1 जनवरी 2018

ऐ नये साल

ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है?
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही,
आज हमको नज़र आती है हर बात वही।
आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं,
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं।
अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे,
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे।
जनवरी, फरवरी और मार्च में पड़ेगी सर्दी,
और अप्रैल, मई, जून में होवेगी गर्मी।
तेरे मान-दहार में कुछ खोएगा कुछ पाएगा,
अपनी मय्यत बसर करके चला जाएगा।
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नई,
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई।
बेसबब देते हैं क्यों लोग मुबारक बादें,
गालिबन भूल गए वक्त की कडवी यादें।
तेरी आमद से घटी उमर जहां में सभी की,
'फैज' नयी लिखी है यह नज्म निराले ढब की।

--- फैज़ अहमद 'फैज़'

खल्क – दुनिया
हिन्दसे – गणित (count, number)
जिद्दत – नयी बात (novelty)
करीने – ढ़ंग
मान-दहार – समय (time period)
ग़ालिबन – शायद
आमद – आने से

16 दिसंबर 2017

दश्त-ए-तन्हाई

दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब

उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफ़ुक़ पार चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तिरी दिलदार नज़र की शबनम

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात

--- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

10 दिसंबर 2017

हर तरफ धुआं है

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है.

अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-
तटस्थता. यहां
कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है.
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी उसके लिए,
सबसे भद्दी गाली है.

हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है.

---धूमिल

6 दिसंबर 2017

कर्फ्यू में एक घन्टे की छूट

मैं चिड़ियाघर से वापस आ रहा था
और तुम लौट रहे थे खेल के मैदान से
जब मैंने अपने छोटे भाई के गायब होने की खबर
तुम्हें दी l

हम कि जो प्यारे दोस्त थे l
घबराने की कोई बात नहीं l
गोलीकान्ड के बाद
लड़कों का गायब होना नई बात नहीं है
यह शान्ति का मसला है
लेकिन खबरों के मलबों के नीचे
सच्चाई का पता कब चला है ?
घबराने की कोई बात नहीं और
यह खतरनाक भी नहीं
जितना किसी लडकी का पीछा करना l
देह के जलाशय में
तैरना न जानते हुए भी
कूल्हों के कशर कूद, भरना l

आखिरकार लड़का अन्तिम बार
कहाँ देखा गया l
संसद की ओर जाने वाली सड़क पर
हरी कमीज़ पहने हुए,
और यह अच्छी बात है कि
उसने लाल स्कार्फ को
झण्डे की तरह तान लिया था
जिसे सुबह उसने पीछा करके
पड़ोस की लड़की से छीना था

यौवन ऐसा सिक्का है
जिसके एक ओर प्यार
और दूसरी तरफ गुस्सा छापा है l
कम-से-कम यह एक सबूत है
उसके जिन्दा रहने का
कि वह 'लोकसभा-भवन' की ओर जा रहा था l
महज लाल स्कार्फ के साथ
जिसे उसने झण्डे की तरह उठा रखा था l

और अभी उसके
अपने 'मतदान' के खिलाफ
होने का सवाल ही उठता नहीं था
क्योंकि वह एक साथ चुन लेना चाहता है -
तितलियाँ, स्कार्फ, होंठ और फूलों
के जादुई रंग l

पेट और प्रजातन्त्र के बीच का सम्बन्ध
उसके पाठ्यक्रम में नहीं है l

वह एक दुधमुँही दिलचस्पी है
कुलबुल जिज्ञासा है
जिसे मारने के लिए इस पृथ्वी पर
अभी कोई गोली नहीं बनी l
(घनी-घनी उसकी बरौनियों के बीच की
हवापट्टी पर दिवास्वप्नों की गूँजें
उतरती हैं l )

और कर्फ्यू में शान्त ठण्डी सड़क पर
सैनिक दस्तों के जूतों से
कितनी सफेद और मार्मिक ध्वनि
निकल रही है ...
जनतन्त्र...जनतन्त्र...जनतन्त्र...जनतन्त्र

--- धूमिल

30 नवंबर 2017

Sometimes

Sometimes things don't go, after all,
from bad to worse. Some years, muscadel
faces down frost; green thrives; the crops don't fail.
Sometimes a man aims high, and all goes well.

A people sometimes will step back from war,
elect an honest man, decide they care
enough, that they can't leave some stranger poor.
Some men become what they were born for.

Sometimes our best intentions do not go
amiss; sometimes we do as we meant to.
The sun will sometimes melt a field of sorrow
that seemed hard frozen; may it happen for you.

--- Sheenagh Pugh

14 नवंबर 2017

'Wild Child'

'They caught all the wild children,
and put them in zoos,
They made them do sums
and wear sensible shoes.
They put them to bed
at the wrong time of day,
And made them sit still
when they wanted to play.
They scrubbed them with soap
and they made them eat peas.
They made them behave and
say pardon and please.
They took all their wisdom
and wildness away.

That's why there are none
in the forests today.'

--- Jeanne Willis

9 नवंबर 2017

रोटी और संसद

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ -
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है l


---धूमिल

8 अक्तूबर 2017

जूठे पत्ते

क्या देखा है तुमने नर को, नर के आगे हाथ पसारे?
क्या देखे हैं तुमने उसकी, आँखों में खारे फव्वारे?

देखे हैं? फिर भी कहते हो कि तुम नहीं हो विप्लवकारी?
तब तो तुम पत्थर हो, या महाभयंकर अत्याचारी।

लपक चाटते जूठे पत्ते, जिस दिन मैंने देखा नर को,
उस दिन सोचा क्यों न लगा दूँ, आज आग इस दुनिया भर को,

यह भी सोचा क्यों न टेंटुआ, घोटा जाय स्वयं जगपति का,
जिसने अपने ही स्वरूप को, रूप दिया इस घृणित विकृति का,

जगपति कहाँ? अरे, सदियों से, वह तो हुआ राख की ढेरी।
वरना समता संस्थापन, में लग जाती क्या इतनी देरी।

छोड़ आसरा अलख शक्ति का, रे नर, स्वयं जगपति तू है।
तू गर जूठे पत्ते चाटे, तो मुझ पर लानत हे, थू है।

कैसा बना रूप यह तेरा, घृणित, दलित, वीभत्स भयंकर,
नहीं याद क्या मुझको, तू है चिर सुन्दर, नवीन, प्रलयंकर,

भिक्षा-पात्र फक हाथों से, तरे स्नायु बड़े बलशाली,
अभी उठेगा प्रलय नींद से, जरा बजा तू अपनी ताली,

औ भिखमंगे, अरे पतित तू, मजलूम, अरे चिरदोहित।
तू अखंड भण्डार शक्ति का, जाग अरे निद्रा संमोहित।

प्राणों को तड़पाने वाली, हुँक्कारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अम्बारों में, अपना ज्वलित फलीता धर दे।

भूखा देख मुझे गर उमड़ें, आँसू नयनों में जग-जन के,
तो तू कह दे नहीं चाहिये, हमको रोने वाले जनखे,

तेरी भूख, जिहालत तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल-
तो फिर समझूँगा कि हो गई, सारी दुनिया कायर, निर्बल,

---पंडित बालकृष्ण शर्मा “नवीन”

30 सितंबर 2017

जो पुल बनाएंगे

जो पुल बनाएंगे
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएंगे।
सेनाएँ हो जाएंगी पार
मारे जाएंगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएंगे

---अज्ञेय

29 सितंबर 2017

BABI YAR

No monument stands over Babi Yar.
A steep cliff only, like the rudest headstone.
I am afraid.
Today, I am as old
As the entire Jewish race itself.

I see myself an ancient Israelite.
I wander o’er the roads of ancient Egypt
And here, upon the cross, I perish, tortured
And even now, I bear the marks of nails.

It seems to me that Dreyfus is myself. *1*
The Philistines betrayed me – and now judge.
I’m in a cage. Surrounded and trapped,
I’m persecuted, spat on, slandered, and
The dainty dollies in their Brussels frills
Squeal, as they stab umbrellas at my face.

I see myself a boy in Belostok *2*
Blood spills, and runs upon the floors,
The chiefs of bar and pub rage unimpeded
And reek of vodka and of onion, half and half.

I’m thrown back by a boot, I have no strength left,
In vain I beg the rabble of pogrom,
To jeers of “Kill the Jews, and save our Russia!”
My mother’s being beaten by a clerk.

O, Russia of my heart, I know that you
Are international, by inner nature.
But often those whose hands are steeped in filth
Abused your purest name, in name of hatred.

I know the kindness of my native land.
How vile, that without the slightest quiver
The antisemites have proclaimed themselves
The “Union of the Russian People!”

It seems to me that I am Anna Frank,
Transparent, as the thinnest branch in April,
And I’m in love, and have no need of phrases,
But only that we gaze into each other’s eyes.
How little one can see, or even sense!
Leaves are forbidden, so is sky,
But much is still allowed – very gently
In darkened rooms each other to embrace.

-“They come!”

-“No, fear not – those are sounds
Of spring itself. She’s coming soon.
Quickly, your lips!”

-“They break the door!”

-“No, river ice is breaking…”

Wild grasses rustle over Babi Yar,
The trees look sternly, as if passing judgement.
Here, silently, all screams, and, hat in hand,
I feel my hair changing shade to gray.

And I myself, like one long soundless scream
Above the thousands of thousands interred,
I’m every old man executed here,
As I am every child murdered here.

No fiber of my body will forget this.
May “Internationale” thunder and ring *3*
When, for all time, is buried and forgotten
The last of antisemites on this earth.

There is no Jewish blood that’s blood of mine,
But, hated with a passion that’s corrosive
Am I by antisemites like a Jew.
And that is why I call myself a Russian!

--- Yevgeny Yevtushenko
Translated by Benjamin Okopnik


**************************************************

NOTES
—–1 – Alfred Dreyfus was a French officer, unfairly dismissed from service in 1894 due to trumped-up charges prompted by anti- Semitism.

2 – Belostok: the site of the first and most violent pogroms, the Russian version of KristallNacht.

3 – “Internationale”: The Soviet national anthem.