Dec 29, 2011

क्यों करें हम

नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम

ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम

वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम

ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम

बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम

हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम

ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम

-: जौन एलिया

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे

इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे

डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे

जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे

कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे

इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे

बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे

--'आलम खुर्शीद'

Dec 6, 2011

6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे

राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.

तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.

 by Kaifi Azmi