15 अप्रैल 2015

लम्हे-लम्हे की सियासत पे नज़र रखते हैं

लम्हे-लम्हे की सियासत पे नज़र रखते हैं
हमसे दीवाने भी दुनिया की ख़बर रखते हैं

इतने नादां भी नहीं हम कि भटक कर रह जाएँ
कोई मंज़िल न सही, राहगुज़र रखते हैं

रात ही रात है, बाहर कोई झाँके तो सही
यूँ तो आँखों में सभी ख़्वाब-ए-सहर रखते हैं

मार ही डाले जो बेमौत ये दुनिया वो है,
हम जो जिन्दा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं!

हम से इस दरजा तग़ाफुल भी न बरतो साहब
हम भी कुछ अपनी दुआओं में असर रखते हैं

---जांनिसार अख्तर

11 टिप्‍पणियां:

  1. छा जाती हैं बेरुखी इतना भी क्या गुरुर
    जब सनम की महफिल में हम कदम रखते हैं
    कहीं भूल ना जाएं ये दिल उनके अहसास
    एक दो "हरा" अब भी जख्म रखते हैं
    रास्ते मिले नहीं मंजिल धूमिल हो गई
    थककर "जसी हम ये कलम रखते हैं
    _jaswant phogala

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  2. Aap sabhi logon ko kavita pasand kar ke comment likkhne ke liye saabhar...

    Aur jaswant ji ko unki kavita ke liye badhai...

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