मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥
मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए,
कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग़में गा कर चले गए ।
वे भी एक पल का क़िस्सा थे, मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ,
कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ ॥
मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥
कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले ।
कल कोई मुझ को याद करे, क्यों कोई मुझ को याद करे
मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए, क्यों वक़्त अपना बरबाद करे ॥
मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥
--- साहिर लुधियानवी
Sep 11, 2010
नज़र ऐ-कॉलेज
ऐ सरज़मीन-ए-पाक़ के यारां-ए-नेक नाम
बा-सद-खलूस शायर-ए-आवारा का सलाम
ऐ वादी-ए-जमील मेंरे दिल की धडकनें
आदाब कह रही हैं तेरी बारगाह में
तू आज भी है मेरे लिए जन्नत-ए-ख़याल
हैं तुझ में दफन मेरी जवानी के चार साल
कुम्हलाये हैं यहाँ पे मेरी ज़िन्दगी के फूल
इन रास्तों में दफन हैं मेरी ख़ुशी के फूल
तेरी नवाजिशों को भुलाया न जाएगा
माजी का नक्श दिल से मिटाया न जाएगा
तेरी नशात खैज़-फ़ज़ा-ए-जवान की खैर
गुल हाय रंग-ओ-बू के हसीं कारवाँ की खैर
दौर-ए-खिजां में भी तेरी कलियाँ खिली रहे
ता-हश्र ये हसीं फज़ाएँ बसी रहे
हम एक ख़ार थे जो चमन से निकल गए
नंग-ए-वतन थे खुद ही वतन से निकल गए
गाये हैं फ़ज़ा में वफाओं के राग भी
नगमात आतिशें भी बिखेरी है आग भी
सरकश बने हैं गीत बगावत के गाये हैं
बरसों नए निजाम के नक्शे बनाए हैं
नगमा नशात-रूह का गाया है बारहा
गीतों में आंसूओं को छुपाया है बारहा
मासूमियों के जुर्म में बदनाम भी हुए
तेरे तुफैल मोरिद-ए-इलज़ाम भी हुए
इस सरज़मीन पे आज हम इक बार ही सही
दुनिया हमारे नाम से बेज़ार ही सही
लेकिन हम इन फ़ज़ाओं के पाले हुए तो हैं
गर यां नहीं तो यां से निकाले हुए तो हैं !
--- साहिर लुधियानवी
बा-सद-खलूस शायर-ए-आवारा का सलाम
ऐ वादी-ए-जमील मेंरे दिल की धडकनें
आदाब कह रही हैं तेरी बारगाह में
तू आज भी है मेरे लिए जन्नत-ए-ख़याल
हैं तुझ में दफन मेरी जवानी के चार साल
कुम्हलाये हैं यहाँ पे मेरी ज़िन्दगी के फूल
इन रास्तों में दफन हैं मेरी ख़ुशी के फूल
तेरी नवाजिशों को भुलाया न जाएगा
माजी का नक्श दिल से मिटाया न जाएगा
तेरी नशात खैज़-फ़ज़ा-ए-जवान की खैर
गुल हाय रंग-ओ-बू के हसीं कारवाँ की खैर
दौर-ए-खिजां में भी तेरी कलियाँ खिली रहे
ता-हश्र ये हसीं फज़ाएँ बसी रहे
हम एक ख़ार थे जो चमन से निकल गए
नंग-ए-वतन थे खुद ही वतन से निकल गए
गाये हैं फ़ज़ा में वफाओं के राग भी
नगमात आतिशें भी बिखेरी है आग भी
सरकश बने हैं गीत बगावत के गाये हैं
बरसों नए निजाम के नक्शे बनाए हैं
नगमा नशात-रूह का गाया है बारहा
गीतों में आंसूओं को छुपाया है बारहा
मासूमियों के जुर्म में बदनाम भी हुए
तेरे तुफैल मोरिद-ए-इलज़ाम भी हुए
इस सरज़मीन पे आज हम इक बार ही सही
दुनिया हमारे नाम से बेज़ार ही सही
लेकिन हम इन फ़ज़ाओं के पाले हुए तो हैं
गर यां नहीं तो यां से निकाले हुए तो हैं !
--- साहिर लुधियानवी
किताबें कुछ कहना चाहती हैं..
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की,
दुनिया की, इंसानों की,
आज की, कल की,
एक-एक पल की,
गमों की, फूलों की,
बमों की, गनों की,
जीत की, हार की,
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकेट का राज है
किताबों में साईंस की आवाज है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं..
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
--- सफदर हाशमी
बीते जमानों की,
दुनिया की, इंसानों की,
आज की, कल की,
एक-एक पल की,
गमों की, फूलों की,
बमों की, गनों की,
जीत की, हार की,
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकेट का राज है
किताबों में साईंस की आवाज है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं..
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
--- सफदर हाशमी
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