23 मई 2023

One Art

The art of losing isn’t hard to master;
so many things seem filled with the intent
to be lost that their loss is no disaster.

Lose something every day. Accept the fluster
of lost door keys, the hour badly spent.
The art of losing isn’t hard to master.

Then practice losing farther, losing faster:
places, and names, and where it was you meant
to travel. None of these will bring disaster.

I lost my mother’s watch. And look! my last, or
next-to-last, of three loved houses went.
The art of losing isn’t hard to master.

I lost two cities, lovely ones. And, vaster,
some realms I owned, two rivers, a continent.
I miss them, but it wasn’t a disaster.

—Even losing you (the joking voice, a gesture
I love) I shan’t have lied. It’s evident
the art of losing’s not too hard to master
though it may look like (Write it!) like disaster.

--- Elizabeth Bishop

11 मई 2023

If I Had Three Lives

If I had three lives, 
I'd marry you in two.
And the other? 
That life over there at Starbucks, 
sitting alone, writing -- a memoir,
maybe a novel or this poem. 

No kids, probably,
a small apartment with a view of the river,
and books -- lots of books and time to read.
Friends to laugh with; 
a man sometimes,
for a weekend, 
to remember what skin feels like when it's alive. 

 I'm thinner in that life, vegan, practice yoga. 
 I go to art films, farmers markets,
drink martinis in swingy skirts and big jewelry.
I vacation on the Maine coast 
and wear a flannel shirt
weekend guy left behind, 
loving the smell of sweat
and aftershave more than I do him. 
I walk the beach at sunrise, 
find perfect shell spirals
and study pockmarks water makes in sand. 
And I wonder sometimes if I'll ever find you.

---Sarah Russell

1 मई 2023

स्वर्ग से बिदाई

भाईयों और बहनों !
अब ये आलीशान इमारत
बन कर तैयार हो गयी है
अब आप यहाँ से जा सकते हैं

अपनी भरपूर ताक़त लगाकर
आपने ज़मीन काटी
गहरी नींव डाली,
मिट्टी के नीचे दब भी गए
आपके कई साथी
मगर आपने हिम्मत से काम लिया
पत्थर और इरादे से,
संकल्प और लोहे से,
बालू, कल्पना और सीमेंट से,
ईंट दर ईंट आपने
अटूट बुलंदी की दीवार खड़ी की
छत ऐसी कि हाथ बढ़ाकर,
आसमान छुआ जा सके,
बादलों से बात की जा सके
खिड़कियाँ क्षितिज की थाह लेने वाली,
आँखों जैसी,
दरवाज़े, शानदार स्वागत !
अपने घुटनों और बाजुओं और
बरौनियों के बल पर
सैकड़ों साल टिकी रहने वाली
यह जीती-जागती ईमारत तैयार की


अब आपने हरा भरा लान
फूलों का बाग़ीचा
झरना और ताल भी बना दिया है
कमरे कमरे में गलीचा
और क़दम क़दम पर
रंग-बिरंगी रौशनी फैला दी है

गर्मी में ठंडक और ठंड में
गुनगुनी गर्मी का इंतज़ाम कर दिया है
संगीत और नृत्य के
साज़ सामान
सही जगह पर रख दिए हैं
अलगनियां प्यालियाँ
गिलास और बोतलें
सज़ा दी हैं


कम शब्दों में कहें तो
सुख सुविधा और आज़ादी का
एक सुरक्षित इलाका
एक झिलमिलाता स्वर्ग
रच दिया है

इस मेहनत
और इस लगन के लिए
आपका बहुत धन्यवाद
अब आप यहाँ से जा सकते हैं
यह मत पूछिए कि कहाँ जाएँ
जहाँ चाहे वहां जाएँ
फिलहाल उधर अँधेरे में
कटी ज़मीन पर
जो झोपड़े डाल रखें हैं
उन्हें भी खाली कर दें
फिर जहाँ चाहे वहां जाएँ.

आप आज़ाद हैं,
हमारी ज़िम्मेदारी ख़तम हुई
अब एक मिनट के लिए भी
आपका यहाँ ठहरना ठीक नहीं
महामहिम आने वाले हैं
विदेशी मेहमानों के साथ
आने वाली हैं अप्सराएँ
और अफ़सरान
पश्चिमी धुनों पर शुरू होने वाला है
उन्मादक नृत्य
जाम झलकने वाला है

भला यहाँ आपकी
क्या ज़रुरत हो सकती है
और वह आपको देखकर क्या सोचेंगे
गंदे कपडे,
धूल से सने शरीर
ठीक से बोलने और हाथ हिलाने
और सर झुकाने का भी शऊर नहीं
उनकी रुचि और उम्मीद को
कितना धक्का लगेगा
और हमारी कितनी तौहीन होगी

मान लिया कि इमारत की
ये शानदार बुलंदी हासिल करने में
आपने हड्डियाँ लगा दीं
खून पसीना एक कर दिया
लेकिन इसके एवज में
मज़दूरी दी जा चुकी है
अब आपको क्या चाहिए?


आप यहाँ ताल नहीं रहे हैं
आपके चेहरे के भाव भी बदल रहे हैं
शायद अपनी इस विशाल
और खूबसूरत रचना से
आपको मोह हो गया है
इसे छोड़कर जाने में दुःख हो रहा है
ऐसा हो सकता है
मगर इसका मतलब यह तो नहीं
कि आप जो कुछ भी अपने हाथ से
बनायेंगे,
वह सब आपका हो जायेगा
इस तरह तो ये सारी दुनिया
आपकी होती
फिर हम मालिक लोग कहाँ जाते

याद रखिये
मालिक मालिक होता है
मज़दूर मज़दूर
आपको काम करना है
हमे उसका फल भोगना है
आपको स्वर्ग बनाना है
हमे उसमें विहार करना है
अगर ऐसा सोचते हैं
कि आपको अपने काम का
पूरा फल मिलना चाहिए
तो हो सकता है

कि पिछले जन्म के आपके काम
अभावों के नरक में
ले जा रहे हों
विश्वास कीजिये
धर्म के सिवा कोई रास्ता नहीं
अब आप यहाँ से जा सकते हैं

क्या आप यहाँ से जाना ही
नहीं चाहते ?
यहीं रहना चाहते हैं,
इस आलीशान इमारत में
इन गलीचों पर पांव रखना चाहते हैं
ओह ! ये तो लालच की हद है
सरासर अन्याय है
कानून और व्यवस्था पर
सीधा हमला है
दूसरों की मिलकियत पर
कब्ज़ा करने
और दुनिया को उलट-पुलट देने का
सबसे बुनियादी अपराध है
हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे

देखिये ये भाईचारे का मसला नहीं हैं
इंसानियत का भी नहीं
यह तो लड़ाई का
जीने या मरने का मसला है
हालाँकि हम ख़ून ख़राबा नहीं चाहते
हम अमन चैन
सुख-सुविधा पसंद करते हैं
लेकिन आप मजबूर करेंगे
तो हमे कानून का सहारा लेने पड़ेगा
पुलिस और ज़रुरत पड़ी तो
फ़ौज बुलानी होगी
हम कुचल देंगे
अपने हाथों गड़े
इस स्वर्ग में रहने की
आपकी इच्छा भी कुचल देंगे

वरना जाइए
टूटते जोड़ों, उजाड़ आँखों की
आँधियों, अंधेरों और सिसकियों की
मृत्यु गुलामी
और अभावों की अपनी
बे-दरोदीवार दुनिया में
चुपचाप
वापस
चले जाइए !

--- गोरख पाण्डेय