21 मई 2011

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे.

--- Ahmed Faraz

13 मई 2011

कोई उम्मीद बर नहीं आती

कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मु'अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू-ए-चारागर नहीं आती

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती.

---ग़ालिब

Freedom

The Arab Revolt 2011

The story begins
with a song—
it’s stubborn,
breaks air
into history;
for a minute
it’s quiet
to allow everyone in,
and then it raises
to celebrate voices,
clears its throat,
says:
We will bury the smoke that blinds us,
plant our soul on every page,
we will divide our pain into towers
and fill our hands with rain,
we will arrive on time every day
to chase you away,
we will no longer be afraid
of what makes us shiver under the sun,
we will leave our names in every teahouse,
our messages at the bottom of every cup.

Light will no longer be illegal
nor will hope—
even the guards will count
the scars on their tongue
and prepare to heal,
even the children will keep
homeland in the mirror
and prepare to see,
even the women will turn
the fire inside the door
off, and prepare to live.

We will never whisper again.
There is evidence, there is evidence,
that now we can hear
the sounds that lift freedom
across a continent,
and say, Salaam to you,
welcome to my country.

--- Nathalie Handal (May 2011)

Listen to Nathalie Handal read "Freedom"

2 मई 2011

मेरा कलम नहीं तजवीज़...

मेरा कलम नहीं तजवीज़1 उस मुबल्लिस की
जो बन्दिगी का भी हरदम हिसाब रखता है
मेरा कलम नहीं मीज़ान2 ऍसे आदिल3 की
जो अपने चेहरे पर दोहरा नकाब रखता है
मेरा कलम तो अमानत है मेरे लोगों की
मेरा कलम तो अदालत मेरे ज़मीर की है
इसीलिए तो जो लिखा शफा-ए-जां से लिखा
ज़बीं4 तो लोच कमान का जुबां तीर की है
मैं कट गिरूँ कि सलामत रहूँ यक़ीन है मुझे
कि ये हिसार5-ए-सितम कोई तो गिराएगा

1. सम्मति, राय, 2.तराजू, 3.न्याय करने वाला, 4. मस्तक, 5. गढ़, किला

--अहमद फ़राज़  

वो गया था

वो गया था साथ ही ले गया, सभी रंग उतार के शहर का
कोई शख्स था मेरे शहर में किसी दूर पार के शहर का

चलो कोई दिल तो उदास था, चलो कोई आँख तो नम रही
चलो कोई दर तो खुला रहा शबे इंतजार के शहर का

किसी और देश की ओर को सुना है फराज़ चला गया
सभी दुख समेट के शहर के सभी कर्ज उतार के शहर का ...

--अहमद फ़राज़  

29 अप्रैल 2011

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता.

--कैफ़ी आज़मी

25 अप्रैल 2011

Poems of Kunwar Mahendra Singh Bedi Sahar

कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' की शायरी से:

1---

आए हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग

दैर-ओ-हरम1 में चैन जो मिलता
क्यूं जाते मैखाने2 लोग

1. मंदिर मस्जिद, 2. शराबखाना

जान के सब कुछ कुछ भी ना जाने
हैं कितने अनजाने लोग

वक़्त पे काम नहीं आते हैं
ये जाने पहचाने लोग

अब जब मुझको होश नहीं है
आए हैं समझाने लोग

2---

तुम हमारे नही तो क्या गम है
हम तुम्हारे तो हैं यह क्या कम है

मुस्कुरा दो ज़रा ख़ुदा के लिए,
शाम-ए-महफिल में रौशनी कम है,

3---

अभी वो कमसिन उभर रहा है, अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी, अभी है मुझ पर एतमाद1 आधा

मेरे सवाल-ए-वस्ल2 पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्हीं बताओ ये बात क्या है, सवाल पूरा, जवाब आधा

कभी सितम है कभी करम है, कभी तवज़्जह3 कभी तगाफ़ुल4
ये साफ ज़ाहिर है मुझ पे अब तक, हुआ हूँ मैं कामयाब आधा
1. विश्वास, 2. मिलने की बात पर, 3.ध्यान देना , 4. उपेक्षा

4---

ऐ नौजवान बज़ा कि जवानी का दौर है
रंगीन सुबह शाम सुहानी का दौर है
ये भी बज़ा कि प्रेम कहानी का दौर है
लेकिन रहे ये याद गरानी1 का दौर है
1.मँहगाई

5---

इश्क़ हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं
सिर्फ मुस्लिम का मोहम्मद से इजारा* तो नहीं
*अधिकार
************************************

17 अप्रैल 2011

It’s the Dream

It’s the dream we carry

that something wondrous will happen

that it must happen

time will open

hearts will open

doors will open

spring will gush forth from the ground–

that the dream itself will open

that one morning we’ll quietly drift

into a harbor we didn’t know was there.

---by Olav H. Hauge from Borealis (March/April 2002), translated from the Norwegian by Robert Hadin.

11 अप्रैल 2011

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल कि लब आजाद हैं तेरे
बोल, जबां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां* जिस्म हे तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है.

देख कि आहनगर** की दुकां में
तुन्द** हैं शोले, सुर्ख है आहन^
खुलने लगे कुफलों के दहाने^^
फैला हर जंजीर का दामन.

बोल, ये थोड़ा वक्त बहुत है
जिस्मों जबां की मौत से पहले
बोल कि सच जिंदा है अब तक
बोल कि जो कहना है कह ले.

* तना हुआ,**लोहार, *** तेज, ^लोहा, ^^तालों के मुंह

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7 अप्रैल 2011

With the Land

The land comes near me
drinks from me
leaves its orchards with me
to become a beautiful weapon
defending me

Even when I sleep
the land comes near me
in my dream.
I smuggle its wild thyme
between exiles
I sing its stones
I will even sweat blood
from my veins
to drink its news
so the land comes near me
leaves a stone of love with me
to defend it
and defend me

When I repay it
I will embrace it a thousand times
I will worship it a thousand times
I will celebrate its wedding on my forehead
on the rubble of exiles
and the ruins of prisons

I will drink from it
It will drink from me
So that the Galilee would remain
beauty, struggle, and love
defending it
defending me

I see the land;
a morning that will come
---Rashid Hussein
* Translated by Sinan Antoon. The poem appear in Al-A`mal al-Shi`riyya (al-Taybe: Markaz Ihya’ al-Turath al-`Arabi, 1990)