Aug 15, 2012

यही बाकी निशां होगा !

अरूजे कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां हेागा ।।

चखायेगे मजा बरबादिये गुलशन का गुलची को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।।

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।।

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दें वतन हरगिज ।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां.. और तू कहां होगा ।।

यह आये दिन को छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।।

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।।

इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।।

--- पं० जगदम्बा प्रसाद मिश्र 'हितैषी'

This poem is wrongly attributed to RamPrasad Bismil while its author was Pandit Jagdamba Prasad Mishra 'Hiteshi'.

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है?

सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्‍कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्‍चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला
जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी छब्‍बीस
उसीका पन्‍द्रह अगस्‍त है
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्‍त है...

कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्‍त है?
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्‍त है
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्‍त है
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्‍त है

पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्‍टर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
बच्‍चे की छाती में कै ठो हाड़ है!
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है
ग़रीबों की बस्‍ती में उखाड़ है, पछाड़ है
धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्‍छों नहीं! कुच्‍छों नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
ताड़ के पत्‍ते हैं, पत्‍तों के पंखे हैं
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है
कुच्‍छों नहीं, कुच्‍छों नहीं...
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!

किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्‍त है
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्‍त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्‍त है...

---नागार्जुन

Aug 10, 2012

तानाशाह

वह अभी तक सोचता है
कि तानाशाह बिल्‍कुल वैसा ही या
फिर उससे मिलता-जुलता ही होगा

यानी मूंछ तितलीकट, नाक के नीचे
बिल्‍ले-तमगे और
भीड़ को सम्‍मोहित करने की वाकपटुता

जबकि अब होगा यह
कि वह पहले जैसा तो होगा नहीं
अगर उसने दुबारा पुरानी शक्‍ल और पुराने कपड़े में
आने की कोशिश की तो
वह मसखरा ही साबित होगा
भरी हो उसके दिल में कितनी ही घृणा
दिमाग में कितने ही खतरनाक इरादे
कोई भी तानाशाह ऐसा तो होता नहीं
कि वह तुरन्‍त पहचान लिया जाये
कि लोग फजीहत कर डालें उसकी
चिढ़ाएं, छुछुआएं
यहां तक कि मौके-बेमौके बच्‍चे तक पीट डालें
अब तो वह आयेगा तो उसे पहचानना भी मुश्किल होगा|

---उदयप्रकाश