थी अब अनीसे वक्ते-आखिर है
तेरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं
ज़माना वारिदाते-कल्ब सुनने को तरसता है
उसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं
फ़िराक अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफिर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं.
---फ़िराक़ गोरखपुरी
Jul 10, 2011
Jul 1, 2011
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता.
--बशीर बद्र
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
अपना दिल भी टटोल कर देखो
फासला बेवजह नही होता
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
मुद्दतों सामना नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता.
--बशीर बद्र
रोने से और इशक़ में बेबाक हो गए
रोने से और इशक़ में बेबाक हो गए
धोये गए हम ऐसे हे बस पाक हो गए
कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए
पूछे है क्या वजूदो-अदम अहले-शौक का
आप अपनी आग से खसो-ख़ाशाक हो गए
करने गए थे उससे तगाफुल का हम गिला
की एक ही निगाह की बस ख़ाक हो गए
इस रंग से उठायी कल उसने 'असद' की लाश
दुश्मन भी जिसको देख के गमनाक हो गए
---'असद'
Glossary:
नाला-ए-बुलबुल : sound of bulbul
चाक : break
वजूदो-अदम अहले-शौक : why you ask about the life and death of a lover
खसो-ख़ाशाक : trash
तगाफुल : negligence
धोये गए हम ऐसे हे बस पाक हो गए
कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए
पूछे है क्या वजूदो-अदम अहले-शौक का
आप अपनी आग से खसो-ख़ाशाक हो गए
करने गए थे उससे तगाफुल का हम गिला
की एक ही निगाह की बस ख़ाक हो गए
इस रंग से उठायी कल उसने 'असद' की लाश
दुश्मन भी जिसको देख के गमनाक हो गए
---'असद'
Glossary:
नाला-ए-बुलबुल : sound of bulbul
चाक : break
वजूदो-अदम अहले-शौक : why you ask about the life and death of a lover
खसो-ख़ाशाक : trash
तगाफुल : negligence
Subscribe to:
Comments (Atom)