One year ago Hafiz Saeed was free,
One year later Hafiz Saeed is still free.
One year ago RR Patil was the Home Minister of Maharashtra,
One year later RR Patil is still the Home Minister of Maharashtra.
One year ago the News Channels were playing clips from the 26/11 attacks,
One year later the News Channels are still playing clips from the 26/11 attacks.
One year ago Kasab was alive,
One year later Kasab is still alive.
Congratulations everybody!
We simply changed the date and time,
From 26/11/2008 to 26/11/2009!
Cited From this source without permission.
Nov 27, 2009
Nov 18, 2009
मंत्र कविता
ॐ शब्द ही ब्रह्म है
ॐ शब्द और शब्द और शब्द और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्राएँ
ॐ वक्तव्य, ॐ उद्गार, ॐ घोषणाएँ
ॐ भाषण…
ॐ प्रवचन…
ॐ हुंकार, ॐ फटकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुस-फुस, ॐ फुत्कार, ॐ चित्कार
ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग
ॐ मूस की लेंड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल
ॐ हमीं हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमन्नं, इमा आप:, इदमाज्यम, इदं हवि
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कवि:
ॐ क्रांति: क्रांति: क्रांति: सर्वग्वम् क्रांति:
ॐ शांति: शांति: शांति: सर्वग्वम् शांति:
ॐ भ्रांति: भ्रांति: भ्रांति: सर्वग्वम् भ्रांति:
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ
ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
ॐ मुष्टीकरण, तुष्टीकरण, पुष्टीकरण
ॐ एतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल ॐ आश्वासन
ॐ गुट-निरपेक्ष सत्ता-सापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उद्घाटन
ॐ मारण-मोहन-उच्चाटन
ॐ काली काली काली महाकाली महाकाली
ॐ मार मार मार, वार न जाए खाली
ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली
ॐ मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजिशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ॐ ऐं हीं वलीं हूँ ॐ
ॐ हम चबाएंगे तिलक और गांधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल
ॐ तुलसीदल, बिल्वपत्र, चंदन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दाँत, भालू के नाखून, मरकत का फोता
ॐ हमेशा हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता
ॐ छू: छू: फू: फू: फट फिट फुट
ॐ शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट
ॐ भैरो, भैरो, भैरो, ॐ बजरंगबली
ॐ बन्दूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ॐ डालर, ॐ रूबल, ॐ
ॐ साउंड, ॐ साउंड, ॐ साउंड
ॐ ॐ ॐ
ॐ धरती, धरती, धरती, व्योम् व्योम् व्योम्
ॐ अष्टधातुओं की ईंटों के भट्ठे
ॐ महामहिम, महामहो, उल्लू के पट्ठे
ॐ दुर्गा दुर्गा तारा तारा तारा
ॐ इसी पेट के अदंर समा जाए सर्वहारा
हरि: ॐ तत्सत् हरि: ॐ तत्सत्
********
नागार्जुन
ॐ शब्द और शब्द और शब्द और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्राएँ
ॐ वक्तव्य, ॐ उद्गार, ॐ घोषणाएँ
ॐ भाषण…
ॐ प्रवचन…
ॐ हुंकार, ॐ फटकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुस-फुस, ॐ फुत्कार, ॐ चित्कार
ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग
ॐ मूस की लेंड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल
ॐ हमीं हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमन्नं, इमा आप:, इदमाज्यम, इदं हवि
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कवि:
ॐ क्रांति: क्रांति: क्रांति: सर्वग्वम् क्रांति:
ॐ शांति: शांति: शांति: सर्वग्वम् शांति:
ॐ भ्रांति: भ्रांति: भ्रांति: सर्वग्वम् भ्रांति:
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ
ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
ॐ मुष्टीकरण, तुष्टीकरण, पुष्टीकरण
ॐ एतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल ॐ आश्वासन
ॐ गुट-निरपेक्ष सत्ता-सापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उद्घाटन
ॐ मारण-मोहन-उच्चाटन
ॐ काली काली काली महाकाली महाकाली
ॐ मार मार मार, वार न जाए खाली
ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली
ॐ मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजिशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ॐ ऐं हीं वलीं हूँ ॐ
ॐ हम चबाएंगे तिलक और गांधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल
ॐ तुलसीदल, बिल्वपत्र, चंदन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दाँत, भालू के नाखून, मरकत का फोता
ॐ हमेशा हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता
ॐ छू: छू: फू: फू: फट फिट फुट
ॐ शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट
ॐ भैरो, भैरो, भैरो, ॐ बजरंगबली
ॐ बन्दूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ॐ डालर, ॐ रूबल, ॐ
ॐ साउंड, ॐ साउंड, ॐ साउंड
ॐ ॐ ॐ
ॐ धरती, धरती, धरती, व्योम् व्योम् व्योम्
ॐ अष्टधातुओं की ईंटों के भट्ठे
ॐ महामहिम, महामहो, उल्लू के पट्ठे
ॐ दुर्गा दुर्गा तारा तारा तारा
ॐ इसी पेट के अदंर समा जाए सर्वहारा
हरि: ॐ तत्सत् हरि: ॐ तत्सत्
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नागार्जुन
बादल को घिरते देखा है |
अमल धवल गिरि के शिखरों पर
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है
बादलों को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं
उनके श्यामल-नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिस-तंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती
निशाकाल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकवी का
बंद हुआ क्रंदन; फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
दुर्गम बर्फ़ानी घाटी में
शत्-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल
-के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का
ढूंढा बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर
जाने दो; वह कवि-कल्पित था
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु कानन में
शोणित धवल भोज-पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में
कानों में कुवलय लटकाए
शतदल लाल कमल वेणी में
रजत-रचित मणि खचित कलामय
पान-पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपुटी पर
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अंगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
********
नागार्जुन
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है
बादलों को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं
उनके श्यामल-नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिस-तंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती
निशाकाल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकवी का
बंद हुआ क्रंदन; फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
दुर्गम बर्फ़ानी घाटी में
शत्-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल
-के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का
ढूंढा बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर
जाने दो; वह कवि-कल्पित था
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु कानन में
शोणित धवल भोज-पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में
कानों में कुवलय लटकाए
शतदल लाल कमल वेणी में
रजत-रचित मणि खचित कलामय
पान-पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपुटी पर
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अंगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
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नागार्जुन
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