Jan 17, 2014

Maut

अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं

अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं

जाने कब पी थी अभी तक है मए-ग़म का ख़ुमार
धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहाने बेदार
आंधियां चल्ती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार

आंख तो मल लूं, ज़रा होश में आ लूं तो चलूं

वो मेरा सहर वो एजाज़ कहां है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहां है लाना
मेरा टूटा हुआ साज़ कहां है लाना

एक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूं तो चलूं

मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल
उफ़ वह रंगीं पुर-असरार ख़यालों के महल

ऐसे दो चार महल और बना लूं तो चलूं

मेरी आंखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ख़ुद को निकालूं तो चलूं

--- मुईन अह्सन जज़्बी

Jan 16, 2014

खेत में दबाये गये दाने की तरह

तुम्हे जानना चाहिए कि हम
मिट कर फिर पैदा हो जायेंगे
हमारे गले जो घोंट दिए गए हैं
फिर से उन्हीं गीतों को गायेंगे
जिनकी भनक से
तुम्हें चक्कर आ जाता है !

तुम सोते से चौंक कर चिल्लाओगे
कौन गाता है?
इन गीतों को तो हमने
दफना दिया था!

तुम्हें जानना चाहिए कि
लाशें दफनाई जा कर सड़ जातीं हैं
मगर गीत मिट्टी में दबाओ
तो फिर फूटते हैं
खेत में दबाये गए दाने की तरह !

--- भवानी प्रसाद मिश्र .

Jan 14, 2014

सम्पाती

तुम्हें मैं दोष नहीं देता हूँ
सारा कसूर अपने सिर पर लेता हूँ
यह मेरा ही कसूर था
कि सूर्य के घोड़ों से होड़ लेने को
मैं आकाश में उड़ा
जटायु मुझसे ज्यादा उड़ा
वह आधे रास्ते से ही लौट आया
लेकिन मैं अपने अहंकार में
उड़ता ही गया
और जैसे ही सूर्य के पास पहुंचा,
मेरे पंख जल गए।

मैंने पानी माँगा
पर दूर आकाश में
पानी कौन देता है?
सूर्या के मारे हुए को
अपनी शरण में
कौन लेता है?

अब तो सब छोड़ कर
तुम्हारे चरणों पर पड़ा हूँ
मंदिर के बाहर पड़े पौधर के समान
तुम्हारे आँगन में धरा हूँ।

तुम्हें मैं कोई दोष नहीं देता स्वामी!

--- रामधारी सिंह दिनक

“आमि आपण दोषे दुःख पाई वासना-अनुगामी”