Feb 15, 2012

ज़िन्दगी जैसी तवक्को थी

ज़िन्दगी जैसी तवक्को थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है अहसास कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक यह ज़मीं कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफी है यकीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ ज्यादा कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात है कि पहली सी नहीं कुछ कम है |

---Shahriyar

Jan 27, 2012

थरथरी सी है आसमानों में

थरथरी सी है आसमानों में
जोर कुछ तो है नातवानों में

कितना खामोश है जहां लेकिन
इक सदा आ रही है कानों में

कोई सोचे तो फ़र्क कितना है
हुस्न और इश्क के फ़सानों में

मौत के भी उडे हैं अक्सर होश
ज़िन्दगी के शराबखानों में

जिन की तामीर इश्क करता है
कौन रहता है उन मकानों में

इन्ही तिनकों में देख ऐ बुलबुल
बिजलियां भी हैं आशियानों में

--- फ़िराक़ गोरखपुरी

Jan 12, 2012

हम लड़ेंगे

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे

---पाश