12 जनवरी 2012

हम लड़ेंगे

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे

---पाश

7 जनवरी 2012

Wait for me

Wait for me and I’ll return, only wait very hard.
Wait when you are filled with sorrow as you watch the yellow rain.
Wait when the wind sweeps the snowdrifts.
Wait in the sweltering heat.
Wait when others have stopped waiting, forgetting their yesterdays.
Wait even when from afar no letters come for you.
Wait even when others are tired of waiting.

Wait for me and I’ll return, but wait patiently.
Wait even when you are told that you should forget.
Wait even when my mother and son think I am no more.
And when friends sit around the fire drinking to my memory
Wait and do not hurry to drink to my memory too.

Wait for me and I’ll return, defying every death.
And let those who do not wait say that I was lucky.
They will never understand that in the midst of death
You with your waiting saved me.
Only you and I will know how I survived:
It was because you waited as no one else did.

- Konstantin Simonov

31 दिसंबर 2011

What the heart is Like

Officially the heart
is oblong, muscular,
and filled with longing.

But anyone who has painted the heart knows
that it is also

spiked like a star
and sometimes bedraggled
like a stray dog at night
and sometimes powerful
like an archangel’s drum.

And sometimes cube-shaped
like a draughtsman’s dream
and sometimes gaily round
like a ball in a net.

And sometimes like a thin line
and sometimes like an explosion.

And in it is
only a river,
a weir
and at most one little fish
by no means golden.

More like a grey
jealous
loach.

It certainly isn’t noticeable
at first sight.

Anyone who has painted the heart knows
that first he had to
discard his spectacles,
his mirror,
throw away his fine-point pencil
and carbon paper

and for a long while
walk
outside.

Miroslav Holub, trans. from Czech by Ewald Osers

29 दिसंबर 2011

क्यों करें हम

नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम

ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम

वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम

ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम

बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम

हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम

ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम

-: जौन एलिया

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे

इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे

डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे

जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे

कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे

इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे

बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे

--'आलम खुर्शीद'

6 दिसंबर 2011

6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे

राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.

तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.

 by Kaifi Azmi 

14 नवंबर 2011

Mind has no color

Mind has no color,
Is neither long nor short,
Doesn't appear or disappear;
It is free from both purity and impurity;
It was never born and can never die;
It is utterly serene.
This is the form of our
Original mind,
Which is also our original body.

- Hui-hai (8th cent)

12 नवंबर 2011

No man is an island

No man is an island,
Entire of itself.
Each is a piece of the continent,
A part of the main.
If a clod be washed away by the sea,
Europe is the less.
As well as if a promontory were.
As well as if a manor of thine own
Or of thine friend's were.
Each man's death diminishes me,
For I am involved in mankind.
Therefore, send not to know
For whom the bell tolls,
It tolls for thee.

---John Donne

11 नवंबर 2011

Advice to Women

Keep cats
if you want to learn to cope with
the otherness of lovers.
Otherness is not always neglect --
Cats return to their litter trays
when they need to.
Don't cuss out of the window
at their enemies.
That stare of perpetual surprise
in those great green eyes
will teach you
to die alone.

---Eunice deSouza

1 नवंबर 2011

ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा.

जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लैहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब ये तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे यूँ ही होता है
ये जो गहरे सऩ्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका किस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नय़ा मौसम है
क्यों तु ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है....

ऐक बात होटों तक है जो आइ नहीं
बस आँखों से है झाँकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी
कुछ लव्ज़ हैं वो माँगती
जिनको पहन के होटों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों मे बाहें डाले इठलाए वो
लेकिन जो ये एक बात है
ऐहसास ही ऐहसास है
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
ये जाने कैसा राज़ है....

पिघले नीलम सा बेहता हुआ ये समा
नीली नीली सी खामोशियाँ
ना कहीं है ज़मीन
ना कहीं है आसमां
सरसराती हुई तनहाइयां,
पत्तियां कह रही हैं की बस ऐक तुम हो यहाँ
सिर्फ मैं हूँ मेरी साँसे हैं और मेरी धड़कनें
ऐसी गहराइयाँ
ऐसी तनहाइयां
और मैं सिर्फ मैं
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया...

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम

हवा के झोंकों के जैसे
आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे
लहरों में बहना सीखो
हर एक लमहे से मिलो
खोले अपनी बाँहें
हर एक पल एक नया समा
देखे ये निगांहे

जो अपनी आँखों मे हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम....

- जावेद अख़्तर