My father knows the proper way
The nation should be run;
He tells us children every day
Just what should now be done.
He knows the way to fix the trusts,
He has a simple plan;
But if the furnace needs repairs
We have to hire a man.
My father, in a day or two,
Could land big thieves in jail;
There's nothing that he cannot do,
He knows no word like "fail."
"Our confidence" he would restore,
Of that there is no doubt;
But if there is a chair to mend
We have to send it out.
All public questions that arise
He settles on the spot;
He waits not till the tumult dies,
But grabs it while its hot.
In matters of finance he can
Tell Congress what to do;
But, O, he finds it hard to meet
His bills as they fall due.
It almost makes him sick to read
The things law-makers say;
Why, father's just the man they need;
He never goes astray.
All wars he'd very quickly end,
As fast as I can write it;
But when a neighbor starts a fuss
'Tis mother has to fight it.
In conversation father can
Do many wondrous things;
He's built upon a wiser plan
Than presidents or kings.
He knows the ins and outs of each
And every deep transaction;
We look to him for theories,
But look to ma for action.
---Edgar Guest
Jul 4, 2018
Jul 3, 2018
बात बोलेगी
बात बोलेगी
हम नहीं
भेद खोलेगी
बात ही l
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या - देखें !
सत्य का रुख
समय का रुख है :
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख l
दैन्य दानव ; काल
भीषण ; क्रूर
स्थिति ; कंगाल
बुद्धि ; घर मज़दूर l
सत्य का
क्या रंग ?
पूछो
एक संग l
एक - जनता का
दुःख एक l
हवा में उड़ती पताकाएँ
अनेक l
दैन्य दानव l क्रूर स्थिति l
कंगाल बुद्धि l मजूर घर भर l
एक जनता का अमर वर l
एकता का स्वर l
- अन्यथा स्वातन्त्र्य इति l
--- शमशेरबहादुर सिंह
हम नहीं
भेद खोलेगी
बात ही l
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या - देखें !
सत्य का रुख
समय का रुख है :
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख l
दैन्य दानव ; काल
भीषण ; क्रूर
स्थिति ; कंगाल
बुद्धि ; घर मज़दूर l
सत्य का
क्या रंग ?
पूछो
एक संग l
एक - जनता का
दुःख एक l
हवा में उड़ती पताकाएँ
अनेक l
दैन्य दानव l क्रूर स्थिति l
कंगाल बुद्धि l मजूर घर भर l
एक जनता का अमर वर l
एकता का स्वर l
- अन्यथा स्वातन्त्र्य इति l
--- शमशेरबहादुर सिंह
Jun 17, 2018
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
ईथर की तरह होता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया-भर के पिताओं की लम्बी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नम्बर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बग़ीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझा था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं ख़ुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई
--- चंद्रकांत देवताले
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
ईथर की तरह होता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया-भर के पिताओं की लम्बी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नम्बर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बग़ीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझा था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं ख़ुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई
--- चंद्रकांत देवताले
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