Oct 13, 2012

तहज़ीब यह नई है, इसको सलाम कहिए

तहज़ीब यह नई है, इसको सलाम कहिए
‘रावण’ जो सामने हो, उसको भी ‘राम’ कहिए

जो वो दिखा रहे हैं , देखें नज़र से उनकी
रातों को दिन समझिए, सुबहों को शाम कहिए

जादूगरी में उनको , अब है कमाल हासिल
उनको ही ‘राम’ कहिए, उनको ही ‘श्याम’ कहिए

मौजूद जब नहीं वो ख़ुद को खुदा समझिए
मौजूदगी में उनकी , ख़ुद को ग़ुलाम कहिए

उनका नसीब वो था, सब फल उन्होंने खाए
अपना नसीब यह है, गुठली को आम कहिए

जिन—जिन जगहों पे कोई, लीला उन्होंने की है
उन सब जगहों को चेलो, गंगा का धाम कहिए

बेकार उलझनों से गर चाहते हो बचना
वो जो बताएँ उसको अपना मुक़ाम कहिए

इस दौरे—बेबसी में गर कामयाब हैं वो
क़ुदरत का ही करिश्मा या इंतज़ाम कहिए

दस्तूर का निभाना बंदिश है मयक़दे की
जो हैं गिलास ख़ाली उनको भी जाम कहिए

बदबू हो तेज़ फिर भी, कहिए उसे न बदबू
‘अब हो गया शायद, हमको ज़ुकाम’ कहिए

यह मुल्क का मुक़द्दर, ये आज की सियासत
मुल्लाओं में हुई है, मुर्ग़ी हराम कहिए

‘द्विज’ सद्र बज़्म के हैं, वो जो कहें सो बेहतर
बासी ग़ज़ल को उनकी ताज़ा क़लाम कहिए.

---द्विजेन्द्र 'द्विज'

Oct 8, 2012

इस नदी की धार में

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)

Oct 4, 2012

Hope is the thing with Feathers

"Hope" is the thing with feathers—
That perches in the soul—
And sings the tune without the words—
And never stops—at all—

And sweetest—in the Gale—is heard—
And sore must be the storm—
That could abash the little Bird
That kept so many warm—

I've heard it in the chillest land—
And on the strangest Sea—
Yet, never, in Extremity,
It asked a crumb—of Me.

---Emily Dickinson