1 जून 2009

Ghazal-2

लापता लोग भी मंजिल का पता देते हैं
डूबने वाले ही साहिल का पता देते हैं

ऐसे - ऐसे भी यहाँ कितने ही कातिल है कि,
जो कत्ल करते हैं औ बिस्मिल का पता देते है

कोई जब पूछता है हमसे कहाँ रहते हो
पूछने वाले को हम दिल का पता देते हैं

आपके हंसने - हंसाने के अजब ये तेवर
आने वाली किसी मुश्किल का पता देते हैं

आईने झांकते हैं जब भी मेरी आंखों में
मेरे भीतर छुपे कातिल का पता देते हैं.

Written by Deepak Gupta. Source of this ghazal is traced to 'Sahitya Shilpi'.Weblink.

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