25 सितंबर 2014

Alice after Wonderland

The bedroom reeks of really old sweat.
Alice has risen up from wonderland,
Waking with an adventure-woozy head.
Her slippers do not fit. Her hand

Combs a few hairs down flat. She steps
Out of her gown. Everything shivers.
The mirror is mist, her breath is bitter.
The night escapes her porous flesh.

Little girl Alice is back in time.
Gazing back through her wizened up eyes
She sees on the farther side of her dream,
A woman ugly with reality.

---Bernard Dewulf
Translated by A.Z. Foreman

11 सितंबर 2014

Today I am Modest

Today I am modest as an animal,
Spread flush as rainwashed fields.
With a small fat hand I lead
My life towards compassion and children.
Today each stranger, each sufferer
Comes to me.
My heart's little gifts
Patter rain-like about me.
And already I carry Tomorrow-
Its weight closed in
And again leaping out,
Without looking, toward all the unknown.

---Esther Raab
Translated by A.Z. Foreman

10 सितंबर 2014

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू[1] ही सही
नहीं विसाल मयस्सर[2] तो आरज़ू ही सही

न तन में ख़ून फ़राहम[3] न अश्क आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब[4] है बे-वज़ू ही सही

यही बहुत है केः सालिम है दिल का पैराहन
ये चाक-चाक गरेबान बेरफ़ू ही सही

किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही

गर इन्तज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा[5] से गुफ़्तगू ही सही

दयार-ए-ग़ैर[6] में महरम[7] अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू[8] ही सही

---फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

1- तलाश
2- उपलब्ध
3- मौजूद
4- आवश्यक
5- कल के वादे
6- पराई धरती
7- अपना
8- समक्ष

29 अगस्त 2014

सर्जना के क्षण

एक क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत :
फिर जहाँ मैंने सँजोकर और भी सब रखी हैं ज्योति:शिखाएँ
वहीं तुम भी चली जाना-शांत तेजोरूप।
एक क्षण भर और
लंबे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते।
बूँद स्वाती की भले हो, बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से
वज्र जिससे फोड़ता चट्टान को
भले ही फिर व्यथा के तम में बरस कर बरस बीतें
एक मुक्ता-रूप को पकते।

--- अज्ञेय

21 अगस्त 2014

नहीं चुनी मैंने

नहीं चुनी मैंने ये ज़मीन जो वतन ठहरी
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मज़हब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो जुबां जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और अब मैं इन सब के लिए तैयार हूँ
मारने मरने पर !

--- फज़ल ताबिश

16 अगस्त 2014

यदि होता किन्नर नरेश मैं

यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल में रहता,
सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।

बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,
प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे।

मेरे वन में सिह घूमते, मोर नाचते आँगन,
मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण।

यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर,
हीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर।

बाँध खडग तलवार सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता,
बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता।

राज महल से धीमे धीमे आती देख सवारी,
रूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी।

जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग जाते,
हर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते।

सूरज के रथ सा मेरा रथ आगे बढ़ता जाता,
बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता।

---द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

14 अगस्त 2014

Muhajir-nama

मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

हँसी आती है अपनी अदाकारी पे खुद हमको
कि बने फिरते हैं यूसुफ़ और ज़ुलेख़ा छोड़ आए हैं

जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती थी
वहीं हसरत* के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं

वजू** करने को जब भी बैठते हैं याद आता है
कि हम उजलत में जमना का किनारा छोड़ आए हैं

उतार आए मुरव्वत और रवादारी का हर चोला
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं

ख़याल आता है अक्सर धूप में बाहर निकलते ही
हम अपने गाँव में पीपल का साया छोड़ आए हैं

ज़मीं-ए-नानक-ओ-चिश्ती, ज़बान-ए-ग़ालिब-ओ-तुलसी
ये सब कुछ था पास अपने, ये सारा छोड़ आए हैं

दुआ के फूल पंडित जी जहां तकसीम करते थे
गली के मोड़ पे हम वो शिवाला छोड़ आए हैं

बुरे लगते हैं शायद इसलिए ये सुरमई बादल
किसी की ज़ुल्फ़ को शानों पे बिखरा छोड़ आए हैं

अब अपनी जल्दबाजी पर बोहत अफ़सोस होता है
कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं

--- मुनव्वर राना

*[Hasrat Mohani, the legendary poet and freedom fighter]
**[wazu=ablutions before namaz,]