Aug 15, 2012

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है?

सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्‍कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्‍चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला
जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी छब्‍बीस
उसीका पन्‍द्रह अगस्‍त है
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्‍त है...

कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्‍त है?
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्‍त है
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्‍त है
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्‍त है

पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्‍टर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
बच्‍चे की छाती में कै ठो हाड़ है!
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है
ग़रीबों की बस्‍ती में उखाड़ है, पछाड़ है
धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्‍छों नहीं! कुच्‍छों नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
ताड़ के पत्‍ते हैं, पत्‍तों के पंखे हैं
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है
कुच्‍छों नहीं, कुच्‍छों नहीं...
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्‍त है
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्‍त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्‍त है...

---नागार्जुन

Aug 10, 2012

तानाशाह

वह अभी तक सोचता है
कि तानाशाह बिल्‍कुल वैसा ही या
फिर उससे मिलता-जुलता ही होगा

यानी मूंछ तितलीकट, नाक के नीचे
बिल्‍ले-तमगे और
भीड़ को सम्‍मोहित करने की वाकपटुता

जबकि अब होगा यह
कि वह पहले जैसा तो होगा नहीं
अगर उसने दुबारा पुरानी शक्‍ल और पुराने कपड़े में
आने की कोशिश की तो
वह मसखरा ही साबित होगा
भरी हो उसके दिल में कितनी ही घृणा
दिमाग में कितने ही खतरनाक इरादे
कोई भी तानाशाह ऐसा तो होता नहीं
कि वह तुरन्‍त पहचान लिया जाये
कि लोग फजीहत कर डालें उसकी
चिढ़ाएं, छुछुआएं
यहां तक कि मौके-बेमौके बच्‍चे तक पीट डालें
अब तो वह आयेगा तो उसे पहचानना भी मुश्किल होगा|

---उदयप्रकाश

Jul 31, 2012

"लखनऊ हम पर फ़िदा और हम फ़िदा-ए-लखनऊ"

"ये लखनऊ की सरज़मीं
ये लखनऊ की सरज़मीं

ये रंग रूप का चमन
ये हुस्न-ओ-इश्क का वतन
यही तो वो मकाम है
जहाँ अवध की शाम है
जवां-जवां, हसीं-हसीं
ये लखनऊ की सरज़मीं

शबाब-ओ-शेर का ये घर
ये एहल-ए-इल्म का नगर
है मंजिलों की गोद में
यहाँ की हर एक रहगुज़र
ये शहर लालाज़ार है
यहाँ दिलों में प्यार है
जिधर नज़र उठाइये
बहार ही बहार है
कली कली है नाज़नीं
ये लखनऊ की सरज़मीं

यहाँ की सब रवायतें
अदब की शाहकार हैं
अमीर एहल-ए-दिल यहाँ
गरीब जां-निसार हैं
हर इक शाख पर यहाँ
हैं बुलबुलों के चहचहे
गली गली में ज़िन्दगी
क़दम क़दम पे कहकहे
हर इक नज़ारा दिलनशीं
ये लखनऊ की सरज़मीं

यहाँ के दोस्त बा-वफ़ा
मोहब्बतों से आशना
किसी के हो गए अगर
रहे उसी के उम्र भर
निभाई अपनी आन भी
बढ़ाई दिल की शान भी
हैं ऐसे मेहरबान भी
कहो तो दे दें जान भी
जो दोस्ती का हो यकीं

ये लखनऊ की सरज़मीं
ये लखनऊ कि सरज़मीं"

-- शकील बदायुनी