सुकूत-ए-शाम मिटाओ बहुत अँधेरा है
सुख़न की शम्ओ जलाओ बहुत अँधेरा है
चमक उठेंगी सियहबख्तियां जमाने की
नवा-ए-दर्द सुनाओ, बहुत अँधेरा है
हर इक चराग से हर तीरगी नहीं मिटती
चराग़े-अश्क जलाओ बहुत अँधेरा है
दयार-ए-ग़म में दिल-ए-बेक़रार छूट गया
सम्भल के ढूंढने जाओ बहुत अँधेरा है
ये रात वो है के सूझे जहाँ न हाथ को हाथ
ख़्यालों दूर न जाओ बहुत अँधेरा है
वो ख़ुद नहीं जो सरे बज़्मे ग़म तो आज उसके
तबस्सुमों को बुलाओ बहुत अँधेरा है
पसे-गुनाह जो ठहरे थे चश्में आदम में
उन आंसुओ को बहाओ बहुत अँधेरा है
हवाए नीम शबी हों कि चादर-ए-अंजुम
नक़ाब रुख़ से उठाओ बहुत अँधेरा है
शब-ए-सियाह में गुम हो गई है राह-ए-हयात
क़दम संभल के उठाओ बहुत अँधेरा है
गुज़श्ता अह्द की यादों को फिर करो ताज़ा
बुझे चिराग़ जलाओ बहुत अँधेरा है
थी एक उचटती हुई नींद ज़िंदगी उसकी
'फ़िराक़' को न जगाओ बहुत अँधेरा है
--- Firaq Gorakhpuri
Jan 28, 2011
Jan 21, 2011
दिल की बात लबों पर लाकर
दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|
जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|
वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,
उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं|
---हबीब जालिब
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|
जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|
वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,
उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं|
---हबीब जालिब
Jan 20, 2011
इस शहर-ए-खराबी में
इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे
हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे
कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
---हबीब जालिब
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे
हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे
कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
---हबीब जालिब
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