20 जून 2014

My favourite poetry

1- वो दौर भी देखा है, तारीख की आंखों ने, लमहे ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।

2- लहू लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो, शरीफ़ लोग उठे दूर जाके बैठ गये | - दुश्यंत कुमार

3- गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या क्या है, मैं आ गया हूँ बता इंतिज़ाम क्या क्या है | - राहत इंदौरी

4- जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते, सज़ा ना देकर अदालत बिगाड़ देती है | - राहत इंदौरी

5- मुसलसल हादिसों से बस मुझे इतनी शिकायत है, कि ये आंसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते | - वसीम बरेलवी

6- ये बात तो इस बाग़ के हक़ में नहीं जाती, कुछ फूल भी काँटों की हिमायत में खड़े हैं | - वसीम बरेलवी

7- ये अपनी मस्ती है जिसने मचाई है हलचल, नशा शराब में होता तो नाचती बोतल | - आरिफ़ जलाली

8- इसी सबब से हैं शायद अज़ाब जितने हैं, झटक के फेंक दो पल्कों पे ख़्वाब जितने हैं | -जां निसार अख़्तर

9- ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं, उमीदों से भरोसों से दिलासों से सहारों से | - कैफ़ भोपाली

10- मुद्दतें गुज़रीं तिरी याद भी आई न हमें, और तुझे भूल गये हों कभी ऐसा भी नहीं | - फ़िराक़ गोरखपुरी

11- फ़ुरसतें चाट रही हैं मेरी हस्ती का लहू, मुंतज़िर हूं के मुझे कोई बुलाने आये | - राहत इन्दौरी

12- इश्क़ का ज़ौक़ ए नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है, हुस्न ख़ुद बेताब है जलवे दिखाने के लिए | - मजाज़ लखनवी

13- दुनिया में आदमी को मुसीबत कहां नहीं, वो कौन सी ज़मीं है, जहां आसमां नहीं | - दाग़

14- मिरी मुफ़लिसी से बचकर कहीं और जानेवाले, ये सुकूं न मिल सकेगा तुझे रेशमी कफ़न में | - क़तील शिफ़ाई

15- अजीब लोग थे, क़ब्रों पे जान देते थे, सड़क की लाश का कोई भी दावेदार न था | - वसीम बरेलवी

16- उसे क्या मिलेगी मंज़िल रहे ज़िन्दगी में 'रज़्मी ', जो क़दम क़दम पे पूछे अभी कितना फ़ासला है | - मुज़फ़्फ़र रज़्मी

17- गये दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो, अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो | -नासिर काज़मी

18- दिल उजड़ी हुई एक सराय की तरह है, अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते | - बशीर बद्र

19- ये सोच कर के दरख़्तों में छांव होती है, यहां बबूल के साये में आके बैठ गये | - दुश्यंत कुमार

20- नाउमीदी बढ गई है इस क़दर, आरज़ू की आरज़ू होने लगी | - दाग़

21- ज़रूरत ही नहीं अहसास को अलफ़ाज़ की कोई, समंदर की तरह अहसास में शिद्दत ही काफ़ी है।

22- मैं भी सुकरात हूँ सच बोल दिया है मैंने, ज़हर सारा मेरे होंटों के हवाले कर दे। - मुनव्वर राना

23- हज़ार खौफ़ हों पर ज़ुबां हो सच की रफ़ीक, यही रहा है अजल से कलंदरों का तरीक | - मोहानी

24- जम्हूरियत वो तर्ज़े-हुकूमत है, कि जिस में, बन्दों को गिना जाता हैं, तोला नहीं जाता |

25- मैं ख़ुदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तों, ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जायेगा। ~बशीर बद्र

26- नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती है, हम भी ऐसे ही थे जब आये थे वीराने में | - अहमद मुश्ताक़

27- अब तो चलते हैं, बुतकदे से मीर, फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया | - मीर तक़ी 'मीर'

28- कैसा तौहीने लफ़्ज़ हस्ती है, जीने वालों ये कैसी बस्ती है, मौत को लोग यहां देते हैं कांधा, ज़िन्दगी रहम को तरसती है | - वसीम बरेलवी

29- गुलों ने ख़ारों के छेडने पर, सिवा ख़ामोशी के दम न मारा, शरीफ़ उलझें अगर किसी से तो फिर शराफ़त कहाँ रहेगी | - शाद अज़ीमाबादी

30- हम तरसते ही, तरसते ही, तरसते ही रहे, वो फ़लाने से, फ़लाने से, फ़लाने से मिले | - कैफ़ भोपाली

31- पहले रग रग से मेरी ख़ून निचोडा उसने, अब ये कहता है कि रंगत ही मेरी पीली है | - मुज़फ़्फ़र वारसी

32- नतीजा एक ही निकला कि थी क़िस्मत में नाकामी, कभी कुछ कह के पछताये, कभी चुप रह के पछताये। - 'आरज़ू’ लखनवी

33- कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो | - बशीर ‘बद्र’

34- कुर्सी है कोई आपका जनाज़ा तो नहीं है, कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते |

35- 'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना, ये काम भूल न जाना, बडा ज़रूरी है | - शुजा ख़ाविर

36- सच घटे या बडे तो सच न रहे, झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं, जड दो चांदी में चाहे सोने में, आईना झूठ बोलता ही नहीं | - कृष्ण बिहारी नूर

37- तुम अभी शहर में क्या नए आये हो, रुक गए राह में हादिसा देख कर | - बशीर बद्र

38- हम ख़ुदा के कभी क़ाइल ही न थे, उनको देखा तो ख़ुदा याद आया | - मीर तक़ी 'मीर'

39- एक पल के रुकने से दूर हो गई मंज़िल, सिर्फ़ हम नहीं चलते रास्ते भी चलते हैं | - शाहिद सिद्दीक़ी

40- मुहब्बत में बिछडने का हुनर सबको नहीं आता, किसी को छोडना हो तो मुलाक़ातें बडी करना | - वसीम बरेलवी

41- नहीं चलने लगी यूं मेरे पीछे, ये दुनिया मैंने ठुकराई बहुत है | - वसीम बरेलवी

42- पाल ले कोई रोग नादां ज़िन्दगी के वास्ते, सिर्फ़ सेहत के सहारे ज़िन्दगी कटती नहीं | -फ़िराक़ गोरखपुरी

43- जिगर मैंने छुपाया लाख अपना दर्दे-गम लेकिन, बयाँ कर दी मेरी सूरत ने सारी कैफियत दिल की ।

44- ये कहां की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह, कोई चारसाज़ होता, कोई ग़म्गुसार होता ।

45- शाम भी थी धुआं धुआं, हुस्न भी था उदास उदास, दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गई | -फ़िराक़ गोरखपुरी

46- रात भारी सही कटेगी ज़रूर, दिन कडा था मगर गुज़र के रहा | - अहमद नदीम क़ासिमी

47- लो देख लो, ये इश्क़ है ये वस्ल है, ये हिज्र, अब लौट चलें आओ, बहुत काम पडा है | -जावेद अख़्तर

48- अपने ही ग़म से नहीं मिलती नजात, इस बिना पे फ़िक्रे आलम क्या करें | - दाग़ देहलवी

49- माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके, कुछ ख़ार कम तो कर गए, गुज़रे जिधर से हम | - साहिर लुधिआनवी

50 - ठोकरे खा कर भी ना संभले तो, मुसाफिर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो, अपना फ़र्ज़ निभा दिया। |

Source - My favourite poetry

5 जून 2014

Marriages Are Made

My cousin Elena
is to be married
The formalities
have been completed:
her family history examined
for T.B. and madness
her father declared solvent
her eyes examined for squints
her teeth for cavities
her stools for the possible
non-Brahmin worm.
She's not quite tall enough
and not quite full enough
(children will take care of that)
Her complexion it was decided
would compensate, being just about
the right shade
of rightness
to do justice to
Francisco X. Noronha Prabhu
good son of Mother Church.

--- Eunice deSouza

21 मई 2014

कमर बांधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

कमर बांधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं ।
बहोत आगे गए, बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं ।।

न छेड़ ए निक़हत-ए-बाद-ए-बहारी, राह लग अपनी ।
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं ।।

तसव्वुर अर्श पर है और सर है पा-ए-साक़ी पर ।
ग़र्ज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मय-ख़्वार बैठे हैं ।।

बसाने नक़्शपाए रहरवाँ कू-ए-तमन्ना में ।
नहीं उठने की ताक़त, क्या करें? लाचार बैठे हैं ।।

यह अपनी चाल है उफ़तादगी से इन दिनों पहरों तक ।
नज़र आया जहां पर साया-ए-दीवार बैठे हैं ।।

कहाँ सब्र-ओ-तहम्मुल? आह! नंगोंनाम क्या शै है ।
मियाँ! रो-पीटकर इन सबको हम यकबार बैठे हैं ।।

नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो ।
जहाँ पूछो यही कहते हैं, "हम बेकार बैठे हैं" ।।

भला गर्दिश फ़लक की चैन देती है किसे इंशा !
ग़़नीमत है कि हम सूरत यहाँ दो-चार बैठे हैं ।

~ "इंशा" अल्लाह खां

1 मई 2014

समंदर की उम्र

लहर ने समंदर से उसकी उम्र पूछी
समंदर मुस्करा दिया।

लेकिन,
जब बूंद ने
लहर से उसकी उम्र पूछी
तो लहर बिगड़ गई
कुढ़ गई
चिढ़ गई
बूंद के ऊपर ही चढ़ गई
और मर गई।

बूंद ,
समंदर में समा गई
और समंदर की उम्र बढ़ा गई।

---अशोक चक्रधर

10 अप्रैल 2014

Dalit Poetry

I can be a Hindu
A Buddhist,
A Muslim
But the shadow
Shall never be severed from me,

The Kuladi is done,
The broom is gone,
But the shadow
Still stalks me,

I change my name,
My job,
My village,
My caste,
But the shadow will never leave me alone,

The language has changed,
The dress,
The gesture,
But the shadow
Plods resolutely on.

---Gandhvi Pravin

18 मार्च 2014

अच्छे बच्चे

कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते हैं
वे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं मांगते
मिठाई नहीं मांगते ज़िद नहीं करते
और मचलते तो हैं ही नहीं

बड़ों का कहना मानते हैं
वे छोटों का भी कहना मानते हैं
इतने अच्छे होते हैं

इतने अच्छे बच्चों की तलाश में रहते हैं हम
और मिलते ही
उन्हें ले आते हैं घर
अक्सर
तीस रुपये महीने और खाने पर।

---नरेश सक्सेना

7 फ़रवरी 2014

हिज्र की पहली शाम

हिज्र की पहली शाम के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे
हम जब उसके शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये थे

जाने वो क्या सोच रहा था अपने दिल में सारी रात
प्यार की बातें करते करते उस के नैन भर आये थे

मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ की
जिस दिन अपने जूड़े में उसने कुछ फूल सजाये थे

उसने कितने प्यार से अपना कुफ़्र दिया नज़राने में
हम अपने ईमान का सौदा जिससे करने आये थे

कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू
ख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये थे

कैसा प्यारा मंज़र था जब देख के अपने साथी को
पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे

रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उसका वो कहना हाए "क़तील"
तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे |

--- क़तील शिफ़ाई